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कैसे पता चलता है कि बारिश मॉनसून की है, प्री मॉनसून की या पोस्ट मॉनसून की? मौसम विभाग कब करता है ऐलान

भारत में मॉनसून इंतजार करवा रहा है. आमतौर पर एक जून को मॉनसून की एंट्री हो जाती है, लेकिन इस बार 7 या 8 जून तक इसके आने की उम्मीद है. भारत में मॉनसून का सीजन जून से सितंबर तक होता है. सालभर की बारिश की 75 फीसदी जरूरत इन्हीं चार महीनों में पूरी होती है.

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मॉनसून इस साल तय समय से लेट है. (फाइल फोटो-PTI)
मॉनसून इस साल तय समय से लेट है. (फाइल फोटो-PTI)

मॉनसून का इंतजार बढ़ता ही जा रहा है. आमतौर पर एक जून को मॉनसून की एंट्री हो जाती है. लेकिन मौसम विभाग के मुताबिक, इस बार मॉनसून आने में देरी हो सकती है.

मौसम विभाग की ओर से अब तक मॉनसून की कोई तारीख नहीं दी गई है. हालांकि, निजी एजेंसी स्काईमेट का अनुमान है कि 8 या 9 जून को मॉनसून केरल के तट से टकरा सकता है, लेकिन इसकी 'कमजोर या हल्की एंट्री' की उम्मीद है. 

पिछले साल मॉनसून समय से पहले आ गया था. पिछले साल 29 मई को मॉनसून ने दस्तक दे दी थी. वहीं, 2 जुलाई तक मॉनसून पूरे देश में आ गया था, जबकि आमतौर पर ये 8 जुलाई तक पूरे देश को कवर करता है.

कैसे पता चलता है मॉनसून आ गया?

भारत में जून, जुलाई, अगस्त और सितंबर मॉनसून का सीजन होता है. इसे साउथ वेस्ट मॉनसून कहते हैं. भारत की सालभर की बारिश की लगभग 75% जरूरत साउथ वेस्ट मॉनसून से ही पूरी होती है. इसलिए ये चार महीने बारिश के लिहाज से काफी अहम होते हैं. जबकि, मार्च से मई के बीच होने वाली बारिश को प्री-मॉनसून और अक्टूबर से दिसंबर के बीच होने वाली बारिश को पोस्ट-मॉनसून माना जाता है.

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आमतौर पर अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में मॉनसूनी बारिश हर साल 15 से 20 मई के बीच शुरू हो जाती है. केरल के तट में मई के आखिरी हफ्ते से बारिश होने लगती है. हालांकि, मॉनसून का ऐलान करने के लिए कुछ क्राइटेरिया होते हैं. इसी आधार पर मौसम विभाग देश में मॉनसून की एंट्री का ऐलान करता है.

क्या हैं वो क्राइटेरिया?

1. बारिशः केरल और लक्षद्वीप में मौसम विभाग के 14 स्टेशन हैं. 10 मई के बाद अगर इन स्टेशनों पर लगातार दो दिन तक कम से कम 2.5 मिलीमीटर तक बारिश होती है, तो माना जाता है कि मॉनसून की एंट्री हो गई है. ये 14 स्टेशन- मिनिकॉय, अमीनी, तिरुवनंतपुरम, पुनालूर, कोल्लम, अलप्पुझ्झा, कोट्टायम, कोच्चि, थ्रिसूर, कोझिकोड, थालासेरी, कन्नूर, केसरगोड और मंगलुरु हैं.

2. हवा की गतिः भूमध्यसागर की तरफ से आने वाली हवाएं कम ऊंचाई पर रहती हैं तो निम्न दबाव का क्षेत्र बनता है. इससे मॉनसून ऊपर की ओर आता है यानी उत्तर भारत की तरफ. मॉनसून की हवाओं की गति अधिकतम 37 किलोमीटर प्रति घंटा से आगे बढ़ती हैं, यानी मॉनसूनी बादल इसी गति से देश में फैलते है.  

3. गर्मीः जब मॉनसून देश में आता है तब उस समय स्टैंडर्ड गर्मी 200 वॉट प्रति वर्ग मीटर से कम होना चाहिए. इसमें चलने वाली हवाएं अरब सागर की तरफ से आती हैं जो भारत में उत्तर और पूर्व की तरफ बढ़ती हैं, इनसे मॉनसून को सपोर्ट मिलता है. 

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क्या मॉनसून में देरी असामान्य है?

मॉनसून में देरी और जल्दी, दोनों ही असामान्य नहीं है. 2017 में मॉनसून 30 मई को आ गया था. 2018 में भी 29 मई को इसकी एंट्री हो गई थी.

2020 और 2013 में मॉनसून सही समय पर आया था. दोनों ही साल मॉनसून की एंट्री 1 जून को हो गई थी. वहीं, 2019 में मौसम विभाग ने 6 जून को मॉनसून की एंट्री का अनुमान लगाया था, लेकिन असल में इसने 8 जून को दस्तक दी थी.

देश में 2021 में मॉनसून की एंट्री 3 जून को हुई थी, जबकि पिछले साल 29 मई को ही मॉनसून केरल के तट से टकरा गया था.

मॉनसून में देरी का कुछ असर?

ऐसा नहीं कहा जा सकता है. मॉनसून में देरी या जल्दबाजी का बारिश की मात्रा पर कोई खास असर पड़ता नहीं है. जरूरी नहीं है कि मॉनसून जल्दी आए तो बारिश ज्यादा होगी और देरी से आए तो कम बारिश होगी.

इसे ऐसे समझिए, पिछले साल मॉनसून की एंट्री 29 मई को हो गई थी. लेकिन उसके बावजूद जून के महीने में सामान्य से 8 फीसदी कम बारिश हुई थी. 

हालांकि, इसके बाद जुलाई, अगस्त और सितंबर के महीने में सामान्य से ज्यादा बारिश हुई थी. इस वजह से पिछली साल सामान्य से लगभग 7 फीसदी ज्यादा बारिश हुई थी.

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इसी तरह 2021 में मॉनसून 3 जून को आ गया था. लेकिन उस साल जून में सामान्य से 9.6% ज्यादा बारिश हुई थी. लेकिन उसके बाद जुलाई और अगस्त में कम बारिश हुई. इस कारण 2021 में देशभर में सामान्य से 0.7% कम बारिश हुई थी.

मॉनसून की वापसी का पैमाना क्या?

वैसे तो 30 सितंबर तक मॉनसूनी सीजन होता है. लेकिन इसकी वापसी के संकेत कई दिन पहले से मिलने लगते हैं.

मॉनसून की वापसी को लेकर भी मौसम विभाग के कुछ क्राइटेरिया हैं. इसके तहत, 1 सितंबर के बाद अगर देश के उत्तरी-पश्चिमी हिस्सों में लगातार पांच दिन तक बारिश नहीं होती है तो इसे मॉनसून की वापसी समझा जाता है.

मॉनसून की वापसी दक्षिण से ही मानी जाती है. इसलिए पूरे देश के लिए मॉनसून की वापसी 1 अक्टूबर को ही माना जाता है. हालांकि, वापसी के बाद भी कुछ हिस्सों में कई दिनों तक बारिश होती है, लेकिन मॉनसून नहीं बल्कि पोस्ट-मॉनसून कहा जाता है.

देश में लगातार कम हो रही है बारिश?

बीते पांच साल के आंकड़े देखें जाएं तो 2018 और 2021 को छोड़कर बाकी सभी साल सामान्य से ज्यादा ही बारिश हुई है.

2018 में 10% और 2021 में 0.7% कम बारिश हुई थी. जबकि, 2019 में 10%, 2020 में 9% और 2022 में 7% ज्यादा बारिश हुई थी.

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2021 की तुलना में 2022 में भारी बारिश और बहुत भारी बारिश भी ज्यादा हुई. इस साल 1874 बार 'भारी बारिश', जबकि 296 बार 'बहुत भारी बारिश' हुई. वहीं, पिछले साल 1636 बार 'भारी बारिश' और 273 बार 'बहुत भारी बारिश' हुई थी. भारी बारिश तब मानी जाती है, जब 115.6 मिमी से 204.6 मिमी तक पानी बरसता है. और जब 204.5 मिमी से ज्यादा पानी बरसता है तो उसे बहुत भारी बारिश माना जाता है.

हालांकि, भारत में मॉनसून का पैटर्न तेजी से बदल रहा है. सालों पहले तक ऐसा होता था कि चार महीनों तक बारिश होती थी, लेकिन अब कुछ समय भारी बारिश होती है और फिर बंद हो जाती है. कम समय में जरूरत से ज्यादा बारिश होने से बाढ़ जैसे हालात बन जाते हैं.

मौसम विभाग ने 1989 से 2018 तक के साउथ वेस्ट मॉनसून के डेटा का एनालिसिस कर मार्च 2020 में अपनी रिपोर्ट पेश की थी. इस रिपोर्ट में बताया गया था कि देश के कई राज्यों में मॉनसून का पैटर्न बदल रहा है. इन 30 सालों में (1989 से 2018) उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, मेघालय और नागालैंड में साउथ वेस्ट मॉनसून में भारी कमी देखी गई है.  

इन पांच राज्यों के अलावा अरुणाचल प्रदेश और हिमाचल प्रदेश में भी मॉनसून में कमी आई है. इनके अलावा देश के कई जिलों में भी 30 सालों में मॉनसून में कमी आई है.

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बारिश कैसे कम होती जा रही है? इसे ऐसे भी समझिए. मौसम विभाग के मुताबिक, 1961 से 2010 के बीच हर साल औसतन 1176.9 मिमी बारिश हुई थी. वहीं, 1971 से 2020 के बीच 1160.1 मिमी बारिश हुई.  

बारिश कम होने की वजह से अब सामान्य बारिश को मापने का स्तर भी कम हो गया है. पहले साउथ वेस्ट मॉनसून सीजन में 880.6 मिमी बारिश को सामान्य माना जाता था. लेकिन अब 868.6 मिमी बारिश को सामान्य माना जाता है.

 

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