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भारत की पारंपरिक कलाओं को मिली मॉडर्न पहचान, लाल किले में दिख रही अनोखी पहल

प्रधानमंत्री मोदी ने 8 दिसंबर को आत्मनिर्भर भारत सेंटर फॉर डिजाइन का लाल किला परिसर L1 बैरक में उद्घाटन किया. यहां 17 अलग-अलग कलाओं को एक साथ लाया गया है. फिलहाल 10 से ज्यादा राज्यों से कारीगरों को इस सेंटर में अलग-अलग कंटेंप्रेरी डिजाइन के साथ जोड़कर ऐसे डिजाइन बनाए जा रहे हैं, जो आजकल के समय में पसंद किए जाते हैं और साथ-साथ पुरानी कलाओं को भी जिंदा रख रहे हैं.

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लाल किले में प्रदर्शनी लगाई गई हैं
लाल किले में प्रदर्शनी लगाई गई हैं

लाल किला परिसर में भारत के अलग-अलग राज्यों की पारंपरिक कलाओं को एक छत के नीचे लाकर दुनिया के सामने रखने की एक कोशिश की गई है. आत्मनिर्भर भारत के तहत देश से वे कारीगर, जिनकी कला विलुप्त होती जा रही है, उन्हें कंटेंपरेरी डिजाइनर के साथ जोड़कर उनकी विलुप्त होती कला को दुनिया के सामने नई पहचान देने की शुरुआत की गई है. 

दरअसल, प्रधानमंत्री मोदी ने 8 दिसंबर को आत्मनिर्भर भारत सेंटर फॉर डिजाइन का लाल किला परिसर L1 बैरक में उद्घाटन किया. यहां 17 अलग-अलग कलाओं को एक साथ लाया गया है. फिलहाल 10 से ज्यादा राज्यों से कारीगरों को इस सेंटर में अलग-अलग कंटेंप्रेरी डिजाइन के साथ जोड़कर ऐसे डिजाइन बनाए जा रहे हैं, जो आजकल के समय में पसंद किए जाते हैं और साथ-साथ पुरानी कलाओं को भी जिंदा रख रहे हैं.

आंध्र प्रदेश की टोलुबुमला कला

टोलुबुम्ला आंध्र प्रदेश की सबसे प्राचीन हस्त कलाओं में से एक है. शुरुआती दौर में कागज की कठपुतलियों में अलग-अलग किरदार बनाकर उनका खेल दिखाया जाता था, जिसमें रामायण काल से लेकर छत्रपति शिवाजी महाराज की रोचक कहानियों को दिखाया जाता था. उनकी वीर गाथाओं का गुणगान किया जाता था. मगर धीरे-धीरे यह कला विलुप्त होती रही. अब केवल श्री सत्या साई डिस्टिक दरमावर्म मंडल के कुछ गिने-चुने परिवार ही इस कला को बनाते हैं. आंध्र प्रदेश के इन कारीगरों में कंटेंपरेरी डिसइनर्स के साथ मिलकर अपनी कला को होम डेकोर के सामान बनाने में इस्तेमाल किया है और सुंदर-सुंदर वॉल पेंटिंग बनाई है जिसमें इस पारंपरिक कला को खूबसूरती से देखा जा सकता है.

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पश्चिमी बंगाल की शोला पीठ कला

पश्चिम बंगाल में मां दुर्गा को खूबसूरत शोला कारीगर अपनी कल से सजाते हैं. शोला से मां के सिंगर का सामान, खूबसूरत पेड़ बनाए जाते हैं. मगर यह कल पश्चिम बंगाल में ही धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही है. ऐसे में इस पारंपरिक कला को दुनिया के सामने रखना के लिए आत्मनिर्भर भारत केंद्र के डिजाइन में लाया गया है ताकि ये कारीगर डिजाइनर के साथ अपनी कला को एक नया रूप देकर इस कला को वेस्ट बंगाल के साथ-साथ पूरे भारत और विश्व में एक नई जगह और पहचान दिला सके.

उड़ीसा की पट चित्र कला

उड़ीसा में पट चित्रकला को पीढ़ी दर पीढ़ी कारीगर आगे बढ़ते हैं. मगर अब राजधानी दिल्ली में डिजाइनर के साथ मिलते ही इस चित्रकला को एक नया स्वरूप दिया गया है. ताश के पत्तों पर पारंपरिक तरीके से चित्रकला करके अलग स्वरूप देके आधुनिक दुनिया के साथ जोड़ने की कोशिश की गई है.

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