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10 साल में खर्च कर दिए करोड़ों रुपये, पहाड़ी मैना को नहीं हुए बच्चे

पांच करोड़ रुपए से ज्यादा की रकम खर्च कर दी गई. कई साल लगा दिए गए, लेकिन उसे बच्चे नहीं हुए. बात हो रही है उस पहाड़ी मैना की, जो छत्तीसगढ़ में लुप्तप्राय हो रही है, जिसे छत्तीसगढ़ सरकार ने अपना राजकीय पक्षी घोषित किया है.

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पहाड़ी मैना
पहाड़ी मैना

पांच करोड़ रुपए से ज्यादा की रकम खर्च कर दी गई. कई साल लगा दिए गए, लेकिन उसे बच्चे नहीं हुए. बात हो रही है उस पहाड़ी मैना की, जो छत्तीसगढ़ में लुप्तप्राय हो रही है, जिसे छत्तीसगढ़ सरकार ने अपना राजकीय पक्षी घोषित किया है.

कुछ समय पहले तक ये मैना छत्तीसगढ़ में बस्तर, आंध्रप्रदेश और ओडिशा के सरहदीय इलाकों में आसानी से देखने को मिल जाती थीं, लेकिन अब ऐसा नहीं है. इसी से चिंतित सरकार ने इसकी सुध ली और मैना को बचाने की ठानी.

बस्तर के वन विद्यालय में एक काफी लम्बे-चौड़े पिंजरे में एक पहाड़ी मैना का जोड़ा रखा गया, ताकि बच्चे पैदा हों और मैना की संख्या बढ़ाई जा सके, लेकिन दस सालों तक की गईं प्रजनन की कई कोशिशें नाकाम साबित हुईं और यह जोड़ा दो से तीन नहीं हो पाया.

वन प्राणी संस्थान देहरादून और कोलकाता के एक्सपर्ट डॉक्टरों ने भी इस मैना के प्रजनन के लिए कई नुस्खे आजमाए, लेकिन नतीजा सिफर रहा. वन विभाग को इस दिशा अभी तक कोई कामयाबी नहीं मिल पाई है.

वहीं, इस मैना को बचाने और इनकी संख्या बढ़ाने के लिए वन विभाग अब जंगलों में उन्हीं प्रजातियों के पेड़ लगाने पर जोर दे रहा है, जो इस पहाड़ी मैना को पसंद हैं. सरकार को लगता है कि पहाड़ी मैना का परिवार प्रकृति की गोद में ही फल-फूल सकता है. इसके अलावा वन प्राणी अधिनियम के तहत राज्य सरकार ने इस मैना के शिकार पर प्रतिबंध लगा दिया है. इसके शिकार के दोषी पाए गए व्यक्ति को दस साल तक की सजा और जुर्माने का प्रावधान किया गया है.

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प्राकृतिक वातावरण नहीं मिला
छत्तीसगढ़ के चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन राम प्रकाश का कहना है कि कैप्टिव ब्रीडिंग के लिए एक वृक्ष को घेरकर उसमें मैना रखी गयी. लेकिन उसका प्रजनन नहीं हो पाया. कभी कोई अंडा हुआ भी तो वह सर्वाइव नहीं किया. उनका मानना है कि मैना को प्राकृतिक रूप से जो वातावरण चाहिए होता है वह नहीं मिला.

हालांकि मैना को पिंजरे में ताजा फलों से लेकर कई तरह की साग-भाजी दी जाती है. उसकी सेहत का भरपूर ध्यान रखा जाता है. वन विभाग की एक टीम उसकी रखवाली के लिए चौबीसो घंटे तैनात रहती है.

मैना को बच्चे पैदा न होने को लेकर वन विभाग की दलील यह भी है कि इस पिंजरे के पीछे रेलवे ट्रैक और सामने सड़कों पर होने-वाले शोरगुल के चलते इस मैना की गोद अब तक सूनी है.

अब होगा इस मैना का DNA टेस्ट
विभाग का कहना है कि मैना की यह पहचान करना कि कौन नर है और कौन मादा, यह काफी मुश्किल है. प्रजनन की प्रक्रिया को नए सिरे से शुरू करने के लिए विभाग मैना के DNA टेस्ट की तैयारी कर रहा है. राज्य के एक चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन का यह भी कहना है कि अभी भारत में पक्षियों के प्रजनन पर ज्यादा काम नहीं हुआ है. प्रयास कई किए गए हैं, लेकिन सफलता नहीं मिली.

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इंसानों की हूबहू नकल कर लेती है ये मैना
इस मैना की सबसे बड़ी खासियत ये है कि यह मनुष्यों की आवाज की हूबहू नकल कर लेती है. आपने आमतौर पर तोते को ही बोलते देखा और सुनाओ होगा, लेकिन यह मैना इंसानों की बोली बोल सकती है और तोते से कहीं ज्यादा साफ आवाज में.

क्यों लापता हुई ये खूबसूरत मैना?
शिकार के शौकीन लोगों ने इस मैना को अपना निशाना बनाया तो कभी मांसाहार के लिए इसे मारा गया. नतीजतन यह पहाड़ी मैना गायब होती चली गई. बस्तर की वादियों में अब कुछ गिनी चुनी ही पहाड़ी मैना बची हैं.

क्या चाहिए इस मैना को?
पहाड़ी मैना को झील झरने और उड़ान भरने के लिए खुले मैदान बेहद पसंद हैं. आमतौर पर ये बरगद, पीपल, तेजम और सेमल के पेड़ों पर अपना घोंसला बनाती है. जंगलों में उगने वाले फल और कई तरह की जड़ी बूटियां इसका मुख्य भोजन है. खासतौर पर बांस के फूल, तेंदू, महुआ, आम, इमली और बेर इसे खूब पसंद हैं.

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