आम आदमी पार्टी के 5 पार्षद बीजेपी में शामिल हो गए हैं. दिल्ली भाजपा अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा ने पार्टी में शामिल होने के दौरान मीडिया से बातचीत में आरोप लगाया कि ये पार्षद AAP नेताओं के लिए भीड़ जुटाने के दबाव के कारण परेशान थे. बता दें कि आम आदमी पार्टी के वार्ड 28 से पार्षद रामचंद्र (नरेला जोन), वार्ड 30 से पार्षद पवन सहरावत (नरेला जोन), वार्ड 177 से पार्षद ममता पवन (सेंट्रल जोन), वार्ड 178 से पार्षद सुगंधा बिधूड़ी (सेंट्रल जोन) और वार्ड 180 से पार्षद मंजू निर्मल (सेंट्रल जोन) ने बीजेपी का दामन थाम लिया है.
नरेला जोन से 2 और सेंट्रल जोन से 3 पार्षदों के बीजेपी में शामिल होने के बाद बीजेपी को कुल 12 में से 7 जोन में बहुमत मिल गया है. दरअसल 5 जोन (शाहदरा नॉर्थ जोन, शाहदरा साउथ जोन, केशवपुरम जोन, नजफगढ़ जोन और सिविल लाइंस जोन) में भाजपा बहुमत में थी. अब AAP के 5 पार्षदों के बीजेपी में शामिल होने के बाद उसका बहुमत सेंट्रल और नरेला जोन में भी हो गया है. इसके उलट आम आदमी पार्टी का बहुमत 12 में से 5 जोन (साउथ जोन, वेस्ट जोन, रोहिणी जोन, सिटी सदर-पहाड़गंज जोन, करोलबाग जोन) में रह गया है. यानि 5 पार्षदों के बीजेपी में जाने से आम आदमी पार्टी के हाथ से सेंट्रल जोन और नरेल जोन निकल गए हैं.
बीजेपी का 7 जोन में बहुमत है, लिहाजा उसके 7 सदस्य स्टैंडिंग कमेटी में आना तय हैं और हाउस से 2 सदस्य पहले ही चुन लिए गए हैं. इस तरह ये आंकड़ा 9 हो जाता है, जो 18 सदस्यीय स्टैंडिंग कमेटी के लिए जादुई नंबर है. जबकि आम आदमी पार्टी के पास 5 जोन में बहुमत है और उसके 3 सदस्य हाउस से चुने गए हैं. कुल मिलाकर AAP के 8 सदस्य हैं. यानि आम आदमी पार्टी इस घटनाक्रम के बाद मैजिकल नंबर से 1 कदम पीछे हो गई है.
इतना ही नहीं, अब स्टैंडिंग कमेटी के चेयरमैन और डिप्टी चेयरमैन के पद के लिए भी बीजेपी की दावेदारी और मजबूत हो गई है. सिर्फ स्टैंडिंग कमेटी ही नहीं, बल्कि अनूसूचित जाति के नए मेयर के चुनाव में भी बीजेपी अपनी दावेदारी मजबूत कर सकती है. हालांकि कमेटी में कांग्रेस के पार्षदों की वोटिंग बहुत बड़ा रोल अदा करेगी.
क्या होती है स्टैंडिंग कमेटी, कितनी है पावरफुल?
स्टैंडिंग कमेटी को ही स्थायी समिति कहा जाता है. स्टैंडिंग कमेटी दिल्ली नगर निगम की सबसे ताकतवर कमेटी है. दिल्ली नगर निगम में मेयर और डिप्टी मेयर के पास फैसले लेने की शक्तियां काफी कम हैं. उसकी एक बड़ी वजह ये है कि लगभग सभी किस्म के आर्थिक और प्रशासनिक फैसले 18 सदस्यों वाली स्टैंडिंग कमेटी ही लेती है और उसके बाद ही उन्हें सदन में पास करवाने के लिए भेजा जाता है. ऐसे में स्टैंडिंग कमेटी काफी पॉवरफुल होती है.
कैसे होता है स्टैंडिंग कमेटी का चुनाव?
दिल्ली नगर निगम की स्टैंडिंग कमेटी के 18 सदस्यों का चुनाव 2 तरीके से होता है. 6 सदस्यों का चुनाव सबसे पहले सदन की बैठक में किया जाता है. यह सीक्रेट वोटिंग के जरिए तो होती है, लेकिन आम वोटिंग की तरह नहीं. मतलब इन सदस्यों का चुनाव राज्यसभा सदस्यों की तरह प्रेफरेंशियल वोटिंग के आधार पर किया जाता है. यानी सभी पार्षदों को अपने उम्मीदवार को पसंदीदा क्रम में प्रेफरेंस के तौर पर नंबर देने होते हैं. अगर पहले प्रेफरेंस के आधार पर चुनाव नहीं हो पाता है तो फिर दूसरे और तीसरे प्रेफरेंस की काउंटिंग आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के आधार पर की जाती है. 18 सदस्यों की स्टैंडिंग कमेटी में इन 6 के अलावा 12 सदस्यों को 12 अलग-अलग जोन से चुनकर लाया जाता है. जोन की मीटिंग में एल्डरमैन यानी मनोनीत पार्षदों को भी वोटिंग का अधिकार है.
पार्षदों ने बताई आम आदमी पार्टी छोड़ने की वजह
बीजेपी में शामिल हुए सभी 5 पार्षदों ने कहा कि हम शीर्ष नेतृत्व के भ्रष्टाचार से त्रस्त होकर और प्रधानमंत्री मोदी के जन समर्पण से प्रभावित होकर भाजपा में शामिल हो रहे हैं. बीजेपी अध्यक्ष सचदेवा ने कहा कि भ्रष्टाचार से घिरी आम आदमी पार्टी की सरकार किस तरह से दिल्ली में विकास कार्यों को रोकने का काम कर रही है, यह हम सब पिछले 10 साल से लगातार देखते आ रहे हैं. जिन साथियों ने भाजपा में शामिल होने का निर्णय लिया है, उनके साथ मिलकर हम जनता की सेवा करेंगे.
क्या विधानसभा चुनाव पर पड़ेगा असर?
अरविंद केजरीवाल के चेहरे पर आम आदमी पार्टी अगले साल होने वाला विधानसभा चुनाव लडे़गी, लेकिन एमसीडी में साफ-सफाई और गलियों का साफ ना होना चुनाव में AAP के लिए भारी पड़ सकता है. सवाल ये भी है कि AAP एंटी इंकम्बेंसी से कैसे निपटेगी? कई विधायकों का पार्षदों से तालमेल नहीं है. सवा साल से स्टैंडिंग कमेटी नहीं बन पाने से इलाके के लोगों के काम नहीं हो पा रहे हैं. मंगलापुरी से AAP पार्षद नरेंदर गिरसा ने कहा कि उन्होंने मेयर और अधिकारियों से अपने इलाके की समस्याएं बताईं, लेकिन कोई हल नहीं निकला.
पार्षदों का पलायन AAP को पड़ेगा भारी?
दिल्ली विधानसभा चुनाव में जब 6 महीने से भी कम समय बचा हो तो AAP को अपने पार्षदों का बीजेपी में पलायन भारी पड़ सकता है. सूत्रों का कहना है कि कई पार्षद इस बात से काफी नाराज हैं. ऐसे में वो सेफ एग्जिट देख रहे हैं और पालाबदल का अवसर देख रहे हैं. कई पार्षदों ने दबी जुबान में कहा कि एमसीडी में 250 सीटें जीतने के बाद भी ऐसा लगता है जैसे हम विपक्ष का रोल अदा कर रहे हैं.