Early Age Alzheimer Disease: अभी लोगों पर 'सैयारा' मूवी का क्रेज चढ़ा हुआ है जिसकी कहानी लोगों को पसंद आ रही है. ये एक लव स्टोरी है, जिसमें क्रिश कपूर और वाणी बत्रा की कहानी दिखाई गई है. एक्ट्रेस अनीत पड्डा जो वाणी बत्रा का रोल निभा रही हैं, उनको मूवी में अर्ली-ऑनसेट अल्जाइमर या प्रारंभिक अल्जाइमर से लड़ते दिखाया गया है. मूवी में दिखाया है कि कैसे वाणी अपने पूर्व मंगेतर के सामने आते ही पिछली बातों को भूल जाती हैं और याददाश्त खोने की वजह से वो अपने बॉयफ्रेंड क्रिश को भी भूल जाती है.
इस फिल्म को देखने के बाद हर किसी के मन में यही सवाल चल रहा है कि आखिर ये बीमारी क्या है? अर्ली-ऑनसेट अल्जाइमर के बारे में जानने के लिए हमने दिल्ली के यशोदा मेडिसिटी हॉस्पिटल में मिनिमल इनवेसिव ब्रेन स्पाइन और एंडोवास्कुलर न्यूरोसर्जरी के कंसल्टेंट डॉ.दिब्या ज्योति महाकुल से बात की और इस बीमारी के बारे में डिटेल में जाना. तो आइए जानते हैं अर्ली-ऑनसेट अल्जाइमर क्या होता है, किन लोगों को होता है इसके लक्षण और इलाज क्या हैं?
सबसे पहले बता दें कि अल्जाइमर एक दिमागी बीमारी है, जिसमें मरीज की याददाश्त, सोचने की शक्ति पर असर पड़ता है. ये बीमारी ब्रेन सेल्स को नुकसान पहुंचाती है जिसकी वजह से रोजमर्रा के काम भी इफेक्ट होने लगते हैं. यह डिमेंशिया (Dementia) का सबसे आम प्रकार है, अल्जाइमर अक्सर 40 साल से ऊपर के लोगों में ज्यादा देखने को मिलता है. हालांकि ये 30 से 40 साल की उम्र के लोगों को भी इफेक्ट कर सकता है और 65 साल से कम उम्र के लोगों में जब अल्जाइमर पाया जाता है तो उसे प्रारंभिक अल्जाइमर (Early-Onset Alzheimer) कहते हैं. ये बहुत रेयर है और यह बहुत कम लोगों में देखा जाता है. ज्यादातर 40 से 50 की उम्र के लोगों में ये बीमारी देखने को मिलती है.
डॉ.दिब्या ज्योति महाकुल ने Aajtak.in से बात करते हुए बताया, 'आमतौर पर ये 65 साल की उम्र के बाद होता है लेकिन कुछ मामलों में ये 40 से 60 वर्ष की उम्र या उससे पहले भी हो सकता है. इसे अर्ली-ऑनसेट अल्जाइमर कहा जाता है. शुरुआत में इसके लक्षण मामूली लगते हैं लेकिन टाइम के साथ ये गंभीर होने लगते है. इसमें मरीज बातें भूलने लगता है और समय और स्थान जैसी नॉर्मल चीजें भी भूलने लगते हैं.'
डॉ.दिब्या ज्योति महाकुल का कहना है, 'प्रारंभिक अल्जाइमर के लक्षण कॉमन होते हैं इसलिए लोग इतनी जल्दी डॉक्टर को नहीं दिखाते हैं. अर्ली-ऑनसेट अल्जाइमर के लक्षण के बारे में फैमिली मेंबर्स ही पाते हैं जो मरीज के साथ ज्यादा समय बिताते हैं और उनको अच्छी तरह से जानते हैं. अल्जाइमर में ब्रेन सेल्स डैमेज होते हैं जिसकी वजह से धीरे-धीरे मेमोरी लॉस होने लगती है. अर्ली-ऑनसेट अल्जाइमर में टाइम, प्लेस और लोगों के नाम भूल जाते हैं और कभी-कभी वो कुछ देर पहले हुई चीज तक भूल जाते हैं.
फिल्म 'सैयारा' में ही ऐसा ही दिखाया गया है, जब वाणी को उसके माता-पिता उसको हॉस्पिटल लेकर जाते हैं तब डॉक्टर उससे टाइम देखने के लिए बोलती हैं. मगर थोड़ी ही देर बाद जब वो उससे वापस से टाइम पूछते हैं तो वो भूल चुकी होती है. अर्ली-ऑनसेट अल्जाइमर के मरीज के साथ यही होता है.
जैसे:
कम उम्र में होने वाले अर्ली-ऑनसेट अल्जाइमर में बीमारी के ज्यादातर प्रकार एक जैसे ही होते हैं, हालांकि इनमें कुछ अंतर जरूर है. जैसे,
कॉमन अल्जाइमर- अधिकांश लोगों मे अर्ली-ऑनसेट अल्जाइमर ठीक उसी तरह से बढ़ता है, जैसे बुजुर्ग लोगों में होता है. उनके लक्षण भी एक जैसे ही होते हैं.
जेनेटिक अल्जाइमर- अल्जाइमर में जेनेटिक बहुत रेयर है, कुछ सौ लोगों में ऐसे जीन होते हैं जो सीधे तौर पर अर्ली-ऑनसेट अल्जाइमर का कारण बनते हैं. इन लोगों में इस बीमारी के लक्षण 30, 40 या 50 की उम्र में दिखाई देने लगते हैं. कुछ में और भी कम उम्र में संकेत दिखना शुरू हो जाते हैं.
अर्ली-ऑनसेट अल्जाइमर होने के पीछे फैमिली हिस्ट्री को बड़ा कारण माना जाता है. इस बारे में डॉ.दिब्या ज्योति महाकुल ने बताया, 'अर्ली-ऑनसेट अल्जाइमर के लिए फैमिली हिस्ट्री होना मैंडेटरी नहीं है, हालांकि ज्यादातर केस में फैमिली हिस्ट्री देखी जाती है. इसके अलावा कुछ केसेस में जीन में कुछ चेंजेस होते हैं, जिसकी वजह से अल्जाइमर हो जाता है और फिर इसके आने वाली जनरेशन में होने के चांस बढ़ जाते हैं.'
अर्ली-ऑनसेट अल्जाइमर का अभी तक कोई कारण नहीं मिला है, मगर इसके कुछ मुख्य कारण हो सकते हैं, जैसे परिवार में अल्जाइमर की हिस्ट्री, जेनेटिक म्यूटेशन (विशेषकर APOE-e4 जीन), ब्रेन की सूजन और प्रोटीन जमा होना, सिर पर गंभीर चोट लगना और लाइफस्टाइल फैक्टर्स जैसे हाई बीपी, मोटापा, डाइबिटीज भी इसके होने की वजह हो सकते हैं.
यंग एज ग्रुप के लोग जंक फूड ज्यादा खाते हैं, जिसकी वजह से उनको जल्दी कई गंभीर बीमारियां हो रही हैं. डॉ.दिब्या ज्योति महाकुल से जब पूछा गया कि क्या अर्ली-ऑनसेट अल्जाइमर होने की एक वजह जंक फूड हो सकता है? इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, 'जितना जंक फूड खाते हैं, उतना कोलेस्ट्रॉल लेवल बढ़ता है और उससे छोटी-छोटी ब्लड वेसिल्स ब्लॉक होती हैं. इनसे ब्रेन स्टोक का भी खतरा बढ़ता है. ब्रेन का हर हिस्सा कुछ ना कुछ काम करता है और जब ब्लॉकेज होते हैं तो ये मेमोरी को इफेक्ट करता है.'
अल्जाइमर का पता लगाने के लिए डॉक्टर्स कुछ टेस्ट कराते हैं. सबसे पहले मरीज की मेडिकल हिस्ट्री पूछी जाती है और उसके बाद उसकी दिमागी हालत देखी जाती है. उसके बाद फिर कुछ टेस्ट कराए जाते हैं.
अल्जाइमर में शॉर्ट मेमोरी लॉस होता है?
फिल्म 'सैयारा' में, अनीत का किरदार वाणी को अपने पूर्व मंगेतर के सामने आने से एक झटका सा लगता है, जिससे वो पिछले 6 महीनों को भूल जाती है. इसे लेकर लोगों के मन में कई सवाल है कि क्या अल्जाइमर में ऐसा भी हो सकता है? डॉ.दिब्या ज्योति महाकुल ने कहा कि 'साइंटिफिकली ये हो सकता है कि मरीज कुछ महीने की मेमोरी भूल सकता है. मेमोरी कई प्रकार की होती है, जैसे- इमीडिएट मेमोरी, लॉन्ग टर्म मेमोरी और शॉर्ट टर्म मेमोरी. ब्रेन का कौन-सा हिस्सा वर्क कर रहा है और कौन-सा इफेक्ट हुआ है. इसकी वजह से भी कई बार शॉर्ट टर्म मेमोरी लॉस हो सकता है.'
उदाहरण देते हुए डॉक्टर ने समझाया कि कभी ऐसा होता है कि मरीज का वर्किंग मेमोरी (काम करने वाली दिमाग की मेमोरी) काम नहीं करेगी. ऐसे मे ंहो सकता है आप उसे जो काम बताएं तो वो भूल जाए लेकिन उसे बाकी चीजें याद रहें.
डॉ.दिब्या ज्योति महाकुल का कहना है, 'कई बार ब्रेन में ट्यूमर होता है जिसकी वजह से भी मेमोरी लॉस की दिक्कतें होने लगती हैं. ऐसे में ट्यूमर को निकालने के बाद ब्रेन वर्क करने लगता है लेकिन कई बार इसके बाद भी पेशेंट की कुछ टाइम पीरियड की मेमोरी लॉस हो जाती है.'
अल्जाइमर का इलाज
रिपोर्ट्स के अनुसार, अभी तक अल्जाइमर का पूरा इलाज नहीं है, लेकिन कुछ इलाज इसे धीमा कर सकते हैं और लाइफ को बेहतर बना सकते हैं. इसमें कुछ खास दवाइयां मरीज को दी जाती है.
दवाइयां
दरअसल, दवाइयों के अलावा कॉग्निटिव स्टिमुलेशन थेरेपी, मेमोरी थेरेपी (जैसे- मेमोरी गेम और पजल गेम) फैमिली सपोर्ट और केयरगिविंग ट्रेनिंग भी इसके प्रभाव को कम करने में मददगार है.
लाइफस्टाइल और फूड हैबिट में सुधार
डॉक्टर ने इसके अलावा साफ शब्दों में कहा कि अर्ली-ऑनसेट अल्जाइमर को कम करने के लिए हेल्दी लाइफस्टाइल और फूड हैबिट्स का खास ख्याल रखना चाहिए. खराब लाइफस्टाइल और फूड हैबिट्स का हमारी बॉडी के साथ-साथ ब्रेन पर भी काफी फर्क पड़ रहा है. अल्कोहल, स्मोकिंग हैबिट की वजह से ब्लड वेसल्स ब्लॉक होते हैं और इससे अल्जाइमर होने के चांस बढ़ जाते हैं.
उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया है कि फिनलैंड, स्वीडन और जापान के मुकाबले अमेरिका जैसे देशों जहां पर मोटापे और खराब लाइफस्टाइल जैसी दिक्कतें ज्यादा है. भारत में जैसे इंडस्ट्राइजेशन हो रहा है, उससे हमारी लाइफस्टाइल पर फर्क पड़ रहा है. इसी वजह से भारत में अर्ली-ऑनसेट अल्जाइमर के मरीज बढ़ रहे हैं.