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इस पुल पर जनप्रतिनिधि सांसदों और विधायकों का प्रवेश वर्जित है

बहादुरपुर में पड़ने वाले कमलपुर-ब्रह्मोत्तर घाट के लोगों ने बांस जोड़-जोड़कर एक पुल बनाया है. इस पुल के एंट्री प्वाइंट पर एक बैनर टंगा है. बैनर पर लिखा है 'सेतु पर जनप्रतिनिधि, सांसद और विधायकों का प्रवेश वर्जित. निवेदक- ग्रामवासी कमलपुर-ब्रह्मोत्तर.'

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पुल पर टंगा है ये बैनर
पुल पर टंगा है ये बैनर

कमलपुर-ब्रह्मोत्तर घाट के लोगों को अपने गांव के लिए कमला नदी पर एक पुल की जरूरत थी. लोगों ने इसके लिए बहुत अर्जियां दीं, बहुत बार चुने हुए नेताओं को अपनी समस्या बताई, लेकिन न तो जनप्रतिनिधियों के कान पर जूं रेंगी और न ही प्रशासन ने इसकी बात सुनी. इसके बाद गांव के लोगों ने मिलकर खुद ही एक पुल बना लिया और उसके एंट्री प्वाइंट पर एक बैनर टांग दिया. बैनर पर लिखा है 'सेतु पर जनप्रतिनिधि, सांसद और विधायकों का प्रवेश वर्जित. निवेदक- ग्रामवासी कमलपुर-ब्रह्मोत्तर.'

बिहार की नीतीश सरकार ने अपने पिछले आठ में इसे लेकर खूब ढोल पीटा है कि उन्होंने बिहार के बहुत से दूर-दराज के गांवों को पुल देकर दुनिया से जोड़ा है. बिहार स्टेट ब्रिज कंस्ट्रक्शन कॉर्पोरेशन के अधिकारियों का दावा है कि बिहार में विभिन्न स्कीमों के जरिए 3878 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं. इतने पैसे खर्च होने के बाद भी यदि जिला दरभंगा के कमलपुर-ब्रह्मोत्तर घाट के लोगों को पुल नसीब नहीं हुआ तो इसे क्या कहा जाए?


बहादुरपुर में पड़ने वाले कमलपुर-ब्रह्मोत्तर घाट के लोगों ने बांस जोड़-जोड़कर एक पुल बनाया है. इस केवल पैदल, साइकिल, मोटरसाइकिल को आने-जाने की अनुमति है. बड़े वाहनों का बोझ यह पुल सहन नहीं कर पाएगा, इसलिए उनकी एंट्री नहीं है. ऐसे में लोगों के पास शहर से जुड़ने के लिए एक पुल है, लेकिन भारी सामान को लाने ले जाने की किल्लत बरकरार है.

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इस पुल को बनाने की पहल की बालब्रह्मचारी बाबा लक्ष्मण दास ने. उनके साथ गांव के ही कुछ और लोग जुड़े. गांव से चंदा जुटाया गया और इसी साल सितंबर में बना दिया गया बांस का एक पुल. बाबा लक्ष्मण दास का कहना है कि यहां जन‍प्रनिधियों के प्रवेश को वर्जित किया गया है. जब तक यहां कंक्रीट का पुल‍ नहीं बन जाता, वे किसी भी नेता को गांव में घुसने नहीं देंगे. यही नहीं, लोगों का कहना है कि वे आने वाले सभी तरह के चुनावों का भी बहिष्कार करेंगे.


1985 में रखा गया था नींव का पत्थर
गांव के लोगों का यह कदम एकाएक उठाया गया नहीं है. 1985 से लेकर अब तक पुल नहीं बन पाने के बाद गांव के लोगों ने ऐसा फैसला लिया. जी हां, इस पुल की नींव का पत्थर 1985 में तब के कांग्रेसी एमएलसी हरीशचंद्र झा ने रखा था. साल दर साल समय गुजरता गया, पर नींव के पत्थर के ऊपर ईंट नहीं रखी गई.

इसके बाद गांव के लोगों ने बीजेपी नेता कीर्ति आजाद के सामने अपील की, लेकिन सुनवाई नहीं हुई. फिर लोग जेडीयू के बहादुरपुर के विधायक मदन साहनी के पास गए और निराश होकर लौटे.

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