
दिल्ली में कोरोना के केस फिर से बढ़ने शुरू हो गए हैं. यह इस बात का संकेत है कि राष्ट्रीय राजधानी की कोरोना से जंग अभी खत्म नहीं हुई है. नए केसों में फिर से हो रही वृद्धि से साफ है कि दिल्ली में कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर शुरू हो गई है और नए केस की संख्या मध्य-जून के स्तर पर पहुंच गई है.
इंडिया टुडे की डेटा इंटेलीजेंस यूनिट (DIU) ने दिल्ली के आंकड़ों को खंगाला और पाया कि भले ही दिल्ली में केस बढ़ रहे हैं लेकिन कोरोना की दूसरी लहर में यह उतना जानलेवा नहीं है, जितना पहले था.
दिल्ली में जून के अंत में कोरोना का पहला पीक (शिखर) था जब हर दिन औसतन 3,000 तक केस आ रहे थे. डेली केस की संख्या जुलाई से कम होनी शुरू हुई और जुलाई के अंत तक जारी रही, जब दिल्ली में प्रति दिन 1,000 से ज्यादा केस आ रहे थे. हालांकि, आधे अगस्त के बाद से दिल्ली में रोजाना केस फिर से लगातार बढ़ रहे हैं.
बुधवार को दिल्ली में 4,039 नए केस दर्ज हुए. महामारी के दौरान एक दिन में ये अब तक की चौथी सबसे बड़ी वृद्धि है. दिल्ली सरकार के आंकड़ों से पता चलता है कि शहर में कुल कोरोना केसों की संख्या 2 लाख को पार कर गई है.

टेस्ट संख्या बढ़ी
मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दिल्लीवासियों से कहा है कि वे घबराएं नहीं क्योंकि नए केसों की बढ़ती संख्या ज्यादा टेस्टिंग का नतीजा है. पहली पीक के बाद एक दिन में सबसे ज्यादा केस तब आए हैं जब राज्य में सबसे ज्यादा टेस्ट किए गए.
राज्य के स्वास्थ्य बुलेटिन के अनुसार, दिल्ली में बुधवार को 54,517 लोगों का टेस्ट किया गया. राज्य में पिछले सप्ताह हर दिन औसतन 35,000 लोगों का टेस्ट किया गया है.
ये गौरतलब है कि जब दिल्ली अपनी पहली पीक का सामना कर रही थी, तब इसकी औसत रोजाना टेस्टिंग आज की तुलना में करीब आधी थी. 23 जून को जब दिल्ली में सबसे ज्यादा 3,947 नए केस दर्ज हुए, उस दिन यहां करीब 18,000 टेस्ट किए गए थे.
टेस्ट पॉजिटिविटी रेट में कमी
ज्यादा टेस्टिंग और इसकी तुलना में कम पॉजिटिव केस के साथ दिल्ली ने अपना टेस्ट पॉजिटिविटी रेट (TPR) कम करने में कामयाबी हासिल की है. कोरोना की पहली लहर के दौरान दिल्ली का टीपीआर 30 प्रतिशत तक बढ़ गया था.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, टीपीआर 5 प्रतिशत से नीचे रहना चाहिए. अगर टीपीआर 10 प्रतिशत से ज्यादा है तो इसका मतलब है कि या तो टेस्ट अपर्याप्त हैं या फिर सामुदायिक संक्रमण हो रहा है. 8 सितंबर को दिल्ली का टीपीआर 7.41 से नीचे आ गया. हालांकि, यह अब भी 5 प्रतिशत के आदर्श स्तर से ज्यादा है, लेनिक धीरे-धीरे नीचे आ रहा है.
हालांकि, टेस्ट पॉजिटिविटी रेट सावधानी बरतने की जरूरत है क्योंकि दिल्ली मानक आरटी-पीसीआर टेस्ट के साथ रैपिड एंटीजन टेस्ट का भी इस्तेमाल कर रही है, जो कि कम संवेदनशील है.
मंगलवार को केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण ने एक पत्रकार वार्ता में कहा कि एंटीजन टेस्ट का रिजल्ट नगेटिव आने पर आरटी-पीसीआर टेस्ट करना अनिवार्य है, लेकिन कुछ राज्य ऐसा नहीं कर रहे हैं.
भूषण ने कहा, “आप वायरस को तभी नियंत्रित कर सकते हैं जब उन लोगों का पता लगाएं जिनके संक्रमण के बारे में अभी पता नहीं चला है. हमने पाया कि बहुत से लोग जिनमें बीमारी के लक्षण थे लेकिन उनका एंटीजन टेस्ट नगेटिव आया. इस नतीजे को आरटी-पीसीआर टेस्ट के जरिये दोबारा मान्य नहीं किया गया.”
जरूरी है सीरियल टेस्टिंग
महामारी विशेषज्ञ और भारत की कोविड-19 एपेक्स रिसर्च टीम (iCART) के संस्थापक डॉक्टर जी गोपाल परमेश्वरन का कहना है, “कम टीपीआर उस बारीक विभाजक की वजह से होता है जहां टेस्टिंग के लिए सख्त मानदंडों का पालन नहीं किया गया. कहीं भी, कभी भी, कोई भी व्यक्ति रैपिड एंटीजन टेस्ट करवा सकता है.”.
उन्होंने कहा, “केस की संख्या रैपिड एंटीजन टेस्ट में छूटे हुए केस के कारण बढ़ रही है, जिनका एंटीजन टेस्ट नगेटिव आने के बाद फिर से टेस्ट नहीं किया गया. इसके अलावा कुल जनसंख्या की सीरियल टेस्टिंग बहुत जरूरी है. एक व्यक्ति जिसका रैपिड एंटीजन टेस्ट हुआ और रिजल्ट नगेटिव आया, वह सोचता है कि वह ठीक है. आपको उन्हीं लोगों को बार बार टेस्ट करना है जब तक कि सभी संक्रमित लोगों की निशानदेही न हो जाए. इसके लिए एक अच्छी योजना की जरूरत है.”.
रोजाना मौतों में कमी
दिल्ली में ना सिर्फ पॉजिटिविटी रेट में कमी आई है, बल्कि दूसरी लहर के दौरान रोजाना मौतें भी पहली लहर की तुलना में काफी कम हैं. जून में जब दिल्ली में कोरोना पीक पर था और हर दिन 3,000 केस दर्ज हो रहे थे, उस समय हर दिन 60-80 मौतें हो रही थीं. पिछले दो हफ्तों से दिल्ली में हर दिन 19-20 मौतें हो रही हैं. हालांकि, अब पॉजिटिव केसों की संख्या बढ़ने लगी है.

डॉक्टर परमेस्वरन ने कहा, “इससे पहले संक्रमित लोगों की पहचान देर से हो पा रही थी क्योंकि लोगों को आरटी-पीसीआर रिजल्ट्स के लिए इंतजार करना पड़ता था. उनके अस्पताल में भर्ती होने में देर होती थी. एंटीजन टेस्ट की वजह से ये अंतर कम हो गया है.
गंभीर हालत होने से पहले ही अब ज्यादा लोगों की पहचान हो पा रही है, उन्हें वक्त पर इलाज मिल रहा है. यह कम मौतों का कारण हो सकता है लेकिन हमें दूसरी पीक के आने तक इसका रुझान देखने की जरूरत है”.
उन्होंने कहा, “अगर रोजाना मौतों का अनुपात दूसरी पीक तक एक समान रहता है तो शायद एंटीजन टेस्ट ने संक्रमित लोगों की पहचान करके मौतों को कम करने में मदद की, लेकिन बहुत से केस में यह पहचान करने में चूक गया और महामारी को फैलने दिया.”