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तालिबान के जुल्म से बचकर आईं अफगान महिलाओं को दिल्ली में मिला 'सिलाईवाली' का सहारा

तालिबान के डर से भागकर दिल्ली आई कुछ महिलाओं को दिल्ली की एक संस्था 'सिलाईवाली' के जरिए रोजगार मिल रहा है. अफगानिस्तान के मौजूदा हालात को देखते हुए वे बेहद डरी हुई हैं. सिलाईवाली सेंटर पर रद्दी कपड़ों को नया रूप दिया जाता है.

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सिलाईवाली सेंटर पर काम करती हैं अफगानिस्तानी शरणार्थी महिलाएं.
सिलाईवाली सेंटर पर काम करती हैं अफगानिस्तानी शरणार्थी महिलाएं.
स्टोरी हाइलाइट्स
  • तालिबान के खौफ से छोड़ा था अफगानिस्तान
  • सिलाई के जरिए कमा रही हैं महिलाएं
  • UNHCR से मिली थी महिलाओं को मदद

अफगानिस्तान में तालिबान का कब्जा हो गया है. तालिबान के सत्ता में आने के बाद, अफगानिस्तान से भयावह तस्वीरें सामने आ रही हैं. राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में रहने वाली कुछ अफगानिस्तान की शरणार्थी महिलाएं को भी अपने परिवार के सदस्यों की चिंता सता रही है, जो अफगानिस्तान में फंसे हैं. पिछले कई सालों में अफगान महिलाएं और अपने परिवार के साथ दक्षिणी दिल्ली के मालवीय नगर में रह रही हैं.

घर चलाने और परिवार को आर्थिक तौर पर मजबूत करने के लिए करीब 70 से ज्यादा अफगानी शरणार्थी महिलाएं 'सिलाईवाली' संस्था के साथ मिलकर काम कर रही हैं. अफगानिस्तान के कल्चर को विनम्र बताने वाले 'सिलाईवाली' सेंटर के संस्थापक विश्वदीप मोइत्रा ने बताया कि उन्होंने अपनी फ्रांसीसी पत्नी के साथ मिलकर सिलाईवाली सेंटर की शुरुआत 2018 की थी.

विश्वदीप मोइत्रा ने कहा कि उनकी पत्नी पिछले 20 साल से भारत में हैं. वे कई राज्यों में आर्टिस्ट्स को डिजाइन ट्रेनिंग दे चुकी हैं. इस दौरान ही एक अफगान ग्रुप के साथ काम किया था, जिसके बाद इस सेंटर की शुरुआत हुई. सिलाई वाली संस्था की शुरुआत के लिए यूनाइटेड नेशन हाई कमीशन फॉर रिफ्यूजी(UNHCR) ने मदद की थी.

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जापान, कोरिया और ईस्ट के देशों में बेचा जाता है प्रोडक्ट

सिलाई वाली सेंटर पर रद्दी कपड़े को नया रूप दिया जाता है. दिल्ली के आसपास कई रेडीमेड गारमेंट फैक्ट्री हैं, वहां से मिलने वाले रद्दी कपड़े से अलग-अलग प्रोडक्ट ये अफगानी महिलाएं बनाती हैं. 'सिलाईवाली' के संस्थापक बताते हैं कि यहां बनाए गए प्रोडक्ट का 99% प्रोडक्ट जापान, कोरिया, ईस्ट के देशों में एक्सपोर्ट किया जाता है.

अफगानिस्तान के भविष्य से डरीं 'मोशगन'

साल 2018 में दिल्ली आईं 24 साल की मोशगन अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे से काफी डरी हुई हैं. मोशगन के मंगेतर के अलावा दादा दादी और मामा अब भी अफगानिस्तान में रहते हैं. मोशगन ने कहा कि मौजूदा हालात से चिंता बढ़ गई है क्योंकि हमारे रिश्तेदार अब भी अफगानिस्तान में रह रहे हैं. इतने बुरे हालात हैं कि बातचीत नहीं हो पा रही है. समझ नहीं आता है कि आगे क्या होगा.

सिलाई के जरिए शरणार्थी महिलाओं को मिल रहा रोजगार.

अफगानिस्तान में जो हुआ वह गलत

अफगानिस्तान में बिताए कुछ वक्त के बारे में बताते हुए मुशगन कहती हैं कि वहां सुरक्षित महसूस नहीं करते थे. लड़कियों का स्कूल जाना भी मुश्किल होता है और वहां बुर्का या हिजाब पहनना भी एक दिक्कत है. इतनी पाबंदी थी कि बुर्का पहनने पर हाथ भी नहीं दिखना चाहिए. मेरी मां ने बताया वहां बहुत बुरे लोग हैं और अभी जो अफगानिस्तान में हुआ है वो बहुत गलत है.

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सजावटी गुड़िया तैयार करती हैं मोशगन

हालांकि अब मोशगन दिल्ली के सिलाई वाली सेंटर में काम करके घर खर्च चला रही हैं. घर की सजावट के सामान से लेकर खूबसूरत गुड़िया को हाथों से सिलाई करके तैयार करती हैं. मोशगन ने बताया कि अफगानिस्तान में कभी ऐसा काम नही किया लेकिन दिल्ली आकर अपने परिवार की आर्थिक मदद के लिए सिलाई का काम शुरू किया है.
 

तालिबान के खौफ से डरी हुई हैं महिलाएं.



मुशगन के परिवार में 4 बहन और 2 भाई हैं जो अभी जॉब नहीं कर रहे हैं. घर चलाने के लिए सिलाईवाली सेंटर से करीब 14 हजार रूपए हर महीने सैलरी जुटा पाती हैं. मुशगन कहती हैं कि उनका भविष्य साफ नहीं है लेकिन घर खर्च के लिए काम जरूरी है. 

किन हालातों में छोड़ना पड़ा अफगानिस्तान?

सिलाई वाली सेंटर में काम करने वाली 45 साल की अफगानी शरणार्थी रजिया अफगानी महिलाओं और लड़कियों के साथ भारतीय कल्चर और अफगान कल्चर के आर्ट को तैयार करती हैं. अफगानिस्तान के मौजूदा हालात से हैरान रजिया ने कहा कि वो 7 साल से दिल्ली में रह रही हैं. खराब हालात और मजबूरियों की वजह से मुल्क छोड़ना पड़ा था. वहां महिलाओं का अफगानिस्तान में तालिबान की वजह से घर से निकलना, पढ़ाई करना और काम करना मुश्किल था. जब भारत आए तो हिंदी में बोलना मुश्किल था, लेकिन अब हिंदी आ गई है.

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अफगानिस्तान में फंसे हुए हैं रिश्तेदार

अफगानी शरणार्थी रजिया दिल्ली में अपने पति और 4 बच्चों के साथ रहती हैं. रजिया साल 2013 में अफगानिस्तान से दिल्ली आईं थीं. फिलहाल, सिलाईवाली सेंटर में काम करने से घर चलाने के लिए पर्याप्त सैलरी मिल जाती है. रजिया ने बताया कि उनके रिश्तेदार अब भी अफगानिस्तान में रहते हैं. तालिबान के कब्जे की वजह से हालात अच्छे नही हैं. अभी भी महिलाएं घर से बाहर नहीं निकल पा रही हैं. अफगानी शरणार्थी रजिया ने बताया कि एक महिला यहां काम करती थी, जिसके पति और बच्चों को तालिबानियों ने मार दिया था. जिसके बाद उसे जबरन पाकिस्तान भेजने की कोशिश की गई थी.

शरणार्थी महिलाओं के लिए बेहद मददगार है सिलाईवाली संस्था.

अफगानिस्तान में खत्म हो चुकी है उम्मीद

अफगानिस्तान की ताजा तस्वीरों को देखकर 23 साल की शबनम भी काफी डरी हुई हैं. साल 2015 में दिल्ली आईं शबनम ने कहा कि अफगानिस्तान के हालात देखकर बुरा फील हो रहा है. जब हम अपने रिश्तेदारों से बात करते हैं तो वो कहते हैं कि उम्मीद खत्म हो चुकी है. उन्हें नही पता कि वो जिंदा रहेंगे भी या नहीं. क्योंकि वहां फायरिंग बहुत होती है तो रिश्तेदार डरे हुए हैं. कल एक रिश्तेदार से फोन पर बात हुई वो फोन पर काफी रो रहीं थी. हम चाहते हैं कि वो सुरक्षित जगह पर पहुंच जाए.

अफगानिस्तान की तस्वीर को देखकर लगता है डर

अफगानी शरणार्थी शबनम ने कहा कि माता पिता की कम उम्र में शादी हुई थी. फिर पाकिस्तान के करांची में मेरा जन्म हुआ था. लेकिन अब अफगानिस्तान की तस्वीर देखकर डर लगता है. पहले औरतों को हिजाब और बुर्का पहनने कहा जाता था, और नहीं पहनने पर सड़क पर मारपीट की जाती थी. लेकिन दिल्ली आने के बाद सुकून मिला है. सिलाई वाली में काम करने का मौका है और यहां से घर खर्च चल जाता है. मेरी सैलरी 15 हजार रुपए है. मेरी मम्मी भी जॉब करती हैं लेकिन पापा बेरोजगार हैं क्योंकि उन्हें बैंक एकाउंट न होने की वजह से जॉब नहीं मिलती है.

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