scorecardresearch
 

आखिरी बार कब हुई थी जातीय जनगणना, जानें- कांग्रेस समेत विपक्षी दलों का क्या रहा है स्टैंड?

2011 में सामाजिक-आर्थिक और जाति आधारित आंकड़े (सोशियो-इकोनॉमिक एंड कास्ट सेंसस, SECC) एकत्र किए गए, लेकिन ये आंकड़े भी सार्वजनिक नहीं किए गए. कई विशेषज्ञों का मानना है कि इन आंकड़ों में त्रुटियां थीं, और सरकार ने इन्हें अंतिम रूप देने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया.

Advertisement
X
जाति जनगणना को ले क्या रहा है इतिहास
जाति जनगणना को ले क्या रहा है इतिहास

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मंगलवार को एक महत्वपूर्ण फैसला लेते हुए आगामी जनगणना में जाति आधारित गणना को शामिल करने का फैसला किया है. केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने मंत्रिमंडल के फैसलों की जानकारी देते हुए कहा, "राजनीतिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने फैसला लिया है कि आगामी जनगणना में जाति गणना को शामिल किया जाए." यह घोषणा देश में जाति जनगणना को लेकर दशकों से चली आ रही बहस को एक नया मोड़ दे सकती है. 

जाति जनगणना का इतिहास
भारत में अंतिम बार पूर्ण जाति जनगणना 1931 में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के दौरान हुई थी. उस समय देश में कुल 4,147 जातियों की गणना की गई थी, और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की आबादी 52 प्रतिशत थी. 1941 में भी जाति आधारित आंकड़े एकत्र किए गए, लेकिन इन्हें कभी प्रकाशित नहीं किया गया. 1951 के बाद से केवल अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) की आबादी के आंकड़े ही एकत्र और प्रकाशित किए गए. 

2011 में सामाजिक-आर्थिक और जाति आधारित आंकड़े (सोशियो-इकोनॉमिक एंड कास्ट सेंसस, SECC) एकत्र किए गए, लेकिन ये आंकड़े भी सार्वजनिक नहीं किए गए. कई विशेषज्ञों का मानना है कि इन आंकड़ों में त्रुटियां थीं, और सरकार ने इन्हें अंतिम रूप देने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया. इस प्रकार, 1931 के बाद से देश में कोई विश्वसनीय और व्यापक जाति आधारित आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं.

Advertisement

2010-2011: जाति जनगणना की हुई थी मांग 
2010 में यूपीए सरकार के दूसरे कार्यकाल के दौरान समाजवादी पार्टी (एसपी), राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी), और जनता दल (यूनाइटेड) जैसे दलों ने 2011 की जनगणना में जाति आधारित गणना को शामिल करने की मांग उठाई. यह मांग हिंदी पट्टी के उन दलों की थी, जिनका मुख्य वोट आधार ओबीसी समुदाय था. इस मांग ने यूपीए सरकार को असहज स्थिति में डाल दिया, क्योंकि कांग्रेस और तत्कालीन मुख्य विपक्षी दल बीजेपी, दोनों के पास इस मुद्दे पर स्पष्ट रुख नहीं था.

गृह मंत्रालय ने तर्क दिया कि जनगणना के दौरान जाति आधारित सवालों को शामिल करना लॉजिस्टिक समस्याओं के कारण गलत परिणाम दे सकता है, लेकिन हिंदी पट्टी के दलों ने अपनी मांग को और तेज किया और महिला आरक्षण विधेयक का विरोध शुरू कर दिया. इस तरह मई 2010 में यूपीए सरकार ने इस मुद्दे को प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता वाली मंत्रियों के समूह (GoM) को सौंप दिया. सितंबर 2010 में GoM ने जाति गणना आयोजित करने का निर्णय लिया. 

हालांकि, 2011 में शुरू हुए SECC सर्वेक्षण में कई तरह की त्रुटियां देखी गईं. 2012 के अंत तक गणना पूरी हुई, लेकिन 2013 तक अंतिम आंकड़े तैयार नहीं हो सके. 2015-16 में ग्रामीण भारत के लिए SECC के प्रारंभिक आंकड़े जारी किए गए, लेकिन जाति आधारित आंकड़ों को अंतिम रूप नहीं दिया गया. सरकार ने नीति आयोग के उपाध्यक्ष की अध्यक्षता में एक विशेषज्ञ समूह गठित करने की बात कही, जो कभी बन नहीं सका.

Advertisement

2010-11 में बीजेपी ने जाति जनगणना का समर्थन किया था. लोकसभा में सुषमा स्वराज ने पार्टी का रुख स्पष्ट करते हुए कहा कि बीजेपी इस मुद्दे पर एकजुट है. बीजेपी ने अपने ओबीसी नेताओं जैसे गोपीनाथ मुंडे और हुकुमदेव नारायण यादव को इस मांग को आगे बढ़ाने के लिए उतारा. उस समय बीजेपी ने कांग्रेस पर जाति जनगणना को रोकने का आरोप भी लगाया. 

हालांकि, जब बीजेपी सत्ता में आई, तो उसका रुख बदलता दिखा. 2018 में तत्कालीन गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने घोषणा की कि 2021 की जनगणना में ओबीसी आंकड़े एकत्र किए जाएंगे. लेकिन 2021 में कोविड-19 महामारी के कारण जनगणना स्थगित हो गई. बाद में केंद्र सरकार ने स्पष्ट किया कि जनगणना में केवल एससी और एसटी आंकड़े ही एकत्र किए जाएंगे. 

क्या बोले थे गृहमंत्री अमित शाह
नवंबर 2023 में गृह मंत्री अमित शाह ने दावा किया कि बीजेपी ने कभी जाति जनगणना का विरोध नहीं किया, लेकिन इस मुद्दे पर कोई भी निर्णय "सावधानीपूर्वक विचार" के बाद लिया जाएगा. वहीं, 2021 में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने संसद में कहा कि सरकार की नीति केवल एससी और एसटी की गणना करने की है. 

कांग्रेस ने हाल के वर्षों में जाति जनगणना को अपने प्रमुख एजेंडे में शामिल किया है. पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर तत्काल जाति जनगणना की मांग की. कांग्रेस के 2024 के लोकसभा चुनाव घोषणापत्र (न्याय पत्र) में भी स्पष्ट रूप से कहा गया कि पार्टी देशव्यापी सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना आयोजित करेगी. 

Advertisement

राहुल गांधी ने कई मौकों पर इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाया है. 2024 और 2025 में उन्होंने विभिन्न मंचों पर कहा कि जाति जनगणना दलितों, आदिवासियों, ओबीसी, और अल्पसंख्यकों की वास्तविक स्थिति को सामने लाएगी. फरवरी 2025 में पटना में उन्होंने कहा, "देश की मौजूदा शक्ति संरचना में दलितों और वंचितों की कोई भागीदारी नहीं है. जाति जनगणना से इन वर्गों की सटीक संख्या का पता चलेगा." 

राज्यों में जाति जनगणना की स्थिति
कुछ राज्यों ने स्वतंत्र रूप से जाति जनगणना शुरू की है:
बिहार: इंडिया गठबंधन की सरकार ने जाति जनगणना पूरी की.

तेलंगाना: कांग्रेस सरकार ने जाति जनगणना पूरी की. राहुल गांधी ने फरवरी 2025 में दावा किया कि तेलंगाना की 90 प्रतिशत आबादी दलित, आदिवासी, ओबीसी, या अल्पसंख्यक है.

कर्नाटक: कांग्रेस सरकार ने भी जाति जनगणना पूरी की.

बीजेपी के कुछ नेताओं ने जाति जनगणना को हिंदू समाज को बांटने की साजिश करार दिया है. 9 अक्टूबर 2024 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, "कांग्रेस की नीति हिंदुओं की एक जाति को दूसरी जाति के खिलाफ लड़ाने की है." कर्नाटक बीजेपी अध्यक्ष बी.वाई. विजेंद्र ने 15 अप्रैल 2025 को कहा कि जाति जनगणना हिंदुओं को बांटने का प्रयास है. 

अन्य दलों का रुख
समाजवादी पार्टी (एसपी):
अखिलेश यादव ने 2024 लोकसभा चुनाव से पहले जाति जनगणना की मांग की.

Advertisement

बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी): मायावती ने केंद्र से देशव्यापी जाति जनगणना की मांग की.

डीएमके: तमिलनाडु में डीएमके ने कहा कि जाति जनगणना आरक्षण को मजबूत करेगी.

जनता दल (यूनाइटेड): नीतीश कुमार ने जाति जनगणना का समर्थन किया.

आम आदमी पार्टी: संजय सिंह ने कांग्रेस की मांग का समर्थन किया.

YSR कांग्रेस: पार्टी ने राष्ट्रीय स्तर पर जाति आधारित आर्थिक जनगणना की मांग की.

बीजू जनता दल: ओडिशा में बीजद ने जाति जनगणना और 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा हटाने की मांग की.

---- समाप्त ----
Live TV

Advertisement
Advertisement