छपरा मिड-डे मील हादसे को लेकर केंद्र सरकार की ओर से जारी एक रिपोर्ट ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के दावों की कलई खुल गई है. इसमें साफ कहा गया है कि अगर राज्य सरकार सचेत होती तो नहीं जाती नौनिहालों की जान.
केंद्र की इस रिपोर्ट में साफ-साफ लिखा है कि घटना वाले दिन बच्चों के मना करने के बावजूद उन्हें खाना खाने के लिए मजबूर किया गया.
बिहार में सुशासन का दम भरने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के दावे पर रिपोर्ट में इतने सवाल उठाये गये है कि नीतीश को जवाब देना मुश्किल हो सकता है. केंद्र के ज्वॉइंट सेक्रेटरी अमरजीत सिंह ने अपनी रिपोर्ट में नीतीश के सुशासन की पोल खोल दी है.
रिपोर्ट के मुख्य अंश
- घटना के दिन बच्चों को बदबूदार और कड़वा खाना दिया गया.
- बच्चों ने पहले कौर के बाद ही खाना खाने से मना कर दिया था.
- बच्चों को जबरन डांटकर खाना खिलाया गया.
- प्रिसिंपल मीना देवी ने अपने पति की दुकान से ही सामान खरीदा था.
- अनिवार्य होने के बाद भी मीना देवी ने खाना टेस्ट नहीं किया.
रिपोर्ट में ये सवाल उठाया गया है कि ये कैसे होता रहा कि प्रिसिंपल अपने पति की दुकान से ही सामान लेती रही और किसी सरकारी अफसर ने सवाल तक नहीं उठाया. जब पहले ही केंद्र ने चेतावनी दी थी तब भी सुधार के लिए कोई कदम क्यों नहीं उठाया गया? प्रिंसिपल मीना देवी का गुनाह तो कानून तय करेगा लेकिन नीतीश सरकार भी अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकती.
केंद्र की रिपोर्ट आगे ये कहती है कि घटना के बाद स्थानीय प्रशासन और अफसरों ने घंटों तक कुछ नहीं किया. रिपोर्ट के मुताबिक खाने के तुरंत बाद बच्चे बीमार होने लगे तो प्रिसिंपल भाग खड़ी हुई. बीमार बच्चों को देखने वाला कोई नहीं था. सरकारी अफसर हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे. स्थानीय डिस्पेंसरी में डॉक्टर भी नहीं था. अगर प्रशासन हरकत में आता तो बच्चों की जान बचाई जा सकती थी.
रिपोर्ट साफ कहती है. ये घटना सरासर लापरवाही का नतीजा है. योजना के अमल में कई कमियां है. बिहार में 70 हजार स्कूल हैं लेकिन 18 हजार में स्कूल बिल्डिंग तक नहीं. मिड-डे मील खुले में और गंदी जगहों पर बनता है. ज्यादातर जगहों पर अनाज रखने का कोई इंतजाम नहीं है.
केंद्र की रिपोर्ट से साफ है कि अगर नीतीश सरकार मिड-डे मील योजना सही तरीके से लागू करती तो ये हादसा नहीं होता. और हादसे के बाद भी अगर सरकारी अफसर कुछ कदम उठा लेते तो कीमती जानें बच सकती थीं?