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राज्यों के पास कहां से आती है संपत्ति, क्यों कई बार इतना खाली हो जाता है खजाना कि सैलरी की भी मारामारी?

हिमाचल प्रदेश में सरकारी कर्मचारियों की तनख्वाह और पेंशन की तारीखें आगे सरका दी गईं. ये फैसला सूबे की कथित कमजोर आर्थिक स्थिति को देखते हुए लिया गया. पहले भी कई राज्यों में ऐसे हालात बनते रहे, जब कर्मचारियों को महीनों वेतन नहीं मिल सका था. जानें, स्टेट्स के पास पैसे कहां से आते हैं, और बदहाली में कौन करता है मदद.

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कई बार राज्य अपने लोगों को तनख्वाह देने की स्थिति में नहीं रहता.
कई बार राज्य अपने लोगों को तनख्वाह देने की स्थिति में नहीं रहता.

हिमाचल प्रदेश में पहली बार कर्मचारियों को वक्त से वेतन नहीं मिल सका. राज्य में आर्थिक संकट को देखते हुए सैलरी की तारीख बढ़ाने की बात हो रही है. इस मामले पर पूरे देश में बात हो रही है. यहां तक कि राजनैतिक आरोप-प्रत्यारोप भी हो रहे हैं, लेकिन सवाल ये है कि आखिर किसी राज्य के पास कोष कहां से आता है, और क्यों पैदा होता है वित्तीय संकट. 

सबसे पहले हिमाचल की मौजूदा स्थिति जानते चलें. सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू ने सैलरी और पेंशन की नई तारीखों का एलान करते हुए कहा कि यह फैसला लोन पर खर्च होने वाले ब्याज से बचने के लिए लिया गया है. इससे सालाना 36 करोड़ रुपये की बचत होगी. सीएम ने इसे फाइनेंशियल डिसिप्लिन नाम दिया. वहीं एक बात ये भी है कि प्रदेश पर फिलहाल 94 हजार करोड़ रुपयों का कर्ज है. पुराने लोन को चुकाने के लिए सरकार नए लोन ले रही है. 

मिलती-जुलती स्थिति बिहार में लालू प्रसाद यादव के कार्यकाल में भी दिखती रही. सरकारी कर्मचारियों को महीनों तक वेतन का इंतजार करना पड़ता था. नब्बे के दशक में यूपी में भी कमोबेश यही हाल था. ये राजनैतिक और आर्थिक अस्थिरता का दौर था, जब स्टेट के सरकारी कोष में कथित तौर पर पैसे ही नहीं बचे थे. 

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states revenue generation method amid himachal pradesh salary delay issue photo PTI

राज्यों के पास कहां से आते हैं पैसे

टैक्स इसका सबसे बड़ा सोर्स है. हर स्टेट के पास कई तरह के टैक्स लगाने का अधिकार होता है, इसमें लैंड रेवेन्यू, स्टेट एक्साइज ड्यूटी, गाड़ियों पर कर, एंटरटेनमेंट टैक्स जैसी कई श्रेणियां हैं. इसके अलावा जीएसटी में भी राज्य सरकार का हिस्सा होता है. खजाने का बड़ा हिस्सा यहीं से आता है. सरकारें अपने वित्तीय संसाधनों को इनवेस्ट कर उससे भी ब्याज पाती हैं.

केंद्र भी मदद करता है 

हर राज्य की भौगोलिक स्थिति, आबादी के हिसाब से सेंटर उसे वित्तीय मदद देता है. यह सहायता अलग-अलग स्कीम्स, केंद्र की योजनाओं को पूरा करने और राजस्व में घाटे को पाटने के लिए दी जाती है. सेंटर जरूरत के मुताबिक राज्य को इंट्रेस्ट-फ्री लोन भी देता है. लेकिन हर लोन के साथ कुछ शर्तें होती हैं जैसे योजनाओं को समय पर पूरा करना. अलग-अलग तरह के फंड भी होते हैं, जैसे डिजास्टर से हुए नुकसान को भरने के लिए. ये एकमुश्त और किस्तों में भी दिए जाते हैं. 

सरकारी लोगों को कैसे मिलती है सैलरी

इसका बड़ा हिस्सा राजस्व से आता है. सरकारें हर साल एक बजट तैयार करती हैं, जिसमें प्रशासनिक बजट भी एक हिस्सा है. यहीं से लोगों को तनख्वाह मिलती है. इसी तरह से पेंशन के लिए भी अलग बंटवारा रहता है. केंद्र से मिले ग्रांट का भी कुछ हिस्सा इसमें लग जाता है. 

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states revenue generation method amid himachal pradesh salary delay issue photo PTI

कैसे आ जाता है आर्थिक संकट

राज्यों के पास कई स्त्रोतों से पैसे आते हैं. लेकिन कई बार पैसों के असमान बंटवारे से कोष खाली होता चला जाता है. कई बार सरकारें वोट बैंक के लिए कुछ खास स्कीम्स पर जोर देती हैं, जिससे फायदा कम, नुकसान ज्यादा होता है. अगर राज्य ने बहुत अधिक उधार ले रखा हो और लोन भरने की क्षमता कम हो तब भी ब्याज बढ़ता चला जाता है. कई बार कुछ ऐसे हालात बन जाते हैं, जिनके बारे में किसी ने सोचा भी न हो, जैसे कोविड का दौर. ऐसे में सेंटर के अलावा स्टेट्स पर भी बोझ पड़ा था. बाढ़, भूकंप या सुनामी जैसी कुदरती मुसीबत भी मुश्किल बढ़ाती है, भले ही इसके लिए सेंटर से पैसे आते हैं. 

बिहार में क्या हुआ था

लालू प्रसाद यादव के सीएम कार्यकाल के दौरान राज्य में आर्थिक संकट का ग्राफ काफी ऊपर जा चुका था. नेताओं और अधिकारियों पर प्रशासनिक लापरवाही के आरोप लगते रहे. राजस्व घाटा बहुत ज्यादा होने पर स्टेट और कर्ज लेने लगा. इस तरह से एक चेन चल पड़ी थी. इससे उबरने के लिए तत्कालीन सरकार ने विकास पर इनवेस्ट करने की जगह अलग-अलग तरीके अपनाए. नतीजा ये हुआ कि सरकारी कर्मचारियों तक को तनख्वाह मिलने में देर होने लगी थी. 

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बाद में नीतीश कुमार की सरकार ने विकास पर फोकस किया. इंफ्रास्ट्रक्चर और राजस्व के आजमाए हुए तरीके अपनाए गए. अलग-अलग स्कीम्स आईं. इससे घाटा काफी हद तक काबू में आ सका. 

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