आज तक ने अपने स्टिंग ऑपरेशन 'द वैनिशिंग डॉटर्स' में हरियाणा में कन्या भ्रूण हत्या को लेकर सनसनीखेज खुलासे किए हैं. हमने इस स्टिंग ऑपरेशन के पहले पार्ट में आपको बताया था कि कैसे हरियाणा में शिशु के जन्म से पहले लिंग परीक्षण और कन्या भ्रूण हत्या का अवैध धंधा चल रहा है. लिंग परीक्षण और कन्या भ्रूण हत्या के लिए अवैध रूप से संचालित क्लीनिकों द्वारा 2 लाख रुपये तक वसूले जाते हैं. पेश है स्टिंग ऑपरेशन का दूसरा पार्ट...
मंद रोशनी वाले गलियारों में लोग फुसफुसा कर एकदूसरे से बातचीत कर रहे थे- क्लीनिक के वेटिंग रूम में बैठे लोगों में हड़बड़ाहट थी. दबी जुबान में मरीजों के नाम लिए जा रहे थे. ये अपराध, गोपनीयता की परतों के नीचे दबे हुए, खामोशी से पनपते रहते हैं. लेकिन उन्हें उजागर करना अब एक विकल्प नहीं रह गया है - यह एक ज़रूरत बन गई है. मुझे पता चला था कि हरियाणा के कुछ हिस्सों में जेंडर रेशियो गैप का प्रभाव लंबे समय से बना हुआ है.
एक अंधेरी दुनिया की यात्रा
लिंगानुपात में चिंताजनक अंतर के लिए बदनाम हिसार, कन्या भ्रूण हत्या का केंद्र बन गया है. विशेषकर बरवाला और हांसी जन्म पूर्ण लिंग परीक्षण के अवैध धंधे का केन्द्र हैं. यह अवैध धंधा कितने बड़े पैमाने पर हो रहा है, इसको उजागर करने की चाहत मुझे हिसार के अंडरवर्ल्ड की गहराई में ले गई. यहां की गलियों में बाहरियों के प्रवेश को संदेह की नजरों से देखा जाता, अंजान लोगों से बातचीत लगभग न के बराबर की जाती, मुझे विश्वसनीय स्रोतों और इसमें शामिल लोगों की तलाश थी, जो मुझे इस अवैध धंधे की मांद में घुसने में मदद कर सकें.
शुरू से ही यह स्पष्ट था कि इस काम के लिए तथ्यों या आंकड़ों से ज्यादा की जरूरत होगी. सिर्फ नाम और आंकड़े जुटाना ही काफी नहीं था; हर विवरण मायने रखता था, हर फुसफुसाहट एक बड़ी और अनकही पहेली का एक टुकड़ा थी. स्टिंग की शुरुआत एक मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव को फोन करने से हुई, जो हालांकि सतर्क था, लेकिन समाज में गहरी जड़ें जमाए बैठे पूर्वाग्रहों के बोझ तले दबे होने के बढ़ते प्रमाणों को देखते हुए ऐसा करने के लिए बाध्य हुआ था.
उसने बताया कि यह प्रथा अब भी बड़े पैमाने पर और निर्लज्जतापूर्ण तरीके से चल रही है. उस एमाआर के माध्यम से, मैं राकेश आहूजा से संपर्क करने में सफल रही, जो पहले से ही पीसी-पीएनडीटी अधिनियम के तहत आरोपों से घिरे हुए थे, विशेष रूप से 2017 के एक मामले में. इसके बाद इस आपराधिक धंधे की अंदर की कहानी के बारे में पता चला, जो आंखें खोल देने वाली थी. यह एक ऐसी दुनिया थी, जहां जीवन ही सौदेबाजी का साधन था.
राकेश आहूजा: एक आरोपी जो सब कुछ बता देता है
आहूजा का नाम हरियाणा के स्वास्थ्य विभाग के गलियारों में गूंज रहा था. अधिकारियों ने बताया कि कैसे एक बार महेंद्रगढ़ में छापेमारी के दौरान भागते समय उनका पैर टूट गया था. लेकिन जब मैं उनसे मिली तो वह छिपे नहीं, मेरा सामना किया. वह हांसी के भीड़भाड़ वाले इलाके में एक मामूली आरएमपी (रजिस्टर्ड मेडिकल प्रैक्टिशनर) क्लिनिक चला रहे थे- जो ऐसी जगह था कि पता ढूंढने में स्थानीय लोगों की लेनी पड़ी. मैंने अपना परिचय केवल एक पत्रकार के रूप में दिया, जो बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान के प्रभाव पर एक स्टोरी कर रही थी.
राकेश आहूजा ने स्पष्टवादिता के साथ इस रैकेट में अपनी संलिप्तता के बारे में बताना शुरू किया. वह जोर देकर कहते रहे कि उन्होंने अपने एक मित्र की मदद करने के अलावा कोई अन्य गलत काम नहीं किया है. 'मैं बस बाहर अपने दोस्त का इंतजार कर रहा था', उन्होंने जोर देकर कहा, उनकी आवाज में विद्रोही और उदासीन भाव था. हमारी बातचीत के आधे घंटे बाद, जब उन्होंने उचित मुआवजा न मिलने की बात कही, तो उनकी निराशा स्पष्ट हो गई. उन्होंने कड़वाहट से कहा, 'इतनी सारी परेशानियों के बावजूद, मुझे ठीक से भुगतान भी नहीं किया गया'. और फिर एक और बात कही, 'पुलिस ने मेरे दोस्त को छोड़ने के लिए 10 लाख रुपये लिए.'

हम बात कर रहे थे, तभी एक फोन कॉल ने उन्हें बीच में रोक दिया- पास की एक दुकान पर एमटीपी (मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी) किट रखने के लिए छापेमारी चल रही थी. इस अफरा-तफरी के बीच, उन्होंने डॉ. अनंत राम का नाम लिया, जो पीसी-पीएनडीटी फाइलों में बार-बार अपराधी रहे हैं. उन्होंने कहा, 'मैंने सुना है कि अनंत राम ने परसों अल्ट्रासाउंड किया था.' मानो वह किसी सामान्य अपॉइंटमेंट के बारे में बात कर रहे हों. उन्होंने आगे कहा, 'यहां तक कि अंदर से भी उसने 50,000 रुपये में स्कैन किया.' यह अब केवल व्यक्तियों के बारे में नहीं रह गया था; यह एक ऐसे सिस्टम के बारे में था जिसे बेटियों को जन्म से पहले ही समाप्त करने के लिए सावधानीपूर्वक तैयार किया गया था.
कैश, सीक्रेसी और एक डरावनी डील
मेरी अगली लीड अप्रत्याशित रूप से आई. मैं कई दिनों तक फोन कॉल और गुप्त पूछताछ के बाद, उषा के लिए एक संदर्भ प्राप्त करने में कामयाब रही- जो इस धंधे में एक प्रमुख व्यक्ति है. उषा दिन में हिसार सिविल अस्पताल में एक समर्पित स्वास्थ्य कार्यकर्ता थी, जो एड्स की रोकथाम में अपनी भागीदारी के लिए जानी जाती थीं. लेकिन सफेद कोट और अस्पताल के साफ-सुथरे गलियारों के पीछे एक काली सच्चाई छिपी थी, उषा लिंग परीक्षण की अवैध दुनिया में एक भरोसेमंद बिचौलिया बन गई थी.
कई दिनों तक सावधानीपूर्वक जांच-पड़ताल के बाद, हमने उषा से संपर्क किया. मैंने खुद को एक ऐसे परिवार का सदस्य बताया जो एक बेटे की चाहत रखता था. मेरे सहकर्मी संजय कुमार ने तीन बेटियों का पिता होने का अभिनय किया. हमने उषा को बताया कि परिवार के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए हम अल्ट्रासाउंड करवाना चाहते हैं. कॉल पर उषा सतर्क थी- वह जानना चाहती थी कि उसका नंबर हमें कैसे मिला. जब हमने उसे आश्वस्त किया कि अस्पताल के किसी व्यक्ति से ही हमें नंबर मिला है, तभी वह मिलने के लिए राजी हुई.

तब भी, उसके द्वारा बोला गया प्रत्येक शब्द नपा-तुला था और वह बातें ऐसे कर रही थी जैसे सबकुछ वैध तरीके से कराएगी. हमने आमने-सामने मिलने पर सहमति जताई. अगले दिन हिसार के व्यस्त ओपी जिंदल पार्क में हमारी मुलाकात उषा से हुई. पेड़ों के नीचे बैठी उषा ने बेचैनी भरी सहजता से कहा, 'कितने महीने का है? तीन महीने हुआ है? हां, हो जाएगा.' उसने हमें दो विकल्प दिए- 2 लाख रुपये में कलर अल्ट्रासाउंड, या 80000 रुपये में नियमित स्कैन. उसने आगे कहा- कैश एक दिन पहले दे देना.
उसने बताया कि एक बार पूरा भुगतान हो जाने के बाद, जेजे यूनिवर्सिटी गेट 3 पर मुलाकात होगी, जहां उसकी बहन आगे की जिम्मेदारी संभालेगी. उषा की बहन भी कुरुक्षेत्र सिविल अस्पताल में काम करती है. यह बताता है कि यह अवैध नेटवर्क किस तरह ऑपरेट हो रहा है. फिर इस स्टिंग का सबसे डरावना हिस्सा आया, जहां उषा ने हमसे कहा- 'टेंशन मत लो... अगर लड़की निकली तो सफाई भी करवा देंगे. अगली बार बेटा चाहिए तो दवाई भी है.' यह सिर्फ एक स्कैन नहीं था- यह बेटे को प्राथमिकता देने के लिए एक सर्विस पैकेज था, जिसमें किसी की मौत भी शामिल थी.
टेक ऑन द रन: रैकेट का नया चेहरा
उषा की बातें सुनकर इस अवैध नेटवर्क के तकनीकी रूप से दक्ष होने की सीमा स्पष्ट हो गई. उनके पास पोर्टेबल अल्ट्रासाउंड मशीनें- जो इतनी छोटी हैं कि उन्हें हैंडबैग में छिपाया जा सकता है. इन मशीनों के बलबूते यह धंधा फल-फूल रहा है. रोहतक, झज्जर और हिसार पीसी-पीएनडीटी टीमों के अधिकारियों ने भी इसकी पुष्टि की. एक वरिष्ठ अधिकारी के साथ हुई हमारी बातचीत विशेष रूप से परेशान करने वाली थी. वह व्यक्ति जो हरियाणा में बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ पहल की डिजाइन टीम का हिस्सा था- उसने यह रैकेट चलाने वालों के दुस्साहस का खुलासा किया.

उन्होंने दुख जताते हुए कहा, 'अब, जब वे यूएसजी मशीनों को फोन से जोड़ देंगे तो हम क्या करेंगे?' सीमा पार, अक्सर नेपाल से तस्करी करके लाए जाने वाले ये उपकरण स्मार्टफोन ऐप के माध्यम से संचालित किए जा सकते हैं. इन मशीनों से सबसे अप्रत्याशित स्थानों पर अस्थायी लैब बनाई जा सकती है, जैसे कि किराए के कमरे, चलती कारें, या यहां तक कि झुग्गी-झोपड़ियों में भी. यहां तक कि गर्भपात के लिए जरूरी उपकरण भी आसानी से उपलब्ध थे. इंस्टाग्राम पर एक विक्रेता ने 50 एमटीपी किट भेजने पर सहमति जताई- जिसके लिए किसी डॉक्टर के पर्चे की जरूरत नहीं थी.
हरियाणा से परे: एक रैकेट जिसके लिए कोई सीमा नहीं
यह समस्या सिर्फ हरियाणा तक सीमित नहीं है. जन्म पूर्व लिंग परीक्षण रैकेट का खतरनाक जाल राज्य की सीमाओं से कहीं आगे तक फैले हुआ है, और पंजाब, राजस्थान, दिल्ली और उत्तर प्रदेश के पड़ोसी क्षेत्रों में भी मौजूद है. स्टिंग ऑपरेशनके दौरान मुझे अमरोहा के एक क्लीनिक का वीडियो मिला. हिडेन कैमरे की फुटेज में एक अवैध क्लीनिक संचालित हो रहा था- यह वीडियो हरियाणा पीसी-पीएनडीटी टीम द्वारा छापे के दौरान एक अंडरकवर एजेंट द्वारा फिल्माया गया था, जो मरीज होने का अभिनय कर रहा था. यह वीडियो अब सबूत का हिस्सा है.
यह फुटेज बहुत ही भयावह था. इसमें एक डॉक्टर एक गर्भवती महिला का अल्ट्रासाउंड करता हुआ दिखाई दे रहा था. हालांकि, महिला भी अंडरकवर थी. वीडियो के सामने आने के बाद डॉक्टर को गिरफ्तार किया गया, लेकिन वह जमानत पर रिहा हो गया. वह कुछ हफ्तों के भीतर काम पर लौट आया. सूत्र ने पुष्टि की कि वह वापस आ गया है. यह सिलसिला जारी रहा- बिना किसी चुनौती और बिना किसी रुकावट के.

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान को बड़े-बड़े वादों के साथ शुरू किया गया था. पिछले एक दशक में 1,200 से ज़्यादा छापे मारे गए हैं. लगभग 6 करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं. फिर भी, मार्च 2025 तक लिंगानुपात में सुधार मुश्किल से ही नजर आता है, और भ्रूण हत्या में मामूली एक अंक की गिरावट दर्ज की गई है, जो इस अपराध से संबंधित कानून के क्रियान्वयन में प्रणालीगत विफलता को उजागर करता है.
कागज पर, सरकार की यह नीति काफी मजबूत नजर आती है. बेटियों की सुरक्षा का वादा करती है और गहरी जड़ें जमाए हुए पितृसत्तात्मक मानदंडों के खिलाफ उठाया गया एक कदम है. फिर भी, जमीन पर इसका प्रभाव बहुत कम है. यह नीति नौकरशाही की जड़ता, भ्रष्टाचार और गहरे सांस्कृतिक पूर्वाग्रह में फंसी हुई है, जिसने हर सख्त नियम को लगभग हास्यास्पद रूप से अप्रभावी बना दिया है.

इस पूरी प्रक्रिया को अंदर से देखने के लिए मैंने एक अंतिम कदम उठाया- और अपनी अंतिम रेड के लिए फिर अंडरकवर हुई. द वैनिशिंग डॉटर्स के अगले भाग में, मैं पाठकों को एक ऐसे ऑपरेशन के बारे में बताऊंगी, जिसमें जान का जोखिम था. यह एक ऐसी दुनिया में प्रवेश करने जैसे था, जहां कानून, जीवन और जोखिम एक साथ आते हैं- और जहां हर धड़कन न्याय से वंचित होने की कहानी कहती है.