scorecardresearch
 

EXCLUSIVE: कूड़े के पहाड़ से बड़ी है मिट्टी को खपाने की समस्या, एक और लैंडफिल साइट का जन्म न हो जाए?

दिल्ली में उत्तर से दाखिल होते ही भलस्वा में और ईस्ट से दाखिल होते ही गाजीपुर में और दक्षिणी छोर पर कूड़े के पहाड़ एजेंसियों को मुह चिढ़ा रहे हैं. कमाल देखिए ये लैंडफिल साइट्स थी यानी यहां शहर के कूड़े को लाकर निस्तारण किया जा सके, जबकि अब ये डंप साइट बन चुकी हैं.

Advertisement
X
कृडे का ढेर
कृडे का ढेर
स्टोरी हाइलाइट्स
  • कूड़े के पहाड़ एजेंसियों को मुंह चिढ़ा रहे
  • हालात नहीं सुधरे तो एक और लैंडफिल का जन्म हो जाएगा

दिल्ली में उत्तर से दाखिल होते ही भलस्वा में और ईस्ट से दाखिल होते ही गाजीपुर में और दक्षिणी छोर पर कूड़े के पहाड़ एजेंसियों को मुंह चिढ़ा रहे हैं. कमाल देखिए ये लैंडफिल साइट्स थी यानी यहां शहर के कूड़े को लाकर निस्तारण किया जा सके, जबकि अब ये डंप साइट बन चुकी हैं. पीएम मोदी ने भी कूड़े के पहाड़ को लेकर चिंता जाहिर की तो  एजेंसिया चौकस तो हो गई. हमने रिएलिटी चेक में पाया कि हालात नहीं सुधरे तो एक और लैंडफिल का जन्म हो जाएगा. अभी कूड़े को पहाड़ खत्म होना सपना ही है. हमने पाया कि एक अलग ही समस्या खड़ी हो रही है. एशिया का सबसे बड़ा कूड़े का पहाड़ ईस्ट एमसीडी के गाजीपुर में है. 1984 में शुरू हुई गाजीपुर लैंडफिल साइट की ऊंचाई कुछ साल पहले 65 मीटर पहुंच गई थी. दावा है कि इसे अब 50 मीटर कर दिया गया है. 

यहां 20 ट्रामलिन मशीनें हर रोज 3600 मैट्रिक टन कूड़े की प्रोसेसिंग कर रही हैं, जिसमें पहले कूड़े को खोदकर सुखाया जाता है फिर ट्रामलिन मशीनों की कन्वेयर बेल्ट पर डालने से उसमें लगी छननी प्लास्टिक और कपड़ा अलग करती हैं और ये करीब 20% होता है. हल्के मेटेरियल जैसे रोड़ी और पत्थर को अलग किया जाता है जो 20% होता है. इंजीनयर ने बताया कि बचे हुए 60% में माइनस सिक्स एमएम (-6 एमएम) की मिट्टी अलग करते हैं. प्लास्टिक वेस्ट वेस्ट टू एनर्जी प्लांट में जाता है जिससे बिजली बनाई जाती है. बची मिट्टी सड़कों पर डाली जाती है. कुछ हिस्से को शास्त्री पार्क के प्लांट में ले जाकर टाइल्स बनाई जाती है. बाकी बची हुई -6 एमएम की मिट्टी पार्कों में डाली जा रही.

कुछ मिट्टी  NTPC के बदरपुर प्लांट में इको पार्क में डाली जा रही है. ईडीएमसी के पूर्व स्टैंडिग कमेटी चेयरमैन और पार्षद संदीप कपूर का कहना है कूड़े के पहाड़ में 60% मिट्टी है. वो दूसरे राज्यों में जाए, दिल्ली में खपाई जाए या प्रोसेस होने के बाद मिट्टी कहां फेंकी जाए? यह सबसे बड़ी समस्या. बची हुई मिट्टी को फेंकने की जगह नहीं है. आवश्यकता के हिसाब से एजेंसी उस मिट्टी को भी अलग करेगी. अभी -6 एमएम की मिट्टी की डीप प्रोसेसिंग नहीं हो पा रही है, यही वजह है इसका इस्तेमाल सिर्फ फिलिंग में हो रहा है. 

Advertisement

अधिकारियो ने बताया कि सबसे अधिक 140 लाख मीट्रिक टन कूड़े का पहाड़ से सिर्फ 7.5 लाख मीट्रिक टन कूड़ा  कम हुआ है. ईडीएमसी से लैंडफिल साइट का काम देख रहे पूर्व साइट इंजीनियर अरुण कुमार ने बताया कि कूड़े के पहाड़ की मिट्टी की फिलिंग करना स्थायी समाधान नही है. एक ऐसी डंप साइट चाहिए जो तीनों लैंडफिल साइट की ट्रामेल की गई मिट्टी को डंप किया जा सके.   

साउथ एमसीडी के तहत आने वाली ओखला लैंडफिल साइट 1996 में शुरू हुई जिसकी ऊंचाई अब 42 हो चुकी है, पहले 62 मीटर थी. 7 लाख मीट्रिक टन कूड़े की छंटाई हो चुकी है. यहां करीब 18 ट्रामलिन मशीने लगाई गई हैँ. 77 हज़ार 852 टन से निकली मिट्टी ईको पार्क में इस्तेमाल की गई. 1500 मेगावाट बिजली 1200 टन कूड़े से बनाई जा रही है.  

भलस्वा लैंडफिल साइट के कूड़े के पहाड़ को खत्म करने के लिए 25 ट्रामलिन मशीने लगाई गई है. यहां 80 लाख मीट्रिक टन कूड़े का पहाड़ है. दावा है कि 19.5 लाख मीट्रिक टन कूड़े की छटाई हो चुकी है. ये साइट 1996 में शुरू हुई. अब 42 मीटर ऊंचाई है. 24 मेगावाट बिजली नरेला बवाना लैंडफिल साइट 2 हज़ार टन कूड़े से पैदा होती है. 

Advertisement

एनसीआर के शहरों का बुरा हाल 
1500 टन कूड़ा गाजियाबाद से हर रोज निकलता है. कूड़ा निस्तारण के लिए कोई मजबूत प्लान नहीं है. नोएडा से 700 मीट्रिक टन कूड़ा हर रोज निकलता है. यहां दिल्ली से अलग गीला-सूखा कचरा अलग करने की व्यवस्था है. फरीदाबाद में लैंडफिल साइट नहीं है. हालांकि गुरुग्राम के बंधवाड़ी स्थित प्लांट में फरीदाबाद का भी दबाव बढ़ रहा है. हर रोज़ गुड़गाव से 1000 टन कूड़ा निकलता है.   

 

Advertisement
Advertisement