बिहार में नशाबंदी लागू करने से पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक पेशकश की थी, जिसकी पूरी तरह हवा निकल गई है. मुख्यमंत्री ने पेशकश की थी कि शराब की दुकानों के मालिक नशाबंदी लागू होने के बाद अपनी दुकानों को मिल्क पार्लर में तब्दील कर सकते हैं. बिहार में नशाबंदी को लागू हुए छह महीने हो चुके हैं लेकिन अभी तक नीतीश के सुझाव को मानने के लिए केवल एक ही शख्स सामने आया है.
बता दें कि इस साल अप्रैल में नीतीश ने एलान किया था कि शराब की दुकानों के मालिक बिहार स्टेट मिल को-ऑपरेटिव फेडेरेशन लिमिटेड के मिल्क पार्लर खोल सकते हैं, जहां से सुधा ब्रैंड के दूध उत्पाद बेचे जा सकते हैं.
आजतक/इंडिया टुडे ने नीतीश के एलान के 6 महीने बाद जमीनी स्थिति जानने की कोशिश की तो चौंकाने वाले नतीजे सामने आए. रियलिटी चैक के लिए पटना, छपरा, सहरसा, गया और दरभंगा जैसे शहरों को चुना गया. सभी शहरों में केवल गया में एक ऐसा शख्स दिखा जिसने शराब की दुकान को मिल्क पार्लर में तब्दील किया. दीपक कुमार नाम के इस दुकानदार ने कहा, "मेरी बोध गया में शराब की दुकान थी. वहीं विष्णुपाद मंदिर स्थित है. पहले यहां लोग शराब खऱीदने के लिए आते थे. लेकिन नशाबंदी लागू होने के बाद मैंने सोचा कि पास में मंदिर स्थित है तो क्यों नहीं मिल्क पार्लर शुरू किया जाए. अब मैं यहां दूध, दही, पनीर जैसे उत्पाद बेचता हूं."
लेकिन दीपक जैसे और लोग बिहार में ढूंढने से भी नहीं मिले. नशाबंदी लागू होने के बाद बिहार में शराब की 6000 से ज्यादा दुकानें बंद हो गईं. अधिकतर दुकानदारों ने दुकानों को दूसरे धंधों में तब्दील कर लिया लेकिन मिल्क पार्लर चलाने में किसी ने दिलचस्पी नहीं दिखाई.
दरभंगा में पहले शराब की दुकान चलाने वाले मनोज कुमार ने कहा कि उन्होंने अब मोटर पार्ट्स का कारोबार शुरू कर दिया है. मनोज ने ये भी कहा कि सरकार ने मिल्क पॉर्लर शुरू कराने का वादा किया था लेकिन अभी तक इस दिशा में कुछ नहीं किया.
छपरा में भी ऐसे ही एक दुकानदार ने शराब की दुकान पर मोबाइल स्टोर शुरू कर दिया. मनोज नाम के इस दुकानदार ने कहा कि दुकान के आगे लंबी कतारें लगी रहती थी. लेकिन नशाबंदी के बाद धंधा बदलने के लिए मजबूर होना पड़ा. मनोज ने कहा कि उन्हें मिल्क पार्लर के कारोबार का कुछ भी पता नहीं है.
नशाबंदी की वजह से राज्य सरकार को करीब 5000 करोड़ रुपए के राजस्व का नुकसान उठाना पड़ रहा है. इसके अलावा कई लोगों को बेरोजगार होना पड़ा है. बिहार के मुख्यमंत्री की 'दूध-दही' योजना को कोई लेने वाला नहीं है. नशाबंदी से पहले शराब की दुकानें चलाने वालों का कहना है कि जो मुनाफा शराब बेचकर होता था, वो दूध उत्पादों को बेचकर कहां हो सकता है.