बता दें कि मोदी सरकार ने 5 अगस्त को जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी कर दिया था. धारा 370 हटाने के बाद स्थानीय पुलिस ने एहतियात के तौर पर कश्मीर के अलगाववादी संगठनों से जुड़े लोगों के साथ ही मुख्यधारा की पार्टियों के नेताओं, राजनीतिक-सामाजिक कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिया था. इनमें पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती, उमर अब्दुल्ला समेत अन्य नेता शामिल हैं. इन सभी नेताओं को प्रशासन ने पिछले तीन महीने से नजरबंद कर रखा है.
हालांकि 2 अक्टूबर को गांधी जयंती के मौके पर जम्मू और कश्मीर प्रशासन ने जम्मू में नजरबंद सभी विपक्षी दलों के नेताओं पर से नजरबंदी हटा दिया था. डोगरा स्वाभिमान संगठन पार्टी के अध्यक्ष चौधरी लाल सिंह के अलावा नेशनल कॉन्फ्रेंस के देवेंद्र राणा और एसएस सालाथिया, कांग्रेस रमन भल्ला और पैंथर्स पार्टी के हर्षदेव सिंह नजरबंदी के बाद बाहर आ चुके हैं, लेकिन कश्मीर के नेता अब भी नजरबंद हैं.
ऐसे में सवाल हैं कि इन नेताओं पर प्रशासन द्वारा लगाई नजरबंदी कब हटेगी, क्योंकि बहुत ज्यादा दिनों तक उन्हें कैद में नहीं रखा जा सकता है. हालांकि सरकार और प्रशासन ने घाटी के कुछ लोगों को बॉन्ड भरवाकर शर्त के साथ नजरबंदी हटाई है. इसके बाद से माना जा रहा है कि कश्मीर में भी जिन नेताओं को नजरबंद किया गया है, उन्हें शर्त के साथ सरकार रिहा कर सकती है..
कश्मीर के लोग कब चुनें अपनी सरकार
जम्मू-कश्मीर के केंद्रशासित प्रदेश के तौर पर आज से वजूद में आने के बाद अब सभी के मन में है कि कश्मीर की अवाम अपनी सरकार कब चुनेगी. सूबे की हालात को देखते हुए फिलहाल अभी करीब छह महीने तक चुनाव की कोई संभावना नजर नहीं आ रही है, क्योंकि केंद्रशासित राज्य बनने के बाद जम्मू-कश्मीर की राजनीतिक ही नहीं बल्कि भौगोलिक स्थिति में भी बदलाव हुआ है.
जम्मू-कश्मीर में जीसी मुर्मू के उपराज्यपाल बनने के बाद राज्य पुर्नगठन के तहत राज्य का परिसीमन होगा. इसके बाद लद्दाख के तहत आने वाली चार विधानसभा सीटें अलग हो जाएंगी. इसके बाद जम्मू-कश्मीर में जनसंख्या के आधार पर विधानसभा सीटों का निर्धारण होगा. इस प्रक्रिया में लंबा समय लगेगा.
इसके अलावा सबसे अहम जम्मू-कश्मीर की स्थिति को भी देखना है. ऐसे में जब तक प्रदेश की हालत सामान्य नहीं हो जाती है तब तक चुनाव कराना संभव नहीं होगा. हालांकि धारा 370 के हटने और केंद्रशासित प्रदेश बनने के बाद से कोई बड़ी घटना नहीं हुई है और न ही कोई पत्थरबाजी हुई है.
जम्मू-कश्मीर के हालात ऐसे ही सामान्य बने रहे तो प्रशासन विधानसभा सीटों के परिसीमन के बाद चुनाव की तैयारी शुरू कर सकता है. ऐसे में जम्मू-कश्मीर के लोगों को अपनी सरकार चुनने का मौका फिर से मिल सकेगा.