बिहार में शराबबंदी से सूबे में तैनात सेना के जवानों की परेशानियां बढ़ गई हैं. जवानों का कहना है कि शराबबंदी के नियमों में उन्हें ढील दी जानी चाहिए.
कैंटोनमेंट में लागू नहीं होता आबकारी अधिनियम
सेना के जवानों के लिए नियम में बदलाव की मांग
सरकार ने सेना के अधिकारियों से यह भी अनुरोध किया है कि वे उनके सेवारत और सेवानिवृत कर्मियों को छावनी क्षेत्र के बाहर शराब का सेवन न करने या न ले जाने के बारे में अवगत करा
दें. इस बाबत बीते दो दिनों में दो बार सेना के सीनियर अफसरों की सरकार के आला अफसरों से बात हो चुकी है. इस मुलाकात में सेना के जवानों को हो रही परेशानियों से उन्हें अवगत कराया
गया. साथ ही यह अनुरोध किया गया कि सेना के जवानों के लिए नियम–कानून में कुछ बदलाव किया जाए.
शराब के तय कोटा से घर ले जाने में दिक्कत
बिहार में लगभग 1.25 लाख पूर्व सैनिक और 20 हजार सेवारत सैन्यकर्मी हैं. बिहार के पास अन्य अर्धसैनिक बलों के अलावा राज्य भर में 10 हजार सीआरपीएफ कर्मी तैनात हैं. बिहार-झारखंड
उपक्षेत्र के एक अधिकारी की मानें तो पटना, खगौल, मनेर, बिहटा के आवासीय इलाकों के बाहर रहने वाले सेना के अधिकारी और जवान अपने तय कोटे के तहत घर में शराब ले जाने में
असमर्थ हैं.
सीआरपीएफ की ओर से मुश्किल हालात का हवाला
सीआरपीएफ के एडीजी (बिहार सेक्टर) शैलेंद्र कुमार सिंह का कहना है कि जमुई, मुंगेर, गया और रोहतास जैसे नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में रह रहे जवानों को सेना की तरह उनके कैंप में शराब का
सेवन करने की सुविधा चाहिए. इन जवानों का कहना है, 'हम घर और परिवार से दूर पहाड़ियों और जंगलों में काम करते हैं. हमारे पास उचित आवास तक नहीं है. हम मुश्किल समय में काम
करते हैं. शराबबंदी से काम करना और कठिन हो जाएगा ऐसी स्थिति में कई जवान बिहार से दूर रहना पसंद करेंगे.'