दिल्ली के ट्रांसपोर्ट घोटाले में मुख्यमंत्री शीला दीक्षित पर उठ रहे हैं आरोपों के छींटे. करोड़ों के इस घोटाले में दिल्ली ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट के मोटर लाइसेंसिंग अफसर अनिल चिकारा की एक सीडी ने नया मोड़ दिया है. आज तक के हाथ लगी है ये सनसनीखेज सीडी, जिसके बारे में बताया जाता है कि जान पर खतरे की वजह से चिकारा ने ये वीडियो संदेश रिकार्ड कराया था. इस वीडियो में चिकारा ने दिल्ली सरकार के कई बड़े नामों का खुलासा किया है.
चिकारा ट्रांसपोर्ट घोटाले में सीधे-सीधे दिल्ली सरकार की मुखिया को घसीटा है. बताया जाता है कि चिकारा ने जान जाने के डर से ये वीडियो संदेश खुद रिकार्ड कराया है. चिकारा इस मामले में गवाह हैं और उन पर पिछले दिनों हमला भी हो चुका है. चिकारा के मुताबिक दिल्ली सरकार के आला अधिकारी और मंत्री अपना गला बचाने के लिए छोटे मोहरों को बलि का बकरा बना रहे हैं.
ये पूरा मामला करोड़ों के ट्रांसपोर्ट घोटाले का है. ये मामला फिलहाल कोर्ट में चल रहा है और एंटी करप्शन ब्य़ूरो इसकी जांच कर रही है. इस मामले में एसीबी ने दिल्ली के मुख्य सचिव तक से पूछताछ की इजाजत मांगी है, जो घोटाले के वक्त ट्रांसपोर्ट कमिश्नर हुआ करते थे.
आरोप है कि करोड़ों के ठेके को हथियाने के लिए रचा गया एक ऐसे खेल जिसमें दिल्ली की सरकार के बड़े मंत्रियों तक ने अहम भूमिका निभाई. बुराड़ी में कमर्शियल फिटनेस लेन बनाने के लिए ना सिर्फ फर्जी कंपनी को ठेका दिया गया बल्कि बगैर किसी टेंडर के ये ठेका दिया गया.
ये ठेका किसी और ने नहीं बल्कि दिल्ली सरकार की कैबिनेट ने दिया, जिसकी अध्यक्षता कोई और नहीं बल्कि दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित करती हैं. यानी एक तरह से उंगली शीला दीक्षित पर भी उठ रही है.
आज तक ने जब इस घोटाले की तहकीकात शुरू किया जो दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के पास अपने सवाल भेजे. घोटाले के वक्त परिवहन मंत्री हारुन यूसुफ से भी उनका पक्ष जानने की कोशिश की लेकिन, कई कोशिशों के बावजूद उन्होंने हमें जवाब देने की जहमत नहीं उठाई.
क्या है दिल्ली का ट्रांसपोर्ट घोटाला?
दिल्ली के जिस सबसे बड़े घोटाले की बात हम कर रहे हैं, उसका केंद्र है बुराड़ी का ये ट्रांसपोर्ट दफ्तर. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद दिल्ली में सभी कमर्शियल गाड़ियों की फिटनेस जांचने के लिए 2005 में बुराड़ी में एक फिटनेस सेंटर तैयार किया गया. गाड़ियों की जांच के लिए फिटनेस लेन बनाने का ठेका दिया गया. पहली दो लेन बनाने का ठेका अमेरिका की कंपनी ईएसपी यूएसए को दिया गया लेकिन, अमेरिकी कंपनी के काम पूरा करते ही घोटाले का असली खेल शुरू हो गया.
आरोप है कि फिटनेस लेन बनने के बाद इसके मेंटेनेंस के लिए जिस कंपनी को ठेका दिया गया उसमें नियमों को पूरी तरह ताक पर रख दिया गया. आरोप है कि अमेरिकी कंपनी ईएसपी यूएसए में काम करने वाले एक मुलाजिम नीतिन मनावत ने ठेका हथियाने के लिए अमेरिकी कंपनी से मिलते-जुलते नाम वाली एक कंपनी खड़ी की और ठेका हथिया लिया. ESP USA को बना दिया गया ESP INDIA. हालांकि बचाव पक्ष के वकील इसे एक ही कंपनी बता रहे हैं लेकिन आज तक के पास मौजूद दस्तावेज से साफ है कि दोनों कंपनियों का एक-दूसरे से कोई लेना-देना नहीं है.
नितिन मनावत की कंपनी ये कंपनी मुंबई में एक कमरे से चलती है. दस्तावेज़ बताते हैं कि ये कंपनी 2006 में बनी और महज चंद महीनों में दिल्ली सरकार ने इस कंपनी को करा दिए करोड़ों के वारे न्यारे. आरोप है कि गोरखधंधे की जानकारी होने पर भी दिल्ली सरकार के अधिकारी आंखे मूंदे रहे. इस कंपनी को ना सिर्फ लेन चलाने का ठेका दिया गया बल्कि दिल्ली सरकार की मेहरबानी ऐसी बरसी की तीन लेन वाले सेंटर को तेरह लेन बनाने का ठेका इस कंपनी को दे डाला.
एक अंजान कंपनी और इतना बड़ा ठेका और वो भी बिना किसी टेंडर के. दिल्ली का ये घोटाला फिलहाल कोर्ट में है और एंटी करप्शन ब्यूरो इसकी जांच कर रहा है. सवाल उठता है कि आखिर शीला दीक्षित की कैबिनेट ने इतना बड़ा ठेका ईएसपी इंडिया को कैसे दे दिया, जबकि दिल्ली की सरकार के कई विभागों ने इस दरियादिली का विरोध किया था.
आरोप है कि गैर कानूनी तरीके से ठेका दिलाने में बिचौलिये की भमिका निभाने वाले पीसी टम्टा नाम के एक शख्स पर उंगलियां उठ रही हैं. एंटी करप्शन ब्यूरो टम्टा की भूमिका की जांच कर रही है. बताया जाता है कि टम्टा की पहुंच सरकार के भीतर इतनी थी कि बड़े अधिकारियों ने बिना कैबिनेट की मंजूरी के ये ठेका देने की तैयारी कर ली थी.
सरकार के भीतर टम्टा की पहुंच की गवाही दे रहा है पूर्व डिप्टी कमिश्नर एमए उस्मानी का अदालत को दिया बयान. उस्मानी इसी घोटाले के सिलसिले में अभी जेल में हैं. एमए उस्मानी ने अपने बयान में कहा है, 'शीला दीक्षित, हारून यूसुफ, अरविंदर सिंह लवली, पीके त्रिपाठी और आरके वर्मा से नजदीकी की वजह से ट्रांसपोर्ट विभाग में कोई भी सिवाय मोहरे की तरह काम करने के कुछ नहीं कर सकता.'
कॉंट्रेक्ट की शुरूआत से लेकर एग्रीमेंट तक कई मंत्री आए और गए, कई कमिशनर और सचिव आए और गए लेकिन ईएसपी इंडिया पर सरकारी मेहरबानी का सिलसिला नहीं रूका.
आरोप है कि कॉंट्रेक्ट की शर्तें ऐसी रखी गईं जिसमें सारा खर्चा दिल्ली सरकार को करना था, और सारा फायदा सीधे कंपनी के खाते में जाना था. कंपनी कमर्शियल गाड़ियों को फिटनेस सर्टिफिकेट देने के लिए एक गाड़ी से 1600 रुपये तक वसूलती थी, जो सीधे कंपनी के खाते में जाता था. साफ है टम्टा की पहुंच के आगे सब आंख मूंदे हुए थे और गाज गिरी छोटे और मंझोले लोगों पर.
बेशक, इस घोटाले में छोटे मोहरे नपे हैं लेकिन कोर्ट को दिए बयान में ट्रांसपोर्ट विभाग के पूर्व डिप्टी कमिश्नर एमए उस्मानी ने सीधे-सीधे दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को लपेट लिया है. उस्मानी ने अपने बयान में कहा है, 'कई दस्तावेज सीधे टम्टा और नितिन मनावत ने ड्राफ्ट किए और पीके त्रिपाठी और आरके वर्मा से मंजूर करवा लिए. इसमें पहले हारुन यूसुफ से और फिर शीला दीक्षित की मदद से अरविंदर सिंह लवली की सांठ-गांठ थी.
इस मसले पर जब आज तक ने हारुन यूसुफ से बात करनी चाही तो मीटिंग का बहाना बना कर वो कन्नी काटते नजर आए. मंत्रीजी बेशक कुछ ना कहें लेकिन जिस तरह उंगलियां उठ रही हैं और जांच का दायरा बढ़ रहा है, उससे ना सिर्फ उनकी बल्कि मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की भी मुसीबतें बढ़ सकती हैं.