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दिल्ली में पटाखों पर बैन! कारोबार से लेकर रोजगार तक, सब पर पड़ेगी मार

Ban on firecrackers in Delhi दिल्ली में इस साल भी पटाखों के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा दिया गया है. सरकार के इस कदम से पटाखों के व्यापारी काफी परेशान हैं क्योंकि, त्योहारों का सीजन (Diwali) ही उनके लिए कारोबार में काफी फायदे वाला होता है.

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पटाखा व्यापारियों को होगा भारी नुकसान (फाइल फोटो: PTI)
पटाखा व्यापारियों को होगा भारी नुकसान (फाइल फोटो: PTI)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • इस साल भी दिल्ली में लगा है बैन
  • दिल्ली में करीब 500 करोड़ का कारोबार

देश की राजधानी दिल्ली में पिछले साल की तरह इस साल भी पटाखों के इस्तेमाल पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया है. कोरोना महामारी अभी खत्म नहीं हुई है और तीसरी लहर का डर लोगों में कायम है. ऐसे हालात को देखते हुए, दिल्ली प्रदूषण कंट्रोल कमेटी ने अपने बयान में कहा है कि पटाखों की खरीद-बिक्री और भंडारण के साथ पटाखे फोड़ने पर पूरी तरह से 1 जनवरी 2022 तक प्रतिबंध लगाने का आदेश है. 

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने व्यापारियों से यह अपील की है कि वे पटाखों का भंडारण बिल्कुल न करें और पूर्ण प्रतिबंध के आदेश का पालन करें. लेकिन सरकार के इस कदम से पटाखों के व्यापारी काफी परेशान हैं क्योंकि, त्योहारों का सीजन ही होता है जब उनकी बिक्री बढ़ती है और कारोबार में सबसे ज्यादा फायदा मिलता है. 

कारोबार पर कितना पड़ेगा असर?

इससे पटाखों के कारोबार के साथ-साथ रोजगार पर ही असर पड़ेगा. भारत में तमिलनाडु के शिवकाशी से ही कुल 90 फीसदी पटाखा उत्पादन होता है. ऐसे में दिल्ली सरकार द्वारा पटाखों पर बैन से शिवकाशी के साथ-साथ शिवकाशी के आसपास के इलाके विरूदनगर में भी इसका असर होगा.  दिल्ली की अगर बात करें तो 500 करोड़ रुपये से ज्यादा का पटाखा कारोबार सिर्फ दिल्ली से होता है.  

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ऑल इंडिया फायरवर्क्स एसोसिएशन के अनुसार केवल शिवकाशी में कुल 1100 के करीब की कंपनियां रजिस्टर्ड हैं. कारोबार के हिसाब से केवल शिवकाशी से ही 6000 करोड़ रुपये का कारोबार होता है. वहीं, पूरे देश में 9000 करोड़ से ज्यादा का पटाखों का कारोबार होता है. शिवकाशी की बात करें तो वहां के कारोबार से तीन लाख लोग जुड़े हुए हैं. साथ ही, पांच लाख से ज्यादा के लोगों को रोजगार पटाखों के कारोबार की वजह से मिलता है. लेकिन, बात जब दिल्ली की करते हैं तो दिल्ली में सिर्फ एक दुकान से 15-20 लाख पटाखों का कारोबार होता है. पटाखों के बैन से न केवल दिल्ली के कारोबारियों पर असर होगा लेकिन रोजगार पर भी बहुत बुरा असर पड़ेगा. 

दिल्ली में सदर बाजार, चांदनी चौक, कोटला, रोहिणी, लक्ष्मी नगर आदि बाजार मुख्य रूप से पटाखों के कारोबार के केंद्र हैं. दिल्ली के सदर बाजार में पटाखों की दुकान चलाने वाले और दिल्ली फायरवर्क्स एसोसिएशन के नीरज कुमार का कहना है, 'सदर के एक दुकान से 15-20 लाख रुपये का कारोबार होता है और केवल सदर बाजार में 100-150 पटाखों की दुकानें हैं. फिर उसके बाद चांदनी चौक में सबसे ज्यादा पटाखों की दुकानें हैं. ऐसे में पटाखों पर अचानक सीजन के समय बैन लगाने से केवल सदर बाजार के कारोबारियों को 200-300 करोड़ रुपये का नुकसान होगा. पहले किए गए बुकिंग से भी ऑर्डर के कैंसिल होने का नुकसान कारोबारियों को अलग भुगतना पड़ रहा है.' 

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पटाखों के बैन से लोगों के रोजगार पर भी बुरा असर पड़ा है. खासकर जो मजदूर दुकानों में काम करते थे उनके लिए बड़ी समस्या हो गई है. रोजगार पर पड़े असर पर नीरज ने कहा, 'पटाखों के एक दुकान में 7 से 10 लोग काम करते हैं. ऐसे में सिर्फ सदर में 100-150 दुकानें हैं और चांदनी चौक से लेकर बाकियों में अलग. मतलब कम से कम 5000 लोगों के रोजगार पर असर पड़ा है.' 

भारत में पटाखों का कितना होता है आयात

भारत त्योहारों का देश है और यहां लोग शादी हो या त्योहार हर अवसर में पटाखों और तरह-तरह के रोशनी सजाने के सामान से खुशियां जरूर मनाते हैं. भारत में पटाखों का आयात बाहर देश से भी किया जाता है. जिसमें सबसे बड़ा आयात चीन से किया जाता है. हालांकि, आपको ये जानकर आश्चर्य होगा कि पेट्रोलियम ऐंड  एक्सप्लोसिव सेफ्टी ऑर्गेनाइजेशन ने एक्सप्लोसिव्स नियम 2008 के तहत फायरवर्क्स के आयात के लिए अभी तक कोई लाइसेंस नहीं दिया है. इसके बावजूद पूरे देश में गैरकानूनी तरीके से चीन से पटाखों का आयात किया जाता है.

देश में कम से कम 30 फीसदी पटाखों का आयात चीन से किया जाता है. कारण है वहां के पटाखों की क्वालिटी बेहतर, आकर्षित करने वाली होती है और वे 40 फीसदी तक सस्ते होते हैं. लेकिन, कोविड के बाद से चीन के पटाखों के कारोबार पर भी असर पड़ा है और साथ में दुकानदारों की बिक्री पर भी असर हुआ है.

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चांदनी चौक में पटाखों के बाजार में दुकान चलाने वाले धर्मेन्द्र सैनी का कहना है, 'पटाखों के आयात से और बैन से बहुत फर्क पड़ा है. दुकानों में अब ग्रीन पटाखों का कारोबार करना पड़ रहा है, जिसकी डिमांड अभी भी बाकी पटाखों के मुकाबले काफी कम है. ऐसे में हमने दिवाली लाइट्स और अलग डेकोरेशन के काम को शुरू किया है, लेकिन, उसमें भी बाजार में पहले से काफी लोग मौजूद है और कॉम्पटिशन बढ़ा हुआ है. इसलिए हमारी कमाई पर असर पड़ा रहा है.' 

अर्थव्यवस्था पर असर

कोरोना महामारी के बाद से सेहत और प्रदूषण को लेकर सरकार वाकई अच्छे कदम उठा रही है. लेकिन, इसका लोगों की जेब के साथ-साथ अर्थव्यवस्था पर भी असर पड़ रहा है. इसके लिए सरकार को दोनों पहलुओं पर ध्यान देने की जरूरत है. 

इंडिया रेटिंग्स के प्रिंसिपल इकोनॉमिस्ट सुनील सिन्हा ने कहा, 'पिछले कुछ सालों से अर्थव्यवस्था को लेकर कई बदलाव जैसे जीएसटी का लागू होना, कोरोना महामारी का असर, टैक्स रिफॉर्म आदि का सबसे ज्यादा असर अन-ऑर्गनाइज्ड सेक्टर और छोटे–मध्यम इंटरप्राइजेज को हुआ है. इन सेक्टर्स में हो रहे बुरे असर को रिवाइव करना थोड़ा मुश्किल है. इन छोटे सेक्टर से ही सबसे ज्यादा रोजगार उत्पन्न होते हैं. जो लोगों को सर्वाइव करने के लिए जरूरी होता है. जिसमें सबसे ज्यादा मजदूर मौजूद होते हैं. ऐसे में पटाखों पर लगे बैन से अलग से एक असर इस अन-ऑर्गनाइज्ड सेक्टर और MSME पर पड़ेगा. साथ ही सीजनल डिमांड में भी कमी आएगी.' 

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रोजगार पर भी असर 

पहले से ही जीएसटी और कोविड के मार से ये सेक्टर मुश्किल दौर से गुजर रहा है. हालांकि प्रदूषण और सेहत को लेकर बैन सही कदम है. सुनील सिन्हा कहते हैं, 'बिना किसी विकल्प को दिए तुरंत पटाखों पर बैन से राजस्व पर असर पड़ेगा. खासकर जो निचले लोग हैं उनके लिए ये दोहरी मार के बराबर साबित होगा. सीजनल रोजगार जो लोगों को मिल पाते थे वो भी नहीं मिल पाएंंगे. रोजगार जो उत्पन्न होते थे वो कारोबार पर असर से खत्म होंंगे. अगर कोई पॉलिसी आती भी है तो उसमें 3 से 5 साल लग जाएंगे.' 

इसलिए बिना किसी विकल्प को दिए अचानक से किए गए बैन से बड़े पैमाने पर जो रोजगार उत्पन्न होते थे, उन पर बहुत बड़ा असर पड़ेगा. देखा जाए तो डिमांड में भी तेजी से कमी आई है. ज्यादातर पटाखा फैक्ट्रियों में महिलाएं भी काम करती हैं. जिन्हें रोजगार मिलता है और वो अपने घर का खर्च चला पाती हैं. ऐसे में जहां कोरोना महामारी की वजह से पहले से ही लोग बेरोजगारी की मार झेल रहे थे, इस माहौल को देखते हुए कर्मचारियों और पटाखा फैक्ट्री से जुड़े लोगों का सरकार से निवेदन है कि कोई और विकल्प इन लोगों के लिए निकाला जाए ताकि लोगों के रोजगार और आमदनी पर असर ना हो.

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