scorecardresearch
 

ईरान के पहले सुप्रीम लीडर की जड़ें UP के बाराबंकी से, क्या है खुमैनी के पूर्वजों का भारत कनेक्शन?

ईरान और इजरायल के बीच बीते चार दिनों से सैन्य संघर्ष जारी है. दोनों एक-दूसरे को तबाह करने का एलान कर रहे हैं. इस बीच ईरान को लेकर एक दिलचस्प बात सामने आई. इस देश के पहले सुप्रीम लीडर अयातोल्ला रूहोल्लाह खुमैनी का सीधा कनेक्शन उत्तरप्रदेश से है. उनके पूर्वज बाराबंकी के एक गांव में रहते थे, जहां से 19वीं सदी में वे ईरान चले गए.

Advertisement
X
अयातोल्ला रूहोल्लाह खुमैनी के पूर्वज उत्तर प्रदेश में रहा करते थे. (Photo- Wikipedia)
अयातोल्ला रूहोल्लाह खुमैनी के पूर्वज उत्तर प्रदेश में रहा करते थे. (Photo- Wikipedia)

तेहरान की राजनीति को सत्तर के आखिर में नई दिशा देने वाले सर्वोच्च लीडर रूहोल्लाह खुमैनी की धाक ईरान में नोटों से लेकर सड़कों और कॉलेजों तक दिखती है. यही वो शख्स है, जो देश में इस्लामिक क्रांति का सबब बना. फिलहाल इजरायल और ईरान में जंग के बीच कई नई-पुरानी बातें सतह पर आ रही हैं. इन्हीं में से एक दिलचस्प पहलू ये है कि खुमैनी खानदान का सीधा संबंध भारत के उत्तर प्रदेश से है. यहीं पर ईरान के पहले सुप्रीम लीडर के पूर्वज रहते थे, जो बाद में इराक होते हुए ईरान लौट गए. 

ईरान में इस्लामिक क्रांति लाने वाले अयातुल्ला रूहोल्लाह खुमैनी के दादा सैयद अहमद मुसावी का जन्म उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले में हुआ था. किंतूर एक छोटा-सा गांव था, लेकिन तब भी शिया मुस्लिम स्कॉलर्स की वहां भारी बसाहट थी. मुसावी अपने नाम के साथ हिंदी जोड़ा करते थे, ताकि हिंदुस्तान के लिए अपने लगाव को जता सकें. यहां बता दें कि ईरान की राजनीति और सामाजिक-धार्मिक सोच को आकार देने वाला ये परिवार शुरुआत से ही भारत में नहीं था, बल्कि उसकी जड़ें ईरानी ही थीं. मूल रूप से ईरान का ये परिवार 18वीं सदी के आखिर में भारत पहुंचा.

वे यहां क्यों आए थे, इसपर विवाद है. 

कई इस्लामिक विद्वान मानते हैं कि वे शिया धर्म के प्रचार के लिए इतनी दूर पहुंचे थे. दरअसल 17वीं से 18वीं सदी के बीच कई ईरानी शिया विद्वान भारत के लखनऊ, बाराबंकी और हैदराबाद जैसे इलाकों में आए, ताकि वहां अपने मजहब का प्रचार कर सकें. बाराबंकी उस समय शिया नवाबों का इलाका था, जो स्कॉलर्स को मस्जिदों, इमामबाड़ों में संरक्षण और पद दिया करते थे. ज्यादा काबिल हों तो उन्हें काफी तरक्की भी दी जाती. 

Advertisement

ruhollah khomeini shrine photo AP

पलायन को लेकर एक तर्क और भी है. उस दौर में ईरान में लगातार ही सत्ता संघर्ष चल रहा है. ऐसे में स्कॉलर वहां से यहां आने लगे ताकि आसान और प्रतिष्ठित जिंदगी भी मिले और धार्मिक कामकाज भी हो सकें. इसी कड़ी में मुसावी भी बाराबंकी पहुंचे और किंतूर नाम के गांव में बस गए. 

आगे चलकर मुसावी धार्मिक यात्रा के लिए इराक पहुंचे और वहां से होते हुए ईरान पहुंच गए. यहीं उनका परिवार फैला. उन्होंने तीन शादियां कीं, जिनमें पांच संतानें हुईं. इन्हीं में से एक बेटे मुस्तफा की संतान रूहोल्लाह खुमैनी थे, जिनकी वजह से ईरान में इस्लामिक क्रांति आई. साल 1979 में आए इस बदलाव में तत्कालीन लीडर शाह मुहम्मद रजा पहलवी की सरकार को उखाड़ फेंका गया और तेहरान में इस्लामिक शासन आ गया. 

हालांकि ये सब कुछ इतनी आसानी से नहीं हुआ. रजा सरकार के सिर पर अमेरिका का हाथ था, यानी आसानी से हार मानने का सवाल ही नहीं था. उन्होंने सारे रास्ते अपनाए. सैन्य कंट्रोल से जब बात नहीं बनी तो सही-गलत बातें फैलाई जाने लगीं. इसका इंडिया एंगल भी था. खुमैनी को विदेशी मूल का यानी भारत का बताकर उनकी धार्मिक वैधता को चुनौती दी गई. इस दौरान उन्हें जेल में डाल दिया गया ताकि वे अपनी बात न रख सकें. कहा गया कि वे ईरानी नहीं, बल्कि भारतीय मूल के हैं और उनकी सोच भी विदेशी है. 

Advertisement

iran army photo AP

खुमैनी ने निर्वासन में रहते हुए ही कई लेख लिखकर बताया कि उनके पुरखे भारत में जरूर रहे, लेकिन वे धर्म के प्रचार के लिए वहां गए थे, और उनकी जड़ें ईरान से ही हैं. इन लेखों ने खुमैनी को आउटसाइडर साबित करने की कोशिशों पर पानी फेर दिया. मामला ऐसा पलटा कि खुमैनी और उनके समर्थकों ने रजा सरकार को पश्चिमी विचारों को मानने वाला और इस्लाम विरोधी साबित कर दिया.

जनता जेल में बंद खुमैनी के पक्ष में आ गई. प्रदर्शन होने लगे और 1979 में तख्तापलट हो गया. अब रूहोल्लाह खामेनेई ईरान के सर्वोच्च लीडर थे. बाद से 10 साल ईरान के लिए काफी उठापटक वाले रहे लेकिन वे अपनी मौत तक सत्ता में बने रहे. 

उनके बाद ईरान की बागडोर उनके साथी अयातुल्ला खामेनेई अली के हाथ आ गई, जो उनके शिष्य थे. यहां बता दें कि ईरान में इस बात पर खासा विरोध रहा कि सत्ता एक ही परिवार के हाथों ट्रांसफर होती रहे. यही वजह है कि पहले लीडर खुमैनी के बाद उनके भरोसेमंद साथी खामेनेई तस्वीर में आए. आगे भी खामेनेई के पुत्र की बजाए किसी और को तेहरान की कमान संभालने का मौका मिल सकता है. 

---- समाप्त ----
Live TV

Advertisement
Advertisement