सोमवार की शाम पटना में लोग छठ पूजा में मगन थे कि तभी एक अफवाह दौड़ी और 17 जिंदगियों को रौंदकर चली गई. ये अफवाह कैसे फैली, वो भगदड़ कैसे मची, ये सब तो जांच के बाद पता चलेगा. फिलहाल तो महापर्व पर मातम फैल ही गया.
पटना के कई घरों में छठ की शाम दुखों का ऐसा पहाड़ टूटा कि लोग बस तड़प कर रह गए. ना जाने महापर्व को किसकी नजर लगी. ना जाने वो साजिश थी या फिर हादसा.
एक संकरी सी गली में ऐसी भगदड़ मची कि चारों और लाशें बिछ गईं. मानो देखते देखते काल ने तांडव किया हो.
चंद मिनटों में छठ का महापर्व मातम में तब्दील हो गया. डूबते सूरज को अर्घ्य देने आए लोगों के बीच एक अजीबोगरीब सी अफवाह फैली और फिर भगदड़ मच गई. पूजा और मंत्रोच्चार के शब्द कुछ पलों में चीख पुकार में बदल गए. अजीब लगता है लेकिन ये सच है.
पटना के महेंद्रू के पास बास का एक पुल धंस गया. लोग उस पुल से हटकर अदालत घाट के पीपा पुल से गुजरने लगे. पीपा पुल से शहर में पहुंचने वाली गली बहुत संकरी थी. कुछ लोग घाट की तरफ जा रहे थे और कुछ लौट रहे थे. भीड़ बहुत थी.
अचानक अफवाह फैली कि पीपा पुल पर बिजली का तार गिर गया. लोग इधर-उधर भागने लगे, संकरे रास्ते पर दबाव बना और भगदड़ मच गई.
जब तक लोग इस अफवाह का डर अपने दिलों से निकालते, जब तक वो संभल पाते, बहुत कुछ लुट चुका था. कई जिंदगियां अफवाह और भगदड़ के क्रूर पैरों तले दब चुकी थीं.
लोगों के पास अपनों के शव और गम के अलावा और कुछ नहीं था. वो चाहे तो अपने दुख पर रो सकते थे या फिर सरकारी इंतजाम पर चीख सकते थे.
गमों के आगोश में कई परिवार फंसे हुए हैं. सरकार जांच और मुआवजे की बात कर रही है. लेकिन इन सबके बीच कई संजिदा सवाल मुंह बाए खड़े हैं.
श्रद्धालुओं की मौत का जिम्मेदार कौन है? घाट पर पूजा के इंतजामम में ऐहतियात क्यों नहीं बरती गई? लकड़ी के पुल पर क्षमता से ज्यादा लोगों को क्यों चढ़ने दिया गया? हर बार छठ के मौके पर भारी भीड़ उमड़ती है ऐसे में प्रशासन ने भीड़ के मुताबिक इंतजाम क्यों नहीं किए? अफवाह और भगदड़ के हालात से निपटने के इंतज़ाम क्यों नहीं थे?
सवालों और गुत्थियों के बीच एक बड़ी सच्चाई ये है कि महापर्व की शाम जिन लोगों के घर ये मातम फैला है, उनकी जिंदगी में तो बीती रात की सुबह हुई ही नहीं.