जम्मू-कश्मीर में बडगाम उपचुनाव सिर्फ एक विधानसभा सीट का नहीं, बल्कि नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) की साख का भी इम्तिहान बन गया है. मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के लिए यह चुनाव उस जनादेश की पुनर्पुष्टि है, जिसके सहारे उन्होंने 2024 में सत्ता हासिल की थी. बडगाम में 11 नवंबर को उपचुनाव के लिए मतदान होगा।
उमर अब्दुल्ला ने 2024 के विधानसभा चुनाव में बडगाम से जीत दर्ज की थी, लेकिन बाद में उन्होंने यह सीट छोड़ गंदरबल से विधायक बने रहना चुना. अब बडगाम में यह खाली सीट पार्टी की साख का सवाल बन चुकी है. पार्टी ने इस बार वरिष्ठ नेता आगा महमूद को उम्मीदवार बनाया है, जो सियासी तौर पर पार्टी के पुराने और भरोसेमंद चेहरों में शुमार हैं.
लेकिन मुकाबला आसान नहीं है. पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) ने युवा नेता आगा सैयद मुन्तज़िर को मैदान में उतारा है, जो इलाके के युवाओं में तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं. वहीं बीजेपी ने भी चुपचाप लेकिन रणनीतिक चाल चलते हुए आगा सैयद मोहसिन को उम्मीदवार बनाया है, एक धार्मिक रूप से सम्मानित चेहरा, जिनकी उम्मीदवारी को शिया मतदाताओं के बीच पैठ बनाने की बीजेपी की कोशिश माना जा रहा है.
यह त्रिकोणीय मुकाबला सिर्फ तीन आगाओं के बीच नहीं, बल्कि तीन अलग-अलग राजनीतिक दृष्टिकोणों का भी है- परंपरा, परिवर्तन और चुनौती का टकराव. बडगाम की गलियों में इस बार मुद्दे सिर्फ स्थानीय विकास तक सीमित नहीं हैं. जनता बेरोज़गारी, बिजली संकट और केंद्र से संबंधों पर भी सवाल उठा रही है.
कई स्थानीय मतदाताओं ने आजतक से बातचीत में कहा कि सरकार ने अनुच्छेद 370 की बहाली पर अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया, जबकि इसी वादे पर वोट मांगे गए थे. खास बात यह है कि नेशनल कॉन्फ्रेंस के ही सांसद आगा रुहुल्ला पार्टी लाइन से अलग सुर में सरकार की आलोचना करते रहे हैं. इससे उमर अब्दुल्ला की मुश्किलें बढ़ी हैं, क्योंकि पार्टी के भीतर असंतोष और बाहरी विपक्ष दोनों का सामना एक साथ करना पड़ रहा है.
अब सबकी नज़र मतदान और मतगणना के नतीजों पर है. अगर एनसी बडगाम में जीत दर्ज करती है, तो यह उमर अब्दुल्ला सरकार के लिए आलोचकों को करारा जवाब साबित होगी. लेकिन हार की स्थिति में यह न सिर्फ पार्टी की एकता पर सवाल खड़ा करेगी, बल्कि गदरबल से लेकर श्रीनगर तक सरकार की स्थिरता की चर्चा को और हवा देगी.