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दूसरे वर्ल्ड वॉर से भी ज्यादा अस्थिर वक्त, कहीं लड़ाई तो कहीं बेहद तनाव, क्या शुरू होगा तीसरा विश्व युद्ध?

दुनिया के कई हिस्से इस वक्त जंग की आग में झुलस रहे हैं. कहीं दो देशों के बीच लड़ाई है, तो कहीं अंदरुनी कलह से लोग मारे जा रहे हैं. अब इसी लिस्ट में भारत-पाकिस्तान भी शामिल हो चुके. कश्मीर के पहलगाम में आतंकी हमले के बाद दोनों के बीच तनाव बेहद बढ़ चुका. दूसरे वर्ल्ड वॉर से ठीक पहले माहौल जितना गरमाया हुआ था, ये वक्त उससे कहीं आगे दिख रहा है.

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लगभग सारे महाद्वीपों में कहीं न कहीं लड़ाई चल रही है. (Photo- AP)
लगभग सारे महाद्वीपों में कहीं न कहीं लड़ाई चल रही है. (Photo- AP)

दूसरे विश्व युद्ध से ठीक पहले भी कई देश आपस में लड़-भिड़ रहे थे. मसलन, इटली ने इथियोपिया पर हमला किया था, वहीं सोवियत संघ और स्पेन में अंदरुनी उथल-पुथल थी. लेकिन ताजा-ताजा फर्स्ट वर्ल्ड वॉर से निकली हुई दुनिया में भी उतना गुस्सा नहीं था, जितना अभी दिख रहा है. फिलहाल लगभग सारे ही देश बारूद के ढेर पर बैठे हुए हैं, जो एक चिंगारी लगते ही भभककर फट जाएंगे. तो क्या तीसरे वॉर की कहानी शुरू हो चुकी?

वर्ल्ड पॉपुलेशन रिव्यू के मुताबिक, इस वक्त दुनिया के लगभग सारे ही महाद्वीपों पर कोई न कोई लड़ाई चल रही है. 

इसमें एक है रूस और यूक्रेन युद्ध, जिसे तीन से ज्यादा साल होने जा रहा है. फरवरी 2022 में शुरू हुई लड़ाई में अब तक लाखों यूक्रेनी नागरिक विस्थापित हो चुके. हजारों मौतें हो चुकीं, लेकिन रुकने का कोई संकेत नहीं. 

इजरायल और हमास की जंग में गाजा पट्टी के लोग तबाह हो चुके हैं. अक्टूबर 2023 में हमास ने इजरायल पर हमला किया था, जिसके जवाब में इजरायल ने भी सैन्य एक्शन लिया. अब पश्चिम एशिया का पूरा इलाका इस आग की चपेट में आ रहा है. 

अफगानिस्तान और पाकिस्तान की सीमा पर सीधे युद्ध तो नहीं, लेकिन कन्फ्लिक्ट चल रहा है. इसी तरह का संघर्ष ईरान और इजरायल के बीच भी चला आ रहा है. 

अफ्रीका के कई हिस्से भी गृहयुद्ध की आग में झुलस रहे हैं. सूडान में साल 2023 से दो सैन्य गुटों के बीच लड़ाई छिड़ी हुई है जिसने देश को बर्बाद कर दिया है . वहीं माली, बुर्किना फासो, हैती और नाइजर जैसे देश चरमपंथी हिंसा के जाल में फंसे हुए हैं. 

मध्य पूर्व दो दशकों से शायद ही कभी शांत रहा हो. इराक और सीरिया में इस्लामिक स्टेट जैसे आतंकी समूह अब भी कहीं न कहीं एक्टिव हैं. 
भारत के पड़ोस की बात करें तो पाकिस्तान के अंदर बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा जैसे इलाकों में आतंकी गतिविधियां और सैन्य अभियान जारी हैं. 

चीन और ताइवान के रिश्ते लगातार कड़वे होते जा रहे हैं. अभी सीधी लड़ाई नहीं लेकिन दबाव बढ़े तो ताइवान भी आक्रामक हो सकता है, ऐसे संकेत वो दे रहा है. 

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कैसे शुरू हुई थे पहले दो युद्ध

पहला विश्व युद्ध साल 1914 में शुरू हुआ जब ऑस्ट्रिया के युवराज आर्कड्यूक फ्रांज फर्डिनेंड की हत्या कर दी गई थी. यह हत्या सर्बिया के एक राष्ट्रवादी ने की थी. इसके बाद यूरोप के देशों के बीच जो सैन्य गठबंधन बने हुए थे, वे एक-एक करके जंग में कूद पड़े. जर्मनी, ऑस्ट्रिया के साथ था और ब्रिटेन, फ्रांस और रूस सर्बिया के साथ. देखते ही देखते पूरा यूरोप आपस में लड़ने लगा और पहला वॉर छिड़ गया. 

राख के नीचे दबी चिंगारी थी दूसरी लड़ाई 

दूसरा विश्व युद्ध साल 1939 में शुरू हुआ जब जर्मनी के तानाशाह एडोल्फ हिटलर ने पोलैंड पर हमला कर दिया. दरअसल पहला विश्व युद्ध क्लियर-कट जीत या हार नहीं था. इस दौरान जर्मनी को लगा कि वो सबसे मजबूत देश होकर उभर सकता है, अगर बाकी देशों को पटखनी दे दे तो. इसके लिए नाजी शासक हिटलर ने खुद को तैयार किया और एक के बाद एक देशों को अपने साथ मिलाने लगा. पोलैंड पर हमले से ही दूसरा वर्ल्ड वॉर शुरू हो गया.

इसके बाद ब्रिटेन और फ्रांस ने जर्मनी के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी. आग फैलती चली गई, जिसमें बाद में जापान और अमेरिका जैसे देश भी शामिल हो गए और लगभग पूरी दुनिया दो खांचों में बंट गई. 

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क्या वाकई हो सकती है तीसरी जंग

युद्ध भी संक्रामक बीमारी की तरह होता है. भले ही दो देश लड़ें, या किसी मुल्क के भीतर फसाद चल रहा हो, इसमें बाहरी देश चाहे-अनचाहे शामिल हो जाता है. कई बार अपनी विचारधारा वाले देश को सपोर्ट करने के लिए भी कोई युद्ध का हिस्सा बन जाता है. यही अब हो सकता है अगर जल्द युद्धविराम न हो. कुछ देश रूस का साथ देंगे. कुछ अमेरिका की तरफ खड़े होंगे. वहीं एक तीसरा पाला भी होगा. इसमें कुछ ऐसे देश शामिल होंगे, जिनका दोनों ही खेमों से कुछ न कुछ वास्ता है और जो जंग नहीं चाहते हुए भी उसका हिस्सा बन चुके होंगे. 

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एक कंप्यूटर सिस्टम है, जो भौगोलिक आधार पर अलग-अलग तरह की जानकारियां जमा करता है. जियोग्राफिकल इंफॉर्मेशन सिस्टम (जीआईएस) की कई रिपोर्ट्स यही इशारा कर रही हैं. रक्षा विशेषज्ञ और जर्मनी के फेडरल इंटेलिजेंस सर्विस के पूर्व वाइस प्रेसिडेंट रूडोल्फ जी एडम ने जीआईएस के डेटा को देखते हुए इसी तरह का दावा किया. इसके मुताबिक तीन धड़े एक-दूसरे को शक और चुनौती की नजर से देखेंगे और यही बात आगे चलकर लड़ाई बढ़ाएगी.

कौन से देश किस तरफ

पश्चिमी उदारवादी और पूंजीवादी देश एक तरफ होंगे. इसमें अमेरिका, कनाडा, यूके, यूरोप, जापान और ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं. दक्षिण कोरिया भी इसी तरफ होगा क्योंकि एक समय पर अमेरिका ने उसकी भारी मदद की थी.

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दूसरा खेमा कौन सा 

इस हिस्से में रूस होगा, जिसकी तरफ बेलारूस, इरान, सीरिया, वेनेजुएला और उत्तर कोरिया होंगे. चीन ऑन एंड ऑफ तरीके से रहेगा, लेकिन उसकी ज्यादा संभावना इसी पक्ष में रहने की है. इसकी एक वजह अमेरिका की बजाए खुद को सुपरपावर की तरह देखना है. तो दुश्मन का दुश्मन दोस्त की तर्ज पर चीन कूटनीति खेल सकता है. 

तीसरा हिस्सा बिल्कुल नया हो सकता है 

इसमें विकासशील देश होंगे. भारत इनका अगुआ हो सकता है, जो कि विकसित देशों के लिए खतरा बनकर उभरा है. इसके साथ बाकी दक्षिण एशियाई देश होंगे. दक्षिण अमेरिका और अरब देश भी इस समूह में होंगे, जिनका आमतौर पर दोनों खेमों से पाला पड़ता है, और जो युद्ध रोकना चाहते तो होंगे लेकिन उसमें फंस जाएंगे. हो सकता है कि पाकिस्तान भी चारों तरफ से दुत्कार के बाद इसी पाले में आ जाए.

कैसे रुकता है युद्ध 

मेसाच्युसेट्स इंस्टीट्यूट की रिसर्च के मुताबिक इसका कोई तय फॉर्मूला नहीं है. 

- लड़ाई के बाद कई चरण आते हैं, जैसे प्रिलिमिनरी टॉक. ये आमतौर पर देशों के लीडर या पीसकीपिंग संस्थाएं कराती हैं. इसमें लड़ रहे लोग साथ बैठकर बात करते हैं.

- इसके बाद नेगोशिएशन होता है, यानी शर्तें रखी जाती हैं. अगर सब कुछ ठीक रहा तो कुछ लिखीपढ़ी के साथ शांति स्थापित हो जाती है. हालांकि इसमें भी कई पेंच हैं.

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- शोध के अनुसार, जब तक एक पक्ष पूरी तरह से हारता नहीं है, युद्ध पूरी तरह से रुकता नहीं है. देशों के बीच तनाव बना ही रहता है. ये मामला उत्तर और दक्षिण कोरिया के बीच भी दिखता है, और अफ्रीका में भी.

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