बिहार की राजनीति आज चौराहे पर खड़ी दिखाई दे रही है. बिहार के सभी राजनीतिक गठबंधनों में खींचतान मची है. सबसे ज्यादा बवाल अभी एनडीए गठबंधन में है. बीजेपी और जदयू में तो बयान के तीर चल ही रहे थे, उधर बीजेपी और वीआईपी पार्टी के अध्यक्ष और मंत्री मुकेश सहनी में ठन गई है.
बीजेपी नहीं चाहती है कि मुकेश सहनी की पार्टी यूपी में चुनाव लड़े. लेकिन मुकेश सहनी मानने को तैयार नहीं है. बीजेपी तमाम तरीकों से मुकेश सहनी को मनाने की कोशिश कर चुकी है. तब बीजेपी ने गठबंधन के तहत बोचहा सीट वापस लेने की भी धमकी दी, जब इस पर भी मुकेश सहनी नहीं मानने और जब तो फिर बीजेपी के कई नेताओं ने कहा कि उन्हें जहां जाना है वहां जाए.
बीजेपी जिस तरीके से बयान दे रही है उससे तो यही लगता है कि उसे सरकार से मतलब नहीं है. बहुत कम संख्या में बहुमत से चल रही सरकार में भला कहीं ऐसा कहा जा सकता. मुकेश सहनी को बीजेपी कोटे सीट मिली हुई है. वर्तमान में उनके तीन विधायक है. बीजेपी ये मान के चल रही होगी कि उनके विधायक उनके साथ नही जाएंगे. तभी इस तरह के बयान बीजेपी के तरफ से आ रहे हैं. मुकेश सहनी मंत्री जरूर है, लेकिन जिस एमएलसी सीट से वो विधायक है उसका कार्यकाल इसी साल जून में खत्म हो जाएगा.
उधर राजद ने दावा किया था कि खरमास के बाद बिहार में खेला होगा. राजद प्रवक्ता मृतुन्जय तिवारी का कहना है कि खेला तो शुरू हो चुका है अब देखिए क्या होता है, जिस तरह से बीजेपी मुकेश सहनी का अपमान कर रही है उससे तो साफ है. 22 जनवरी को बीजेपी ने पटना में कोर कमेटी की बैठक पटना में बुलाई है. जिसमें बिहार के वर्तमान परिस्थितियों के बारे में चर्चा होगी और उसकी रिपोर्ट केंद्रीय नेतृत्व को दी जाएगी.
इन सबके बीच जदयू यूपी में बीजेपी से गठबंधन नहीं होने पर भी चुनाव लड़ने पर आमादा है. बीजेपी ने यह साफ भी कर दिया है कि कम सीट होने के बावजूद बीजेपी ने नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाया, ऐसे में जदयू को यूपी में बीजेपी की मदद करनी चाहिए. अब इस सियासी घालमेल में बिहार की राजनीति किस रास्ते जाएगी ये कहना तो अभी जल्दबाजी होगी. लेकिन यूपी चुनाव तक बिहार की राजनीति भी अपना रास्ता ढूंढ ही लेगी.