पूर्व पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान जेल में बंद है. पाकिस्तान के इतिहास में यह नया नहीं. सुहरावर्दी से लेकर बेनजीर भुट्टो और नवाज तक परंपरा दिखती रही. इनमें से कोई भी अपना तय कार्यकाल भी पूरा नहीं कर सका. इसके उलट सैन्य तानाशाह वहां सुरक्षित रहे.
कुछ समय पहले इमरान खान की सजा पर कमेंट करते हुए वहां के सीनियर पत्रकार हामिद मीर ने कहा था कि देश में ऐसी परंपरा है. इमरान के पहले भी हुसैन शहीद सुहरावर्दी, जुल्फिकार अली भुट्टो, बेनजीर भुट्टो, और नवाज़ शरीफ, सबको किसी न किसी तरह से राजनीतिक प्रताड़ना मिली. वहीं इसके उलट सैन्य तानाशाह सुरक्षित राजनीतिक वक्त बिताते रहे.
हुसैन शहीद सुहरावर्दी का नाम जेल जाने वाले लीडर्स में सबसे ऊपर है. उनका संबंध पूर्वी पाकिस्तान, जो अब बांग्लादेश है, से था. देश के पांचवे पीएम के तौर पर उन्होंने काम किया, लेकिन बाद में उन्हें राज्य-विरोधी गतिविधियों के आरोप में अरेस्ट कर जेल में डाल दिया गया. बाद में रिहाई तो हुई लेकिन उन्हें चुनाव आयोग ने अलग-अलग आधार पर चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य घोषित कर दिया. जीवन का आखिरी समय उन्होंने पाकिस्तान से अलग बिताया.

जुल्फिकार अली भुट्टो को एक राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी नवाब मोहम्मद अहमद खान कसूरी की हत्या की साजिश में दोषी ठहराया गया. कसूरी हालांकि बच गए थे लेकिन हमले में उनके पिता की मौत हो गई थी. तख्तापलट के बाद भुट्टो का मामला सीधे लाहौर हाई कोर्ट में चला, जबकि होना यह सेशन कोर्ट में था. आखिरकार उन्हें रावलपिंडी जेल में फांसी दे दी गई. यह केस काफी विवादित रहा. मुख्य गवाहों ने बाद में दावा किया कि उन पर बयान देने का दबाव डाला गया था.
दो बार पीएम बन चुकीं बेनजीर भुट्टो पर भी करप्शन और सत्ता के गलत इस्तेमाल के आरोप लगे. उन्हें कई बार हिरासत में लिया गया. प्रधानमंत्री पद से हटाए जाने के बाद भी उन पर भ्रष्टाचार के मामले दर्ज हुए और वे लंबे समय तक जेल में रहीं. साल 2007 को रावलपिंडी में एक चुनावी रैली के दौरान उनकी हत्या कर दी गई.
नवाज शरीफ तीन बार प्रधानमंत्री रहे, लेकिन वे कभी भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके. उनका हर टर्म करप्शन के आरोप में या सैन्य टकराव की वजह से खत्म होता रहा. उन पर सबसे बड़े आरोप भ्रष्टाचार, मनी लॉन्ड्रिंग और अवैध संपत्तियां बनाने को लेकर लगे थे. हाईजैकिंग और आतंकवाद जैसे गंभीर आरोपों में उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई गई. बाद में सजा कम कर दी गई और वे निर्वासित हो गए.
यूसुफ रजा गिलानी साल 2008 में पीएम बने लेकिन वे भी चार साल ही काम कर सके. उनपर आरोप था कि वे कोर्ट की अनसुनी करते हैं और अपने लोगों को बचाते हैं. बाद में उन्हें भी कई आरोपों में जेल भेज दिया गया, हालांकि ये कस्टडी सिर्फ प्रतीकात्मक रही लेकिन कानूनी तौर पर वे अपराधी साबित हो गए और संसद की सदस्यता भी चली गई.

अब आता है इमरान खान का मामला. उनपर आरोप रहा कि उन्होंने सरकारी खजाने, जिसे तोशखाना कहते हैं, वहां से तोहफे लेकर उन्हें बेच दिया. इसके अलावा, उनपर एक संवेदनशील डिप्लोमेटिक दस्तावेज लीक करने का भी आरोप रहा और वे जेल भेज दिए गए. अब उन्हीं की सेहत और सुरक्षा को लेकर सारा बवाल हो रहा है.
इससे उलट अयूब खान से लेकर याह्या खान, जियाउल हक और परवेज मुशर्रफ की सरकार बनी रही, जबकि वे सभी सैन्य तानाशाह थे. असल में पाकिस्तान में सैन्य तानाशाह अक्सर अपना कार्यकाल पूरा करते रहे और राजनीतिक नेताओं की तुलना में कहीं अधिक सुरक्षित रहे. इसे मुशर्रफ के उदाहरण से समझते हैं. तख्तापलट होते ही सेना ने अदालत से लेकर प्रशासनिक मशीनरी पर कंट्रोल कर लिया.
आर्मी इस देश की सबसे मजबूत संस्था है और यही वजह है कि कोई भी इसके खिलाफ नहीं जा पाता. आखिर में जब मुशर्रफ की लोकप्रियता घटी भी, तब भी उन्हें वह राजनीतिक प्रताड़ना नहीं झेलनी पड़ी जो पाकिस्तान के बाकी प्रधानमंत्रियों को झेलनी पड़ी. वे सुरक्षित बाहर चले गए.