पूर्वी दिल्ली के विवेक विहार स्थित बेबी केयर न्यू बोर्न हॉस्पिटल में लगी आग ने 7 नवजातों का जीवन निगल लिया. इस अग्निकांड की जांच जैसे-जैसे आगे बढ़ रही है, वैसे-वैसे हॉस्पिटल संचालकों और प्रशासन की मिलिभगत, भ्रष्टाचार और गंभीर लापरवाही के बारे में पता चल रहा है. आजतक के कंसल्टिंग एडिटर सुधीर चौधरी ने अपने प्राइम टाइम शो 'ब्लैक एंड व्हाइट' में विवेक विहार के अग्निकांड वाले अस्पताल से विस्तृत ग्राउंड रिपोर्ट किया, जिसमें इस चाइल्ड हॉस्पिटल के बारे में कई सनसनीखेज खुलासे हुए हैं. लाइसेंस रद्द होने के बावजूद यह बेबी केयर सेंटर चल रहा था.
करीब सवा सौ गज के एक छोटे से मकान में यह अस्पताल चल रहा था. इस मकान की स्थिति ऐसी है कि वह किसी भी वक्त गिर सकता है. अस्पताल के ग्राउंड फ्लोर पर ऑक्सीजन के सिलेंडर बिखरे मिले. इनमें से कुछ सिलेंडर के परखचे उड़े हुए थे, क्योंकि आग लगने के बाद इनमें विस्फोट हुआ था. दरअसल, बेबी केयर सेंटर के नीचे ऑक्सीजन सिलेंडर रिफिलिंग का अवैध कारोबार चल रहा था. अस्पताल में लगी आग को भयावह रूप देने में इन ऑक्सीजन सिलेंडर ने भी मदद की. अस्पताल के पास फायर क्लीयरेंस भी नहीं था.
विवेक विहार के बेबी केयर न्यू बोर्न हॉस्पिटल के संचालकों ने दिल्ली फायर डिपार्टमेंट से एनओसी नहीं ली थी और इसके बिना ही अस्पताल चला रहे थे. इस बेबी केयर सेंटर में कोई इमरजेंसी एग्जिट गेट भी नहीं था और न ही आग बुझाने के लिए जरूरी इक्विपमेंट्स. आजतक को सबसे बड़ी बात यह पता चली है कि इस अस्पताल में जो डॉक्टर्स थे, वे बच्चों का इलाज करने के लिए क्वालिफाइड भी नहीं थे. इस सेंटर में एक दिन का एडमिशन चार्ज 12 से 15 हजार रुपये था. इसे हम अस्पताल न कहकर श्मशान कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी.
दिल्ली और देश में अवैध रूप से संचालित होने वाले इस तरह के अस्पतालों का पूरा जाल फैला हुआ है. गरीब अभिभावक करें भी तो क्या. सरकारी अस्पतालों में ओवरक्राउड की वहज से जगह नहीं मिलती और उन्हें मजबूरी में इलाज के लिए इस तरह के अवैध मेडिकल सेंटर्स और डॉक्टरों पर निर्भर होना पड़ता है. अगर स्थानीय प्रशासन बेईमानी और भ्रष्टाचार को पराश्रय न दे तो देश में विवेक विहार के बेबी केयर सेंटर जैसे अवैध अस्पतालों का चलना मुमकिन ही नहीं है. आजतक के कंसल्टिंग एडिटर सुधीर चौधरी ने विवेक विहार बेबी केयर सेंटर अग्निकांड के बारे में कुछ चश्मदीदों से बात की, जिन्होंने पूरी घटना के बारे में बताया.
चश्मदीद जितेंद्र सिंह शंटी शहीद भगत सिंह सेवादल के कर्ताधर्ता हैं. उन्होंने कहा, 'जब रात के 11:40 बजे मुझे धमाकों की आवज सुनाई दी तो मुझे लगा कोई सेलिब्रेशन चल रहा होगा, क्योंकि उसी दिन दिल्ली में मतदान भी समाप्त हुए थे. लेकिन कुछ देर में मेसे पास आसपास के लोगों के कॉल आने शुरू हुए. मेरे पास 32 एंबुलेंस हैं. मैं 3 एंबुलेंस लेकर मौके पर पहुंचा. तब तक आग की लपटें अस्पताल की बिल्डिंग को पार कर रही थीं. एक सिलेंडर अस्पताल के नीचे फटा, एक फटकर आईटीआई कॉलेज में गया. इसी तरह कई सिलेंडर फटकर दाएं-बाएं जाकर गिरे.'
उन्होंने आगे बताया कि अस्पताल में आगे से घुसना मुमकिन नहीं था, क्योंकि यह सामने से पूरी तरह आग की लपटों में घिरा हुआ था. तब मैं और कुछ और स्थानीय लोग पीछे से अस्पताल के अंदर घुसे और कुल 12 बच्चों को रेस्क्यू करके नजदीकी अस्पताल में पहुंचाया. वहां डॉक्टरों ने हमें बताया कि 6 बच्चों की झुलसने की वजह से मौत हो चुकी है. एक बच्चे को वेंटिलेटर पर डाला गया, जिसकी अगले दिन सुबह मौत हो गई. पांच बच्चे सुरक्षित बचाये जा सके. शंटी ने कहा कि जब वह अन्य लोगों के साथ बच्चों को रेस्क्यू कर रहे थे तो उनमें से कई अधजली अवस्था में मिले थे.