जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने रविवार को कहा कि यूपीए सरकार ने राजनीतिक कारणों से संसद हमले के दोषी अफजल गुरु को फांसी दी और उन्हें (उमर को) फांसी से कुछ ही घंटे पहले सूचित किया गया. उमर अपनी बहन के साथ दिल्ली के एक रेस्तरां में रात का भोजन कर रहे थे और उसी दौरान तत्कालीन गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे का फोन आया कि उन्होंने गुरु के कागजात पर हस्ताक्षर कर दिया है और अगली सुबह उसे फांसी दी जाएगी और ऐसे में वह जम्मू-कश्मीर में कानून-व्यवस्था बनाए रखने का इंतजाम करें. उस समय उमर मुख्यमंत्री थे.
उमर ने कहा, 'मैंने उस वक्त गृह मंत्री से पूछा कि क्या वह पूरी तरह निश्चित हैं कि अब कुछ नहीं किया जा सकता. उन्होंने कहा कि नहीं क्योंकि वह कागजात पर हस्ताक्षर कर चुके हैं और वारंट जारी किया जा चुका है और मुझे इसके बाद के प्रभावों से निपटने के लिए कहा. उन्होंने यह संकेत करते हुए कि राजीव गांधी और बेअंत सिंह के हत्यारों के मामलों को अलग अलग ढंग से निपटाया गया, कहा, सच यह है, चाहें हम इसे पसंद करें या नहीं, कि उसे राजनीतिक कारणों से फांसी दी गई.
उन्होंने कहा, 'मैंने कहा था कि मैं तब तक इस पर कोई टिप्पणी नहीं करूंगा जब तक यह नहीं देख लेता कि सरकार ने दूसरे मामलों को कैसे निपटाया. मैंने दूसरे मामलों को देखा. देखिए कि उन्होंने बेअंत सिंह और राजीव गांधी के हत्यारों के मामलों को कैसे निपटाया और किस तरह इस व्यक्ति को बिना बारी के फांसी दे दी.
'कसाब के बाद अगला नंबर गुरु का था'
जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा, स्पष्ट रूप से आप इसके अलावा दूसरा निष्कर्ष क्या निकाल सकते हैं कि वे बीजेपी के हाथों अपनी हार से बचना चाहते थे और इसलिए दो लोगों को फांसी दिया जाना सबसे आसान था. पहला अजमल कसाब को फांसी दी क्योंकि वह विदेशी नागरिक था और दूसरा अफजल गुरु था. चाहे मैं इसे पसंद करूं या नहीं लेकिन उन्होंने ऐसा किया.
गुरु को नौ फरवरी, 2013 को फांसी दी गई. मौत की सजा पाए कैदियों की सूची में उसका नंबर 28वां था. फांसी को लेकर विवाद खड़ा हो गया, क्योंकि परिवार को टेलीविजन पर खबर के जरिए फांसी की जानकारी मिली. उमर ने कहा कि गुरु का मुद्दा उनपर लटकने वाली खतरे की तलवार की तरह था और वह समय-समय पर गुरु को फांसी दिए जाने के प्रभावों के बारे में केंद्र को सूचित कर रहे थे.
उन्होंने कहा, 'अफजल गुरु को फांसी दिया जाना कुछ ऐसा था जिसको लेकर मेरे पूरे कार्यकाल के दौरान चर्चा हुई. क्योंकि हम जानते थे कि यह हमारे ऊपर लटकने वाली खतरे की तलवार की तरह था. ऐसे में समय समय पर इसके प्रभावों के बारे में पी. चिदंबरम और शिंदे को सूचित किया जाता रहा.' उमर ने कहा कि प्रभावों के बारे में हमेशा केंद्र को सूचित किया गया, लेकिन चिंताएं उस वक्त कई गुना बढ़ गईं, जब मुंबई हमले के एकमात्र जीवित बचे हमलावर आतंकवादी कसाब को फांसी दी गई.
पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा, 'आम भावना यह थी कि जब उन्होंने यह कर दिया है तो फिर अगला नंबर गुरु का होने जा रहा है. मैंने इस बारे में रिकॉर्ड पर अपने आपत्ति दर्ज कराईं कि इसके क्या प्रभाव हो सकते हैं. मुझे बताया गया कि फैसला नहीं हुआ है लेकिन इस पर विचार किया जा रहा है.'
'मैं.. मैं सिंड्रोम के शिकार हैं PM मोदी'
इसके साथ ही पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने विदेशी सरजमीं पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के देश की पूर्ववर्ती सरकारों पर हमले किए जाने को 'उनके मैं, मैं और सिर्फ मैं सिंड्रोम' का हिस्सा करार दिया. पूर्व विदेश राज्य मंत्री अब्दुल्ला ने कहा कि विदेश यात्रा के दौरान मोदी द्वारा विपक्ष की आलोचना करना अथवा यह कहना गलत है कि उनके प्रधानमंत्री बनने से पहले तक लोग भारतीय के रूप में पैदा होने को लेकर शर्मिंदगी महसूस करते थे.
उन्होंने कहा, 'यह ऐसा कुछ है जो मेरी नजर से ठीक नहीं है. विदेश जाना और अपने विपक्ष के नेताओं को निशाना बनाना या यह कहना है कि मेरे प्रधानमंत्री बनने से पहले तक लोग भारतीय होने में शर्म महसूस करते थे, मेरा मानना कि यह गलत है. यह पूरी बात एक तरह से मैं, मैं और सिर्फ मैं, की सोच का हिस्सा है.'
अब्दुल्ला ने मोदी पर कटाक्ष करते हुए कहा, 'इसका आशय है कि वह खुद एक साल पहले तक भारतीय होने पर शर्मिंदा थे. जिसका मतलब यह है कि वह मुख्यमंत्री के रूप में अमेरिका जाने का वीजा नहीं पा सके, लेकिन जहां कहीं वह गए तो वह अपना पासपोर्ट दिखाने को लेकर शर्मिंदा थे.'
उन्होंने कहा, 'और शायद उन्होंने हर आव्रजन अधिकारी से यह कहते हुए माफी मांगी कि देखिए मैं माफी चाहता हूं कि यह भारतीय पासपोर्ट है, मैं क्या करूं मुझे बड़ी शर्म आ रही है, लेकिन मुझे इसे दिखाना पड़ेगा. जो वह कह रहे हैं, उसका यही आशय है. जो कि गलत है.
प्रधानमंत्री मोदी ने चीन और दक्षिण कोरिया की अपनी हालिया यात्रा के दौरान कहा था कि उनकी सरकार बनने से पहले तक भारतीय इस देश में पैदा होने को लेकर शर्मिंदगी महसूस करते थे. उनके इस बयान की विपक्षी दलों ने खासी आलोचना की थी. मोदी की टिप्पणी की सोशल मीडिया में भी बहुत आलोचना हुई थी.
अब्दुल्ला ने कहा, 'मोदी बीजेपी के नेता के रूप में विदेश यात्रा नहीं करते हैं. वह 125 करोड़ भारतीयों के प्रतिनिधि के रूप में विदेश जा रहे हैं जैसा कि वह खुद कहते हैं.'
उन्होंने कहा, 'मोदी को प्रचार पीछे छोड़कर सिर्फ प्रधानमंत्री के रूप में ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है.' बहरहाल, अब्दुल्ला ने शपथ ग्रहण समारोह में दक्षेस नेताओं को आमंत्रित करने और विदेशी मंचों पर उनके संवाद को लेकर मोदी की सराहना की.
- इनपुट भाषा