क्या बिहार में कोई नई सियासी खिचड़ी पक रही है? शनिवार को सामने आई एक तस्वीर ने इस सवाल को जन्म दे दिया है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली बिहार की राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सरकार में सहयोगी हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) के मुखिया जीतन राम मांझी और विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के अध्यक्ष मुकेश सहनी ने शनिवार को बंद कमरे में मुलाकात की.
मुलाकात के बाद दोनों ही नेताओं ने इसकी तस्वीर सोशल मीडिया पर साझा की जिसके बाद बिहार की सियासत एक बार फिर गर्म हो गई है.
दोनों नेताओं ने सोशल मीडिया पर ये जानकारी दी कि इस मुलाकात के दौरान पंचायत प्रतिनिधियों के कार्यकाल को बढ़ाए जाने के साथ ही अन्य मुद्दों पर भी चर्चा हुई. मांझी और सहनी की मुलाकात पर हम के प्रवक्ता दानिश रिजवान ने कहा कि दोनों नेताओं के बीच राज्य की वर्तमान स्थिति के साथ ही राजनीतिक बातें भी हुईं. राज्य के विकास और सुशासन पर भी विमर्श हुआ. उन्होंने ये भी बताया कि कि 2 जून को पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक बुलाई गई है जिसमें जनहित और पार्टी की मजबूती को लेकर चर्चा की जाएगी.
दूसरी तरफ, प्रदेश का मुख्य विपक्षी दल राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) इस मुलाकात को एक मौके की तरह देख रहा है. आरजेडी के प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने दावा किया कि एनडीए सरकार में मांझी और सहनी की उपेक्षा हो रही है. किसी भी निर्णय में उनकी सलाह नहीं ली जा रही जबकि इन्हीं के सहारे बिहार में एनडीए की सरकार चल रही है. उन्होंने दावा किया कि मांझी और सहनी की ये मुलाकात रंग लाएगी और इसी बरसात में बिहार में एनडीए की नाव डूब जाएगी. आने वाले दिनों में बिहार में राजनीतिक भूचाल आएगा.
उधर जीतन राम मांझी के करीबी एक नेता ने अपनी पहचान उजागर न करने की शर्त पर बताया कि मांझी और सहनी, दोनों ही एनडीए गठबंधन में अपनी उपेक्षा और सरकार के फैसलों में बहुत कम भागीदारी से नाराज हैं. ये ज्वालामुखी है, जो किसी भी दिन फट सकता है. दरअसल मांझी और सहनी, दोनों ही बीते कुछ महीनों से नाराज बताए जा रहे हैं. मंत्रिमंडल विस्तार और राज्यपाल कोटे से एमएलसी के मनोनयन में दोनों ही नेताओं को मायूसी झेलनी पड़ी थी.
जीतनराम मांझी ने तो यहां तक कह दिया था कि गठबंधन धर्म का पालन नहीं किया गया. उधर मुकेश सहनी को तो खुद के लिए ही एमएलसी की पूर्णकालिक सीट नहीं मिली. ऊपर से जब उनके भाई सरकारी कार्यक्रमों का उद्घाटन करते हुए सुर्खियों में आए तो नीतीश कुमार की नाराजगी का सामना करना पड़ा वो अलग. हाल ही में हुई पप्पू यादव की गिरफ्तारी की भी मांझी और सहनी ने कड़े शब्दों में आलोचना की थी.
कई मौकों पर सरकार को घेर चुके हैं मांझी
हालांकि, मुकेश सहनी कभी खुलकर नाराजगी जाहिर नहीं करते लेकिन जीतन राम मांझी कई मौकों पर अपनी ही सरकार को घेर चुके हैं. वे अपनी सरकार को आईना दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ते. मांझी की भाषा तो कई मौकों पर विपक्ष की तरह दिखाई पड़ती है. लॉकडाउन के फैसले से लेकर शराबबंदी तक, मांझी हमेशा नीतीश सरकार को कटघरे में खड़ा करते रहे हैं.
हाल के दिनों में मांझी ने आरजेडी के पूर्व सांसद सजायाफ्ता मोहम्मद शहाबुद्दीन की मौत के मामले की न्यायिक जांच की मांग भी कर डाली थी जिससे एनडीए सरकार के लिए असहज स्थिति उत्पन्न हो गई.
नीतीश कुमार के सहारे ही एनडीए में वापसी करने वाले मांझी साफ कह चुके हैं कि वे नीतीश कुमार के साथ हैं, बीजेपी के नहीं. ये कयास भी लगाए जाते हैं कि मांझी, नीतीश के इशारे पर बीजेपी पर हमला बोलते रहते हैं. हाल ही में मांझी ने वैक्सीनेशन के सर्टिफिकेट पर प्रधानमंत्री की फोटो को लेकर भी आपत्ति जताते हुए डेथ सर्टिफिकेट पर भी उनकी तस्वीर लगाने की मांग की थी. इसके बाद एनडीए के भीतर ही घमासान की स्थिति उत्पन्न हो गई थी.
मांझी ने नीतीश को भी दी थी नसीहत
अभी दो दिन पहले ही जीतनराम मांझी ने नीतीश कुमार को ही नसीहत दे दी कि यदि सही मायने में स्वास्थ्य संकट से निपटना है तो गांवों के उप स्वास्थ्य केंद्रों तक को सुव्यवस्थित करना होगा ताकि भविष्य में स्वास्थ्य संकट से निपटा जा सके. जीतन राम मांझी ने एक वेबपोर्टल से बातचीत के दौरान अपने बयानों पर सफाई देते हुए यहां तक कह डाला था कि अगर सच कहना बगावत है, तो समझो हम भी बागी हैं.
तो बिहार में बदल जाएंगे सियासी समीकरण?
दरअसल, बिहार में नीतीश कुमार की सरकार बीजेपी, हम और वीआईपी के सहारे चल रही है. मांझी और सहनी मुख्यमंत्री की कुर्सी के दो अहम पिलर हैं. इनका थोड़ा सा भी इधर-उधर होना नीतीश को कुर्सी से हटा सकता है.
यही वजह है कि मांझी और सहनी सरकार पर दबाव बनाए रखना चाहते हैं. मांझी और सहनी के राजनीतिक सफर और महत्वाकांक्षा को देखते हुए इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि अगर एनडीए में हालात जल्द नहीं सुधरे तो बिहार में नए सियासी समीकरण देखने को मिल सकते हैं.