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बिहार: सत्ता की कुर्सी से...समाज सुधार यात्रा तक, जानें नीतीश के लिए कैसा रहा 2021?

साल के शुरुआती महीनों में खुशी, फिर तनाव बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए 2021 में राजनीतिक लिहाज से 'रपटीली' राहों वाला रहा. केंद्र सरकार से दूर रहते-रहते भी आखिर में नीतीश करीब आ ही गए. कोरोना ने बिहार के स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खोल दी. संक्रमण ने मौत का ऐसा मंजर प्रस्तुत किया कि हजारों लोगों की जान चली गई.

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Nitish Kumar
Nitish Kumar
स्टोरी हाइलाइट्स
  • 2021 की शुरुआत में मिला सियासी 'गिफ्ट'
  • कोरोना के कहर से कराह उठा बिहार

साल के शुरुआती महीनों में खुशी, फिर तनाव बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए 2021 में राजनीतिक लिहाज से 'रपटीली' राहों वाला रहा. केंद्र सरकार से दूर रहते-रहते भी आखिर में नीतीश करीब आ ही गए. कोरोना ने बिहार के स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खोल दी. संक्रमण ने मौत का ऐसा मंजर प्रस्तुत किया कि हजारों लोगों की जान चली गई. मुख्यमंत्री जातीय जनगणना को जनतंत्र का श्रृंगार बताते हुए मुखर हो गए. उपचुनाव में दो सीटों पर मिली जीत ने मुख्यमंत्री के चेहरे पर मुस्कान ला दी. उधर, जहरीली शराब से हुई 26 मौतों ने मुस्कान को मातम में बदल दिया. एक्शन में आए सीएम नीतीश ने शराबबंदी पर सख्ती दिखाई और अब 2021 के अंत में अपनी सियासी ताकत दिखाने के लिए समाज सुधार यात्रा पर निकले हैं.

2021 के शुरुआती दौर में मिला सियासी 'गिफ्ट'

2020 में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में बाकी पार्टियों के मुकाबले नीतीश कुमार की पार्टी जदयू को काफी कम सीटें मिलीं. लेकिन मुख्यमंत्री की गद्दी पर बैठकर नीतीश कुमार ने विरोधियों को 'बाइस'कोप थमा दिया. 2021 ने मुख्यमंत्री को सत्ता में बने रहने का सौगात दिया. पार्टी के खाते में मात्र 43 सीटें आईं, लेकिन गठबंधन की गांठ को मजबूत कर मुख्यमंत्री कुर्सी पर जम गए. सहयोगी पार्टी बीजेपी को साध लिया और सरकार चलाने लगे. चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी राजद लगातार नीतीश कुमार पर चोर दरवाजे से दोबारा कुर्सी पर बैठने का आरोप लगाती रही. नीतीश मुस्कुराते हुए अपने सियासी सफर पर रवाना हो गए.

केंद्र के साथ रिश्ते और मधुर हुए

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार केंद्र में भारी बहुमत से बनी बीजेपी की सरकार को बाहर से सपोर्ट करने का राग अलापते रहे. उधर, नीतीश कुमार के चाणक्य कहे जाने वाले आरसीपी सिंह आखिरकार केंद्र में मंत्री पद पा गए. केंद्र सरकार ने अपनी योजनाओं को प्रभावकारी तरीके से अंजाम देने के लिए कैबिनेट विस्तार का निर्णय लिया. जिसमें मोदी मंत्रिमंडल के सात मंत्रियों को प्रमोट किया गया. साथ ही 36 नये नवेले चेहरों को मंत्रिमंडल में जगह दी गई. बिहार से नए मंत्रिमंडल में शामिल होने वालों में सहयोगी दल जदयू भी शामिल रही. जदयू नेता आरसीपी सिंह ने इस्पात मंत्री के रूप में शपथ ली. इस तरह जदयू में केंद्र सरकार में सहभागी बन गई.

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नीतीश ने खेला जातीय जनगणना का कार्ड

कभी बिहार के लिए विशेष दर्जे की मांग को लेकर कैंपेन चलाने वाले नीतीश कुमार कुछ दिनों तक शांत रहे. अचानक जदयू के कुछ बयानवीर नेताओं ने नीतीश की छवि में पीएम का रूप देख लिया. एक बार फिर नीतीश कुमार एक्टिव हो गए और जातीय जनगणना का राग छेड़ दिया. सियासी चर्चाओं में हमेशा शीर्ष पर रहने वाले नीतीश अचानक चर्चा में आ गए. एक बार फिर बिहार की सिसायत में जातीय जनगणना वाला राग सुनाई देने लगा. अगस्त में नीतीश कुमार ने केंद्र को चिट्ठी लिखकर मसले को राजनीतिक रफ्तार दे दी. समर्थन में प्रतिपक्ष के नेता तेजस्वी यादव भी सामने आ  गए. मुख्यमंत्री के पक्ष में अचानक बिहार में माहौल बन गया. नीतीश कुमार अपने साथ तेजस्वी यादव, मुकेश सहनी, विजय कुमार चौधरी और कांग्रेस विधायक दल के नेता अजीत शर्मा के साथ नई दिल्ली पहुंचे और पीएम मोदी से मुलाकात कर जातीय जनगणना की मांग की. केंद्र का रियेक्शन इस मसले पर पूरी तरह कूल-कूल रहा. नीतीश भी चुपचाप बिहार लौट आए.

कोरोना के कहर से कराह उठा बिहार

कोरोना की दूसरी लहर ने बिहार में कहर मचा दिया. स्वास्थ्य व्यवस्था और बिहार सरकार अचानकर अग्निपथ पर खड़ी हो गई. ऑक्सीजन सहित व्यवस्था की कमियों ने बिहार के हजारों लोगों की बलि ले ली. बिहार के मुखिया अचानक मौन बन गए. आनन-फानन में स्वास्थ्य सचिव का प्रभार प्रत्यय अमृत को देकर डैमेज कंट्रोल करने की कोशिश की, लेकिन बदनामी ज्यादा इसलिए नहीं हुई कि केंद्र सरकार की कृपा दृष्टि नीतीश कुमार पर बनी रही. कोरोना के दौरान राज्य के हर जिले से भयावह तस्वीरें मीडिया में सामने आने लगी. सरकार इस दौरान मौन बनकर लोगों के मौत का तमाशा देखती रही. जब पटना हाईकोर्ट ने इस मामले में हस्तक्षेप किया और राज्य सरकार को कड़ी फटकार लगाई, तब जाकर बिहार में लॉकडाउन की घोषणा हुई. सुशासन की सरकार को चौतरफा आलोचनाओं का सामना करना पड़ा.

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साल के अंतिम महीनों में मिली दोहरी खुशी लेकिन उसके बाद जदयू के लिए दोहरी खुशी मिली. नवंबर महीने में बिहार की दो सीटों तारापुर और कुशेश्वरस्थान पर हुए उपचुनाव में पार्टी को जबरदस्त जीत मिली. पार्टी ने इस चुनाव के लिए अपनी पूरी सियासी ताकत झोंक दी थी. परिणाम भी बेहतरीन मिला. प्लानिंग के साथ पार्टी ने कैंपेनिंग की. रिजल्ट शानदार रहा. अंत समय में जदयू को टक्कर देने राजद सुप्रीमो लालू यादव भी मैदान में उतरे. लेकिन उनका जादू नहीं चल पाया. जदयू को इस जीत से संगठनात्मक तौर पर संतुष्टि और मजबूती भी मिली. एक बार फिर नीतीश कुमार के चेहरे पर मुस्कान आ गई. 

जहरीली शराब से मौत मुख्यमंत्री परेशान

2016 में शराबबंदी की घोषणा कर पूरे देश में चर्चा का विषय बने मुख्यमंत्री को झटका उस वक्त लगा, जब गोपालगंज में जहरीली शराब पीकर 26  से 39 लोग काल के गाल में समा गए. बिहार में शराबबंदी पर सवालिया निशान खड़ा होने लगा. विशेषज्ञों ने कहा कि बिहार में शराब माफियाओं ने समानांतर सरकार बना लिया है. उनका अर्थतंत्र काफी मजबूत है. पूरे बिहार में अवैध शराब की तस्करी का सम्राज्य खड़ा हो गया. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक बार फिर परेशान हो गए. उन्होंने पूरे बिहार के अधिकारियों को फटकार लगाई. खुद एक समीक्षा बैठक की और शराबबंदी पर सख्ती दिखाई. परिणाम सामने है. लगातार अवैध शराब में गिरफ्तारी और अवैध शराब की बरामदगी जारी है. मुख्यमंत्री समाज सुधार यात्रा पर हैं. 2021 के आईने में 2022 के स्कोप अभी से देखने लगे हैं.

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