कुछ लोगों को अंधेरे में जाने से डर लगता है. अगर आप भी ऐसा महसूस करते हैं तो यह निक्टोफोबिया के लक्षण हैं. दरअसल, यह एक मानसिक स्थिति है, जिसमें व्यक्ति के अंदर एक गहरा डर होता है और जब भी वह अंधेरे में जाता है तो उसे चेस्ट टाइटनेस, ब्रीदिंग प्रॉब्लम, स्वैटिंग और हार्ट रेट बढ़ने का खतरा बना रहता है. कई लोगों को तो अंधेरे में पैनिक अटैक भी आ जाता है. यह एक ऐसा डर है, जो सामान्य कामकाज को बाधित कर सकता है और दैनिक जीवन में बाधा डाल सकता है.
निक्टोफोबिया के लक्षण
1. निक्टोफोबिया से पीड़ित लोग रात के अंधेरे में अकेले जाने से कतराते हैं और रात को डिम लाइट में सोना पसंद करते हैं.
2. निक्टोफोबिया से ग्रसित व्यक्ति को अंधेरे का सामना करते ही छाती में भारीपन महसूस होने लगता है और सिरदर्द भी होता है.
3. जिन लोगों को अंधेरे का फोबिया होता है, उन्हें डर के कारण बार-बार पसीना आने लगता है.
4. निक्टोफोबिया से पीड़ित लोग अंधेरे में जाते ही जोर से चिल्लाने लगते हैं और रोने लगते हैं.
5. निक्टोफोबिया का असर व्यक्ति की नींद पर भी पड़ता है. ऐसे लोग अकेले सोने से कतराते हैं.
निक्टोफोबिया से ऐसे बचें
1. एक्सपोजर थेरेपी (Exposure therapy)
जिन लोगों को अंधेरे से डर लगता है, उन्हें अंधेरे कमरे में किसी व्यक्ति के सुपरविजन में कुछ वक्त बिताने के लिए अकेले छोड़ा जाता है. डार्कनेस की प्रैक्टिस करवाने से नींद ना आने की समस्या हल हो जाती है और निक्टोफोबिया से राहत मिलती है. इसके लिए कमरे में लाइट्स का एक्सपोजर कम रखकर थेरेपी की शुरुआत की जाती है और फिर धीरे-धीरे अंधेरे से लगने वाला डर कम होने लगता है.
2. फ्लडिंग थेरेपी (Flooding therapy)
ये एक बिहेवियरल थेरेपी होती है, जिसमें डर के कारण बढ़ने वाली उत्तेजना पर काबू पाकर अपनी भावनाओं को नियंत्रित करने की तकनीक सिखाई जाती है. इसमें एंग्जाइटी के लेवल को कम करके शरीर को रिलेक्स रखने पर फोकस किया जाता है. इस थेरेपी में आंखें बंद करके अपने मन में उठने वाले विचारों को कंट्रोल करने का प्रयास किया जाता है.
3. सिस्टमेटिक डिसेन्सिटाइजेशन (Systematic desensitization)
सिस्टमेटिक डिसेन्सिटाइजेशन एक रिलेक्सेशन तकनीक है, जिसमें फोबिया से बढ़ने वाली एंग्ज़ाइटी को दूर करने के लिए कई स्टेप्स होते हैं. इसमें सबसे पहले अपने डर की सूची तैयार की जाती है. उसके बाद मैनेजेबल फियर को रिलेक्सेशन तकनीक के माध्यम से दूर किया जाता है. डीप ब्रीदिंग, मसल्स रिलेक्सेशन और विज्युलइजेशन के जरिए डर को दूर करने में मदद मिलती है. इसके अलावा मेडिटेशन से अवेयरनेस और अटेंशन बढ़ने लगती है.
4. कॉग्नेटिव बिहेवरल थेरेपी (Cognitive behavioral therapy)
संज्ञानात्मक व्यवहार थेरेपी यानि कॉग्नेटिव बिहेवरल थेरेपी की मदद से भी अंधेरे के कारण लगने वाले डर को निंयत्रित किया जाता है. इसे सीबीटी थेरेपी या टॉक थेरेपी भी कहा जाता है. बातचीत के जरिए ओवरथिकिंग को नियंत्रित करके नकारात्मक विचारों को काबू किया जाता है.