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शहीद की शहादत को सब याद करेंगे, लेकिन बेटे को तो पिता का इंतजार

प्रितम का जन्म 23 सितंबर को हुआ है और उसके पिता को नक्सलियों के क्रूर इरादों ने 24 अप्रैल को छिन लिया.छत्तीसगढ के सुकमा में जिन 25 सीआरपीएफ जवानों की शहादत हुई उसमें दानापुर के 26 वर्षीय सौरभ कुमार भी हैं.

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छत्तीसगढ़ के सुकमा में हमला
छत्तीसगढ़ के सुकमा में हमला

सात महीने के प्रितम को क्या पता कि अब उसके पिता इस दुनिया में नहीं है. वो तो अपने दादा की गोद में उसी तरह से खेल रहा है जैसे पहले भी खेला करता होगा. प्रितम का जन्म 23 सितंबर को हुआ है और उसके पिता को नक्सलियों के क्रूर इरादों ने 24 अप्रैल को छिन लिया.छत्तीसगढ के सुकमा में जिन 25 सीआरपीएफ जवानों की शहादत हुई उसमें दानापुर के 26 वर्षीय सौरभ कुमार भी हैं.

सौरभ की शादी के अभी तीन साल भी पूरे नहीं हुए हैं. पत्नी प्रीति बेटे के जन्म के बाद पहली बार अपने मायकें गई थी तभी यह मनहूस खबर आई. पति के शहीद होने की खबर सुनकर प्रीति भागी-भागी ससुराल आई, रो-रो कर उसका बुरा हाल है. मां रेखा देवी और प्रीति की चीख-पुकार से पूरा मुहल्ला गूंज रहा है.

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सौरभ कुमार ने 2011 में सीआरपीएफ की नौकरी ज्वाईंन की थी, मन में अरमान था देश की सेवा करना. घर भी दानापुर छावनी के सटा हुआ है इसलिए उसकी यह इच्छा और प्रबल होती गई. जवानों को वर्दी में सजे देखकर उसे गर्व होता था. पिता ने कई बार सिविल की नौकरी करने की सलाह दी लेकिन सौरभ को तो वर्दी का शौक था. और इसी वर्दी में ही वो इस दुनिया से चला भी गया.

पिता कमलेश कुमार पटना के बिजली विभाग में कर्मचारी है. उनको बेटे की शहादत पर वो गर्व करते हैं. उनका कहना है कि उनके दो बेटे और हैं अगर वो सेना में जाना चाहेंगे तो वो उन्हें रोकेंगे नहीं. लेकिन साथ ही उन्हें अफसोस भी है कि अगर सीआरपीएफ का सूचना तंत्र मजबूत होता तो इतनी बड़ी घटना न घटती. अभी हाल में 11 मार्च को भी घटना घटी थी.

कमलेश कुमार ने कहा कि बेटा होली के लिए, मार्च में छुट्टी पर घर आया था. और 29 मार्च को यहां से चला गया था. सौरभ जाना नहीं चाहता था क्योंकि बेटे के जन्म के बाद पहली बार देखा था इसलिए भी जाने में उसे दिक्कत हो रही थी. लेकिन मैंने उससे कहा कि अपने कर्त्वय पर डटें रहों वो बोला था कि स्थिति ठीक नहीं है. उसी दिन वो आखिर बार स्टेशन पर उसे छोड़ने गए थे.सौरभ देर तक हाथ हिलाता रहा. मुझे क्या पता था कि वो फिर लौट कर नहीं आयेगा.

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कमलेश कुमार का कहना है कि पिछले तीन साल से वो छत्तीसगढ़ में तैनात था. इस दौरान दो बार वो वहां भी गए जहां वो डियूटी देता था बडी मुश्किल की डियूटी थी, फिर भी उसे डियूटी से लगाव था.

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