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फैक्ट चेक: पीएम मोदी ने पुतिन को मनुस्मृति नहीं, भगवत गीता भेंट की थी

सोशल मीडिया पर यह दावा तेजी से फैल गया कि पीएम मोदी ने पुतिन को मनुस्मृति भेंट की, लेकिन आजतक फैक्ट चेक में यह दावा फर्जी निकला.

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आजतक फैक्ट चेक

दावा
पीएम मोदी ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को मनुस्मृति भेंट की.
सोशल मीडिया यूजर्स
सच्चाई
पीएम मोदी ने पुतिन को रूसी भाषा में लिखी हुई गीता भेंट की थी, न कि मनुस्मृति.

रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के भारत आगमन के बाद सोशल मीडिया पर कुछ लोग दावा करने लगे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें मनुस्मृति भेंट की. ऐसा कहने वाले लोग सबूत के तौर पर एक फोटो पेश कर रहे हैं जिसमें पीएम मोदी, पुतिन को एक किताब भेंट करते दिख रहे हैं.

एक एक्स यूजर ने इस तस्वीर को पोस्ट करते हुए लिखा, "देश संविधान से चलता है. भेट मनुस्मृति की जा रही है?" इस तरह के पोस्ट्स पर प्रतिक्रिया देते हुए कई लोग पीएम मोदी पर तंज कस रहे हैं.

पोस्ट का आर्काइव्ड वर्जन यहां देखा जा सकता है.

आजतक फैक्ट चेक ने पाया कि पीएम मोदी ने रूसी राष्ट्रपति पुतिन को गीता का रूसी संस्करण भेंट किया था, न कि मनुस्मृति.

कैसे पता लगाई सच्चाई?  

वायरल फोटो को रिवर्स सर्च करने से ये हमें पीएम मोदी के 4 दिसंबर के एक्स पोस्ट में मिली. यहां फोटो के साथ लिखा है, "राष्ट्रपति पुतिन को रूसी भाषा में लिखी गीता की प्रति भेंट की. गीता के उपदेश दुनिया के करोड़ों लोगों को प्रेरणा देने का काम करते हैं."  

द टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, पुतिन के भारत आगमन पर पीएम मोदी ने उनका गर्मजोशी से स्वागत किया और इसके बाद दोनों, लोक कल्याण मार्ग स्थित प्रधानमंत्री आवास पर पहुंचे. यहीं पर पीएम ने पुतिन को भगवत गीता भेंट की.

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न्यूज 18 की खबर के अनुसार, ये इस्कॉन की रशियन एडिशन गीता है.

रूस की कई न्यूज वेबसाइट्स में भी यही लिखा है कि पीएम मोदी ने पु​तिन को रूसी भाषा की गीता भेंट की.

हमें किसी भी खबर में ऐसा जिक्र नहीं मिला कि पीएम मोदी ने पुतिन को मनुस्मृति भेंट की.

रूस मे भगवत गीता को लेकर हो चुका है विवाद

साल 2011 में रूसी प्रांत साइबेरिया के शहर टॉम्स्क में गीता के एक रूसी भाषा के एडिशन को ‘चरमपंथी’ घोषित करने की मांग उठी थी. अगर ऐसा होता तो गीता, हिटलर की ‘मीन केम्फ’ जैसी किताबों की श्रेणी में आ जाती. हिन्दुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ये विवाद, इस्कॉन के संस्थापक एसी भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद द्वारा लिखी गई ‘भगवत गीता ऐज इट इज’ के रूसी अनुवाद को लेकर हुआ था. इस मामले में  सरकारी वकीलों का आरोप था कि  गीता एक कट्टरवादी ग्रंथ है जिसमें, इसे न मानने वालों के प्रति नफरत और​ तिरस्कार का भाव है. उनका मानना था कि इससे समाज में टकराव की स्थिति पैदा हो सकती है. लेकिन रूस की एक अदालत ने गीता के खिलाफ दायर इस याचिका को खारिज कर दिया था.  

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