बिहार सरकार के मंत्री ललन सिंह ने कहा कि अगर सीबीआई ने 2008 में रेलवे टेंडर मामले की जांच शुरू की होती तो आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव अभी तक सजा पा चुके होते. लेकिन तब यूपीए सरकार ने इस मामले की जांच सीबीआई को न देकर रेलवे को ही जांच करने का जिम्मा दे दिया.
बिहार सरकार में जलसंसाधन मंत्री राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह ने सबसे पहले 2008 में रेलवे के टेंडर के बदले जमीन का मामला उठाया था. ललन सिंह के पास उस समय लालू प्रसाद यादव के खिलाफ सारे दस्तावेजी सबूत थे कि रेलवे ने रांची के बीएनआर होटल और भुवनेश्वर के रेलवे होटल निजी हाथों में देने के एवज में पटना में जमीन ली है.
ललन सिंह ने कहा कि ये जमीन पटना के चाणक्या होटल के मालिक विजय कोचर और विनय कोचर की थी और रेलवे होटल का टेंडर भी उन्हें ही मिला. उस समय टेंडर के बदले जो जमीन मिली थी वो डीलाइट मार्केटिंग कंपनी को दी गई थी. जिसकी मालकिन सरला गुप्ता थीं और जो आरजेडी के नेता प्रेमचंद गुप्ता की पत्नी थीं. ये जमीन रेलवे का होटल देने के एवज में रजिस्ट्री की गई है इसलिए यह भ्रष्टाचार का मामला बनता है.
ललन सिंह ने कहा कि हम लोगों ने तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को सारे दास्तावेज सौंपे और विस्तार से बात बताई. लोगों का विश्वास था कि मनमोहन सिंह निष्पक्ष जांच करेंगे लेकिन बाद में पता चला कि रेलवे मंत्रालय को ही जांच दे दी गई. जिसके विरूद्ध भ्रष्टाचार का आरोप है. यह लीपा पोती का मामला था, उस समय लालू प्रसाद यादव सरकार में थे. आज यह साबित हो गया कि वो जमीन लालू प्रसाद यादव की थी. उस समय कंपनी को माध्यम बनाया गया था. ये इसलिए भी साफ हो गया कि 2011 के बाद डीलाइट मार्केटिंग कंपनी के सारे शेयर लालू प्रसाद यादव के परिवार के पास आ गए और दूसरा कोई भी इस कंपनी का शेयर धारक नहीं रहा.
ललन सिंह ने कहा कि अगर 2008 में ही इस मामले की निष्पक्ष जांच कराई गई होती तो ये कार्रवाई उसी समय हो गई होती. लेकिन आज सीबीआई निष्पक्ष जांच की तरफ बढ़ रही है. ललन सिंह ने कहा कि इस मामले में पुख्ता सबूत है, जमीन के कागजात हैं. उस जमीन के अलग बगल वालों से भी जमीन लिखवाई और एवज में नौकरी दी इन सबके सबूत मौजूद हैं. कुछ ऐसे लोग भी थे जो चारा घोटाले में गवाह थे उनकी जमीन भी लिखाई गई.
ललन सिंह के मुताबिक इस मामले में आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव का निकलना मुश्किल है. क्योंकि सीबीआई जिस दिशा में निष्पक्षा के साथ बढ़ रही है उससे लगता है कि यह अंतिम परिणति तक पहुंचेगी.
ललन सिंह का कहना है कि लालू प्रसाद यादव ने ही अपने बेटे को इस मामले में फंसाया है. विनाश काले विपरीत बुद्धि अगर लालू यादव को अपने बेटे को राजनीति में लाना था तो इस सम्पति को तेजस्वी यादव के नाम करने की क्या जरूरत थी. ये तो वैसे ही वारिस होने के नाते तेजस्वी यादव के नाम हो जाती.