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कमिश्नर और मेयर के अधिकारों की जंग! दिल्ली MCD में फोन तो बहाना, चुनाव टलने के पीछे असली वजह कुछ और

दिल्ली का स्थानीय निकाय होने के बावजूद एमसीडी कमिश्नर की नियुक्ति का अधिकार केंद्र सरकार को है. इसलिए ऐसा माना जाता है कि कमिश्नर दिल्ली सरकार की बात हो तो अनदेखा कर सकते हैं मगर केंद्र की बात को नहीं. अब जबकि केंद्र में और दिल्ली दोनों जगह अलग-अलग पार्टियों की सत्ता है और उन्हीं दोनों पार्टियों के बीच सत्ता का संघर्ष एमसीडी के लिए चल रहा है.

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वीके सक्सेना और शेली ओबेरॉय (फाइल फोटो)
वीके सक्सेना और शेली ओबेरॉय (फाइल फोटो)

दिल्ली नगर निगम (MCD) की स्टैंडिंग कमेटी का चुनाव 26 सितंबर होना था लेकिन चुनाव टल गया था. अब एमसीडी कमिश्नर अश्विनी कुमार ने 27 सितंबर (शुक्रवार) को दोपहर 1 बजे स्टैंडिंग कमेटी का चुनाव कराने का आदेश जारी किया है. एडिशनल कमिश्नर जितेंद्र यादव पीठासीन अधिकारी बताए गए हैं.

एमसीडी कमिश्नर ने अपने आदेश में लिखा है, 'मेयर ने कहा कि चुनाव सिर्फ 5 अक्टूबर, 2024 को ही होगा और उससे पहले आयोजित कोई भी चुनाव अवैध और असंवैधानिक होगा. डिप्टी मेयर और वरिष्ठतम सदस्य ने इस मामले पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. लिहाजा मामले को फिर से उपराज्यपाल के समक्ष रखा गया. जनहित में और नगर निकाय की लोकतांत्रिक भावना को बनाए रखने के लिए, उपराज्यपाल ने निर्देश दिया है कि स्टैंडिंग कमेटी का चुनाव 27/09/2024 को दोपहर 1:00 बजे आयोजित किया जाएगा. इसके अलावा, उपराज्यपाल ने यह भी निर्देश दिया है कि जितेंद्र यादव, एडिशनल कमिश्नर इसके लिए रिटर्निंग अधिकारी के रूप में अध्यक्षता करेंगे.'

एक-एक वोट, एक-एक सीट की लड़ाई

इन दिनों दिल्ली नगर निगम में कुछ ऐसा हो रहा है जो पहले कभी नहीं हुआ. दरअसल सत्ता के समीकरण ऐसे हैं कि आम आदमी पार्टी और बीजेपी के बीच सदस्यों की संख्या में अंतर काफी कम है. अधिकारियों पर उपराज्यपाल का आधिपत्य है और मेयर आम आदमी पार्टी की हैं. इसलिए एक-एक वोट और एक-एक सीट को लेकर लड़ाई छोटे से छोटे चुनाव में भी गरमा रही है. दरअसल उपराज्यपाल केंद्र सरकार के नुमाइंदे हैं जहां पर बीजेपी की सत्ता है. लेकिन एमसीडी सदन की कुर्सी पर आम आदमी पार्टी की मेयर बैठी हैं जो सदन का संचालन करती हैं.

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स्टैंडिंग कमेटी चुनाव में क्या हुआ?

दरअसल 18 सदस्यों की स्टैंडिंग कमेटी एमसीडी की सबसे ताकतवर कमेटी है. अभी तक 17 सदस्यों का चुनाव हो चुका है जिनमें नौ बीजेपी के हैं तो 8 आम आदमी पार्टी के. इसलिए स्टैंडिंग कमेटी में दबदबा किसका होगा वह आखिरी सदस्य के चुनाव पर टिका हुआ है. मामला वोटिंग के दिन सदन में फोन ले जाने को लेकर शुरू हुआ. ऐसा माना जाता है कि जब वार्ड कमेटी के चुनाव हो रहे थे तो कुछ पार्षदों ने अपनी पार्टियों को सबूत के तौर पर फोन से खींचे गए फोटो भेजे. 

फोटो भेजने का मकसद यह दिखाना था कि वह अपनी पार्टी के प्रति कितने निष्ठावान हैं. एक सदस्य का चुनाव बेहद महत्वपूर्ण है इसलिए कोई भी पार्टी चांस लेना नहीं चाहती थी और इसी वजह से आम आदमी पार्टी के पार्षदों ने सदन के अंदर फोन ले जाने की बात कही. लेकिन कमिश्नर और निगम सचिव ने ऐसा करने से पार्षदों को रोक दिया. यहीं पर बात अधिकारों की आ गई और बखेड़ा बढ़ गया.

अधिकारियों का रोल है महत्वपूर्ण

दरअसल दिल्ली नगर निगम के दो हिस्से हैं, एक पॉलिटिकल और दूसरा ब्यूरोक्रेटिक. पॉलिटिकल विंग की मुखिया मेयर हैं तो ब्यूरोक्रेट्स विंग के सर्वेसर्वा कमिश्नर. एमसीडी के कामकाज का तरीका कुछ ऐसा है कि वहां कई मायनों में मेयर पर एमसीडी कमिश्नर भारी पड़ता है. लेकिन सदन की कार्यवाही में बतौर चेयरपर्सन मेयर की भूमिका सबसे अधिक होती है. लेकिन जब कमिश्नर और निगम सचिव ने नियमों का हवाला देकर पार्षदों को फोन ले जाने से मना किया तो आम आदमी पार्टी को ऐसा लगा कि यह मेयर के अधिकारों का अतिक्रमण है. आम आदमी पार्टी के पार्षदों ने बताया कि अगर वह कमिश्नर की बात मानकर फोन नहीं ले जाते तो आने वाले दिनों में अधिकारी मेयर के अधिकारों पर कब्जा और बढ़ा देते.

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एमसीडी कमिश्नर की नियुक्ति में छुपा है फलसफा

दिल्ली का स्थानीय निकाय होने के बावजूद एमसीडी कमिश्नर की नियुक्ति का अधिकार केंद्र सरकार को है. इसलिए ऐसा माना जाता है कि कमिश्नर दिल्ली सरकार की बात हो तो अनदेखा कर सकते हैं मगर केंद्र की बात को नहीं. अब जबकि केंद्र में और दिल्ली दोनों जगह अलग-अलग पार्टियों की सत्ता है और उन्हीं दोनों पार्टियों के बीच सत्ता का संघर्ष एमसीडी के लिए चल रहा है तो ऐसे में आम आदमी पार्टी की मेयर अपने अधिकारों में काट छांट को बर्दाश्त करने को तैयार नहीं हैं. उन्हें डर है कि अगर अधिकारियों ने एक जगह अपनी मनमानी चला ली तो फिर बार-बार ब्यूरोक्रेसी पॉलिटिकल विंग पर हावी होता रहेगा.

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