कोरोना के बुरे प्रभावों से उबरे भारत में एक बार फिर कोरोना को लेकर चर्चा तेज हो गई है. इंडिया में कोविड-19 के दो नए सब-वेरिएंट NB.1.8.1 और LF.7 की एंट्री ने लोगों के मन में डर भी पैदा किया है. लेकिन क्या ये वेरिएंट वाकई खतरनाक हैं? कहीं हमें फिर से मास्क और सैनिटाइजर की जिंदगी की तरफ तो नहीं लौटना होगा? आइए, आसान भाषा में समझते हैं कि ये नया खतरा कितना बड़ा है और डॉक्टर इस पर क्या कह रहे हैं.
कौन हैं ये नए वेरिएंट?
इंडियन SARS-CoV-2 जीनोमिक्स कंसोर्टियम (INSACOG) के मुताबिक भारत में NB.1.8.1 और LF.7 नाम के दो नए सब-वेरिएंट्स की पहचान हुई है. असल में दोनो वेरिएंट इंडिया में आ चुके ओमिक्रॉन के JN.1 वेरिएंट के उप-प्रकार हैं. अप्रैल में तमिलनाडु में NB.1.8.1 का एक मामला मिला. वहीं, मई में गुजरात में LF.7 के चार मामले सामने आए. डॉक्टरों का कहना है कि ये वेरिएंट तेजी से फैलने की क्षमता रखते हैं क्योंकि इनमें स्पाइक प्रोटीन में म्यूटेशन हैं जो वायरस को इंसानी कोशिकाओं से आसानी से प्रवेश करने में मदद करते हैं.
पहले से बीमार लोगों पर खतरा ज्यादा
डॉक्टरों और विशेषज्ञों का कहना है कि इस नये वेरिएंट से घबराने की जरूरत नहीं है. ये वेरिएंट भले ही ज्यादा संक्रामक हों, लेकिन अभी तक ये ज्यादा गंभीर बीमारी का कारण नहीं बन रहे. भारत में 19 मई 2025 तक केवल 257 सक्रिय कोविड मामले हैं, जो देश की विशाल आबादी के हिसाब से बहुत कम हैं. एम्स दिल्ली के पूर्व डायरेक्टर डॉ रणदीप गुलेरिया ने आजतक से बात करते हुए कहा कि ये नया वेरिएंट JN.1 यहां के लिए पुरानाा है.
यह वेरिएंट सबसे पहले अगस्त 23 में रिपोर्ट किया गया था . लेकिन कुछ सालों में डोमिनेंट हो गया, जिसके केसेज सारी दुनिया में देखे गए. इसमें स्पाइक प्रोटीन पर म्यूटेशन है इसलिए ये ज्यादा इफेक्टिव है. ये बॉडी की इम्यूनिटी को स्केप करके इनफेक्शन करता है. इसमें ये देखा गया है कि इसमें डिजीज माइल्ड होती है जैसे जुकाम, खांसी, नजला, गले में खराश आदि लक्षण होते हैं. लेकिन जिनमें कोमॉर्बिलिटी है उन्हें ज्यादा सावधान रहने की जरूरत है.
डॉ गुलेरिया आगे कहते हैं कि जिन लोगों को डायबिटीज, हार्ट प्रॉब्लम या इम्यूनिटी घटाने वाली बीमारियां हैं, उन्हें ज्यादा खतरा है. अभी तक जो डेटा आया है उससे पता चलता है कि वैक्सीन से प्रोटेक्शन काफी हद तक कारगर हो रहा है. इसके अलावा ये ओमीक्रॉन लिनिएज का ही एक वेरिएंट है, ओमिक्रॉन कुछ हद तक सबको हुआ था, इसलिए जो नेचुरल इम्यूनिटी पैदा हुई वो सीवियर डिजीज से प्रोटेक्शन देगी. लेकिन क्योंकि ये वेरिएंट चेंज करते रहते हैं. वो अपने आपको सर्वाइव करने के लिए इम्यून मैकेनिज्म सिस्टम डेवलेप करते हैं. उसके कारण इनफेक्शन बीच बीच में बढ़ जाता है. समय बीतने के साथ जैसे एक्सपोजर न होने की वजह से हमारी इम्यूनिटी कम होती है तो ये लक्षण दे सकता है.
नजर रखने की जरूरत
डॉ रणदीप गुलेरिया ने कहा कि फिल्हाल इसे सर्विलांस करने की जरूरत है, कहीं आगे जाकर बदलकर सीरियस रूप तो नहीं लेता. कहीं हॉस्पिटल एडमिशन ज्यादा तो नहीं हो रहे, कहीं डेथ ज्यादा तो नहीं हो रही. माइल्ड केसेज तो हम देखेंगे ही, लेकिन ये हद तक खराब भी नहीं, जनरल पॉपुलेशन में इम्यूनिटी बढ़गी. बाकी बुजुर्ग या जो लोग पहले से ही बीमार हैं, उन्हें कोविड प्रोटोकॉल फॉलो करना चाहिए.
दो गज की दूरी, हाथ रेगुलरी धोना, भीडभाड़ में मास्क पहनकर जाने से इम्यून कंप्रोमाइज और बुजुर्ग लोगों को कोविड के साथ साथ अन्य रेस्पेरेटरी डिजीज से बचाएगी.
विदेशों में भी ठीक हो रहे मरीज
गौरतलब है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने NB.1.8.1 और LF.7 को वेरिएंट्स अंडर मॉनिटरिंग की श्रेणी में रखा है, न कि वेरिएंट ऑफ कंसर्न में. यानी, इन्हें अभी खतरनाक नहीं माना गया है. सिंगापुर और हॉन्गकॉन्ग में इन वेरिएंट्स की वजह से मामले बढ़े हैं, लेकिन वहां भी ज्यादातर मरीज आसानी से ठीक हो रहे हैं.
क्या सतर्कता जरूरी है?
स्वास्थ्य मंत्रालय और विशेषज्ञों का कहना है कि स्थिति नियंत्रण में है लेकिन सावधानी बरतना जरूरी है. खासकर केरल, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और दिल्ली जैसे राज्यों में, जहां मामले थोड़े बढ़े हैं, लोगों को सतर्क रहना चाहिए.
क्या हैं जरूरी सावधानियां
बाजार, बस या मेट्रो जैसी भीड़ वाली जगहों पर मास्क पहनें.
साबुन या सैनिटाइजर का इस्तेमाल करें और हाथ धोते रहें.
लक्षण जैसे बुखार, खांसी या गले में खराश होने पर डॉक्टर से संपर्क करें.
बूस्टर डोज: कमजोर इम्यूनिटी वाले लोग बूस्टर डोज लेने पर विचार करें.
क्या लॉकडाउन की जरूरत पड़ेगी?
फिलहाल लॉकडाउन जैसी स्थिति की कोई आशंका नहीं है. स्वास्थ्य मंत्रालय और ICMR स्थिति पर नजर रख रहे हैं. देश में एक मजबूत निगरानी सिस्टम है, जो कोविड और दूसरी बीमारियों पर लगातार नजर रखता है. विशेषज्ञों का कहना है कि वैक्सीन और पहले के संक्रमण से मिली इम्यूनिटी की वजह से स्थिति 2020 जैसी नहीं होगी. WHO यानी विश्व स्वास्थ्य संगठन का भी कहना है कि JN.1 और इसके सब-वेरिएंट्स जैसे LF.7 और NB.1.8.1 ज्यादा संक्रामक हो सकते हैं, लेकिन गंभीर बीमारी का खतरा कम है. मौजूदा वैक्सीन इनके खिलाफ प्रभावी हैं और गंभीर लक्षणों से बचाव कर सकती हैं.