बेल्जियन मेलिनवा प्रजाति के कुत्ते बेहद तेज तर्रार और शतिर माने जाते हैं. इस नस्ल के कुत्तों की सूंघने की क्षमता दूसरे कुत्तों के मुकाबले बेहतर मानी जाती है. संदिग्ध पदार्थों की तलाशी में इनका इस्तेमाल सबसे ज्यादा होता है. मेलिनवा प्रजाति कुत्तों की बेहद ताकतवर नस्ल है.
सेना, पुलिस और जांच एजेंसियों के लिए कुत्तों का अहम रोल होता है. सबूत की तलाशी से लेकर संदिग्ध वस्तुओं की धरपकड़ में भी कुत्तों का इस्तेमाल बहुत वक्त से होता आया है. दिल्ली पुलिस के पास भी डॉग स्क्वायड की बेहद अच्छी टीम है. बेल्जियन मेलिनवा के दोनों कुत्तों को उनके हैंडलर्स ने बीएसएफ एकेडमी से ट्रेंड किया है. टेकनपुर ग्वालियर में इन कुत्तों की खास ट्रेनिंग हुई है.
गोल्डन रिट्रीवर डॉग्स होंगे दिल्ली पुलिस में शामिल
गोल्डन रिट्रीवर डॉग्स का इस्तेमाल अमेरिकन आर्मी भी करती है. दिल्ली पुलिस के इतिहास में पहली बार ऐसा हो रहा है कि जब 5 सबसे चुस्त और फुर्तीले डॉग स्क्वायड की टीम को शामिल किया जा रहा है. ये नस्ल फिनलैंड में पाई जाती है. अमेरिकन आर्मी भी इनका इस्तेमाल करती है.
खामोशी से टारगेट को भेदने में सक्षम
इनकी सबसे बड़ी खासियत ये है कि इन कुत्तों का मिजाज भले ही शिकारी हो, लेकिन ये बेहद शांत और खामोशी से टारगेट को भेदने के लिए जाने जाते हैं. जैंड्रा, कांगो, कोमेट, क्रिसी और कोस्बी नाम के इन कुत्तों में तीन फीमेल और बाकी दो मेल हैं.
दिल्ली पुलिस ने इनके लिए खास तौर पर वातानुकूलित कैनाल का भी इंतजाम किया गया है.
क्राइम ब्रांच के डीसीपी राजन भगत ने बताया कि अगले हफ्ते इन पांच कुत्तों को दिल्ली पुलिस में आधिकारिक तौर पर शामिल किया जाएगा. पहले दिल्ली पुलिस आर्मी वेटनरी फोर्स से ट्रेंड कुत्ते लेती थी तो वहां सिर्फ लेब्राडोर नस्ल के ही डॉग मिलते थे, जबकि ये पांचों जर्मन शेफर्ड नस्ल के हैं.
आतंक के दुश्मन जर्मन शेफर्ड
अब तक दिल्ली पुलिस आर्मी की वेटनरी फोर्स से ही कुत्ते लेती रही है, और वो सभी कुत्ते लेब्राडोर नस्ल के ही होते थे. लेकिन इस बार जर्मन शेफर्ड नस्ल के कुत्तों को शामिल किया गया है. इन कुत्तों की खासियत ये होती है कि ये आतंकी द्वारा प्लांट किए गए विस्फोटक को बिना आवाज़ यानी बिना भौंके ही बता देते हैं. जबकि लेब्राडोर नस्ल के कुत्ते विस्फोटक देखने के बाद भौंकते थे. जिससे कई बार विस्फोटक फट भी जाता था.
हैदराबाद में पले इन कुत्तों को दिल्ली पुलिस का हिस्सा बनाने से पहले तीन महीने तक ओबीडिएंशन सेशन की ट्रेनिंग दी गई. जिसके बाद इन्हें सीआईएसएफ, स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप और नेशनल सिक्योरिटी गार्ड के तौर पर इस्तेमाल किया गया. इन्हें दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच टीम अपने बेड़े का हिस्सा बनाने जा रही है. दिल्ली पुलिस का ये भी कहना है कि अगर इनका परफॉरमेंस अच्छा रहा तो फिर इनकी संख्या को भी और भी बढ़ाया जा सकता है.