विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने नालंदा विश्वविद्यालय का शुक्रवार को उद्घाटन करते हुए कहा कि यह विश्वविद्यालय नहीं परंपराओं का एक स्वरूप है जो कभी मरती नहीं, परिस्थितिवश कभी-कभी विलुप्त हो जाती हैं. लेकिन उनके आस्था रखने वाले लोग एक दिन उन परंपराओं की शुरुआत दोबारा जरूर करते हैं.
गुप्त काल में दौरान छठी शताब्दी में शुरू हुए प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय को 1193 ईस्वी में तुर्की शासक कुतुबुद्दीन ऐबक के सिपहसालार बख्तियार खिलजी ने ध्वस्त कर दिया था. इसके अवशेष से 12 किलोमीटर की दूरी पर इस विश्वविद्यालय में शिक्षण कार्य गत एक सितंबर से ही शुरू हो गया था.
राजगीर स्थित कंवेंशन सेंटर में शुक्रवार को नालंदा विश्वविद्यालय का उद्घाटन करते हुए सुषमा ने कहा कि वह यहां आकर अभिभूत हैं और यह दिन उनके लिए बहुत ही गौरव का दिन है. उन्होंने कहा कि पूर्व की भांति यह विश्वविद्यालय ज्ञान के माध्यम से भारत को पूरी दुनिया से जोड़ने के लिए सेतु और नींव के रूप में काम करेगा.
सुषमा ने कहा कि यहां आने के दौरान एक पत्रकार के यह कहने पर कि वह पुराने नालंदा विश्वविद्यालय को पुनर्जीवित करने जा रही हैं हमने इंकार करते हुए कहा कि पुनर्जीवित तो उसे किया जाता है जो मर चुका हो. उन्होंने कहा, 'ऐसे ही आस्थावान लोगों में एक पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम शामिल हैं जिन्होंने वर्ष 2006 में कहा था कि हमें नालंदा विश्वविद्यालय की पुनर्स्थापना करनी चाहिए और संयोग देखिए उसी वर्ष के मध्यकाल में सिंगापुर के तत्कालीन विदेश मंत्री जार्ज जियो ने एक प्रस्ताव रखा जिसका नाम नालंदा प्रपोजल था.'
एशिया की शान बनेगा नालंदा विश्वविद्यालय
सुषमा ने कहा कि केवल बिहार और हिंदुस्तान से आस्था नहीं जुड़ी हैं बल्कि हमारे बहुत से पड़ोसी देश और कई पूर्वी एशिया के देश नालंदा का हिस्सा बनना चाहते हैं और 2007 में एक प्रस्ताव आया तथा 2009 में एक प्रस्ताव पारित हुआ. सुषमा ने कहा कि थाईलैंड और सिंगापुर के साथ कई पूर्वी एशिया के देशों ने नालंदा की पुनर्स्थापना को लेकर यह कहते हुए रुचि दिखाई. वे उसके साथ जुड़ना चाहते हैं और आज उन देशों में से कई के राजदूत यहां उपस्थित हैं.
उन्होंने कहा कि केवल पूर्वी एशिया के देश ही नहीं बल्कि बांग्लादेश ने भी नालंदा से जुडने के प्रति रुचि दिखायी है. उन्होंने कहा कि ज्ञान बांधकर नहीं रखा जाता है. इसलिए इस विश्वविद्यालय को केवल पूर्वी एशिया के देशों तक बांधकर नहीं रखा जाएगा. नालंदा एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय रहा है जिसने केवल बिहार और हिंदुस्तान को नाम नहीं दिया बल्कि विद्या के साथ जुड़े हुए पूरे जगत को नाम दिया.
समारोह के शुरुआत में बिहार के मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी द्वारा सुषमा से बिहार के लिए कुछ किए जाने का आग्रह करने पर उन्होंने कहा बिहार के विकास की दिशा में नालंदा विश्वविद्यालय अपने आप में शुरुआत होगी. उन्होंने कहा, 'इसके आज उद्घाटन के साथ इस प्रदेश को अंतरराष्ट्रीय जगत से जोड़ने की शुरुआत हो रही है. इसलिए जितना भी गौरव का दिन इस प्रदेश के लोगों के लिए है उतना ही गौरव का दिन हिंदुस्तान के लिए है.
नालंदा में बनेगा एयरपोर्ट
मुख्यमंत्री के इच्छा जताने पर कि वह नालंदा में एक बड़ा हवाई अड्डा बनाना चाहते हैं, सुषमा ने कहा कि पटना हवाई अड्डे से यहां आने के बजाय पर्यटक और अन्य लोग सीधे यहीं उतरें.
सुषमा ने कहा कि बिहार विधानमंडल ने 2007 में इस विश्वविद्यालय की पुनर्स्थापना को लेकर एक अधिनियम पारित किया था और यह एक राज्य विश्वविद्यालय बनने वाला था. इसके बारे में केंद्र ने सोचा कि यह उचित नहीं होगा इसलिए विदेश मंत्रालय ने इसको अपना लिया और इसकी रचना हम भारतीय विश्वविद्यालय के रूप में करने लगे. उन्होंने कहा कि इस विश्वविद्यालय के प्रति अन्य देशों की बढती रुचि को देखते हुए यह निर्णय लिया गया कि उसे केवल भारत की परिधि से बांधकर रखना उसके साथ अन्याय करना होगा. इसे अंतरराष्ट्रीय जगत में पहुंचने के लिए विदेश मंत्रालय के माध्यम से इससे संबंधित विधेयक 2010 में संसद में पारित हुआ.
सुषमा ने कहा कि स्थानीय राजनीति से दूर और दलों की सीमाओं को तोड़कर लोग इसके पक्ष में बोले और इसके खिलाफ एक भी भाषण नकारात्मक नहीं हुआ और सभी चाहते थे कि नालंदा की स्थापना होगी तो बिहार के साथ भारत का गौरव बढ़ेगा. उन्होंने इस विश्वविद्यालय को केंद्र से हरसंभव मदद का भरोसा दिलाते हुए कहा कि इसके लिए भारत सरकार ने 2727 करोड़ रुपये अगले दस वर्षों में खर्च किए जाने हेतु स्वीकृत किया है.
सुषमा ने कहा कि हम लोगों की कोशिश होगी अधिक से अधिक छात्र और बेहतर शिक्षक यहां आएं. यह विश्वविद्यालय अपनी पुरानी खोई हुई प्रतिष्ठा को हासिल करे.
446 एकड़ में फैला है नालंदा विश्वविद्यालय
इससे पहले समारोह को संबोधित करते हुए बिहार के मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी ने प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम की नालंदा विश्वविद्यालय की पुनर्स्थापना के सुझाव पर इस विश्वविद्यालय को विकसित किए जाने की उनकी दूरदृष्टि के लिए तारीफ की.
मांझी ने कहा कि बिहार सरकार ने इस विश्वविद्यालय के लिए 446 एकड़ जमीन उपलब्ध करायी और राज्य सरकार ने उसके आसपास के गांवों के विकास के लिए एक विकास प्राधिकार के गठन का निर्णय लिया है. इसके अलावा यहां एक हवाई अड्डे के निर्माण के लिए 1400 से 1500 एकड़ जमीन चिन्हित की गयी है. समारोह में भारत में सिंगापुर के उच्चायुक्त लिम थुआन कुआन, भारत में थाईलैंड के राजदूत छलित मनितयकुर, ऑस्ट्रेलिया, वियतनाम, जर्मनी, जापान और लाओस के राजनयिक, बिहार के संसदीय कार्य मंत्री श्रवण कुमार, पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी, विदेश मंत्रालय में सचिव (पूर्वी) अनिल वाधवा और नालंदा विश्वविद्यालय की कुलपति गोपा सभरवाल, संकाय सदस्य लार्ड मेघनाथ देसाई, पूर्व राजदूत एन के सिंह सहित कई अन्य बुद्धजीवी उपस्थित थे.
सात में से दो विषयों की पढ़ाई शुरू
फिर से शुरू हुए नालंदा विश्वविद्यालय में कुल सात विषय पढ़ाए जाने की योजना है, लेकिन वर्तमान में दो विषयों स्कूल ऑफ एनवाइरनमंट एंड इकोलॉजिकल स्टडीज और स्कूल ऑफ हिस्टोरिकल स्टडीज संकायों की पढ़ाई शुरू हो पायी है. वर्ष 2020 में इसका निर्माण कार्य पूरा होगा.
इस विश्वविद्यालय का वर्तमान में अपना भवन नहीं होने के कारण शिक्षण कार्य राजगीर स्थित अंतरराष्ट्रीय कंवेंशन सेंटर में जारी है और जिन दो विषयों की पढाई शुरू हुई है उनमें अभी 15 छात्र अध्ययन कर रहे हैं तथा वहां 11 शिक्षक हैं.
वर्तमान में इस विश्वविद्यालय में शिक्षा ग्रहण कर रहे छात्रों में एक-एक जापान और भूटान का है और आने वाले समय में और भी छात्र यहां से जुडेंगे.
इस विश्वविद्यालय का कुल निर्माण क्षेत्रफल 366811 वर्ग मीटर है. इसके परिसर में कुल 38 भवन होंगे जिसमें एक साथ सात हजार छात्र रह सकेंगे. इसके परिसर में एक पुस्तकालय भी होगा.
नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन को 2012 में इस विश्वविद्यालय का कुलाधिपति नियुक्त किया गया था और इसके उद्घाटन के अवसर पर उनकी अनुपस्थिति में उनके द्वारा भेजे गए संदेश को पढ़ा गया.