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ट्रंप का दावा- गाजा को दोबारा खड़ा करने में अमीर पड़ोसी करेंगे मदद, अब तक किन देशों ने भरी हामी?

इजरायल और हमास सीजफायर के उस प्लान पर राजी हो चुके, जो डोनाल्ड ट्रंप ने सुझाया था. जल्द ही पहला चरण लागू होगा. इसके बाद गाजा पट्टी में रीकंस्ट्रक्शन शुरू होगा. गिरे हुए स्कूल-अस्पताल दोबारा बनाए जाएंगे. ट्रंप ये जिम्मा गाजा के अमीर पड़ोसियों पर डाल चुके, लेकिन अब तक किसी ने भी इसपर सीधी हामी नहीं भरी है.

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गाजा की अधिकतर आबादी कई बार विस्थापित हो चुकी. (Photo- Reuters)
गाजा की अधिकतर आबादी कई बार विस्थापित हो चुकी. (Photo- Reuters)

हमास अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की गाजा शांति योजना को स्वीकार कर चुका. इजरायल पहले ही तैयार बैठा है. अब प्रस्ताव का पहला फेज शुरू होगा. सेनाएं हटाने के बाद गाजा पट्टी में दोबारा से इमारतें और सड़कें बनाई जाएंगी ताकि लोग वहां रह सकें. युद्ध में गाजा की 80 फीसदी से ज्यादा इमारतें ध्वस्त हो चुकीं. ट्रंप मानकर चल रहे हैं कि फिलिस्तीन की बात करते अमीर पड़ोसी देश गाजा को दोबारा खड़ा करने के लिए फंड देंगे. लेकिन क्या हो, अगर कोई भी देश इसपर सहमत न हो?

आतंकी संगठन हमास का हेडक्वार्टर गाजा में है. वो यहीं से संचालित होता रहा. दो साल पहले अक्तूबर में शुरू हुए युद्ध के बाद से हमास तो कमजोर पड़ा ही, लेकिन गाजा पट्टी पर सबसे ज्यादा असर हुआ. वहां का ज्यादातर इंफ्रास्ट्रक्चर खत्म हो गया. अब डोनाल्ड ट्रंप एक शांति योजना लाए हैं, जिसपर शुरुआती ना-नुकर के बाद हमास मान गया.

माना जा रहा है कि जल्द ही चरण-दर-चरण पीस प्लान लागू होने लगेगा. इसका एक बड़ा हिस्सा नष्ट हुए इंफ्रास्ट्रक्चर को दोबारा बनाना भी है. ट्रंप का कहना है कि पैसे वाले पड़ोसी देश बाखुशी ये करेंगे. हालांकि अब तक किसी ने इसपर मंजूरी नहीं दी.

कौन से देश गाजा के आसपास

अगर इजरायल को छोड़ दिया जाए तो ये इलाका मिस्र, जॉर्डन, लेबनान और सीरिया से सटा हुआ है. सबसे अमीर और स्थिर मिस्र है लेकिन वहां भी आर्थिक चुनौतियां हैं. बाकी पड़ोसी आर्थिक रूप से कमजोर या संकट में हैं. सीरिया की हालत तो काफी खराब है. थोड़ी दूर यानी गाजा के मोहल्ले को टटोलना चाहें तो इस्लामिक देश हैं, जो उसकी आइडियोलॉजी यानी फिलिस्तीन का सपोर्ट करते रहे. इनमें कतर, यूएई, सऊदी अरब और बहरीन जैसे मुल्क हैं, जो वाकई पैसे वाले हैं. 

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gaza during hamas israel war (Photo- AP)
सीजफायर के बाद गाजा पट्टी के इंफ्रास्ट्रक्चर पर काम शुरू किया जाएगा. (Photo- AP)

कैसा है उनका गाजा के साथ रवैया

इनके साथ ये बात भी है कि वे गाजा के सपोर्टर रहे, खासकर उसके फिलिस्तीन के आइडिया का. कतर सबसे सक्रिय देश रहा है, जो सीधे गाजा पट्टी को वित्तीय मदद देता रहा और कई बार हमास का भी सपोर्ट किया. सऊदी अरब ने राजनीतिक स्तर पर फिलिस्तीन का समर्थन किया लेकिन सीधे दखल से बचता रहा. यूएई और बहरीन का रवैया बदलता रहा. पहले ये आर्थिक और राजनीतिक रूप से मदद करते थे. फिर कुछ साल पहले इन्होंने इजरायल के साथ अब्राहम अकॉर्ड पर साइन किया. इसके बाद इनका सीधे समर्थन काफी कम हो गया. 

बुधवार को ही एक न्यूज चैनल से बात करते हुए ट्रंप ने कहा गाजा अब एक बहुत सुरक्षित जगह बनने जा रहा है और इसमें पड़ोसी देश सहायता करेंगे, जिनके पास भारी दौलत है. लेकिन उन्होंने इसपर कोई डिटेल नहीं दी कि कौन से देश हैं और कितनी सहायता करेंगे. और क्या उनकी मंजूरी के बाद ये दावा किया जा रहा है, या फिर ट्रंप खुद ये मान चुके. 

अब तक क्या कहा अरब देशों ने

ट्रंप के पीस प्लान से पहले ही कई देशों ने काहिरा में एक बैठक की थी, जिसमें ये बात की गई कि वे गाजा पट्टी में एक बंदरगाह और एक हवाई अड्डे को बनाने में मदद करेंगे. मिस्र और कतर भी सहयोग की बात कर चुके लेकिन ये कब और कैसे शुरू होगा, इसपर फिलहाल कोई बात नहीं है.

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donald trump gaza peace plan (Photo- AP)
डोनाल्ड ट्रंप गाजा में शांति के लिए एक इंटरनेशनल बॉडी बनाने का भी प्रस्ताव दे चुके. (Photo- AP)

अगर अरब देश गाजा के रीकंस्ट्रक्शन में मदद से मना कर दें, तो ट्रंप की भूमिका अलग तरह से देखने को मिल सकती है.

अमेरिका सीधे वित्तीय या तकनीकी मदद दे सकता है, लेकिन इससे उसके बजट और विदेश नीति पर असर पड़ सकता है, जैसे गाजा में ज्यादा दिलचस्पी से इजरायल से दूरी. ये भी हो सकता है कि ट्रंप दोबारा कूटनीतिक पहल करें और पड़ोसी देशों को इसके लिए मना लें. हालांकि ट्रंप ने कभी यह साफ नहीं किया कि अरब देश मदद से पीछे हट जाएं तो अमेरिका अकेले कितना योगदान देगा. 

यहां एक पहलू और है. गाजा में पुर्ननिर्माण के दौरान ट्रंप एक बोर्ड ऑफ पीस बनाने की भी बात कर रहे हैं, जिसके हेड वे खुद होंगे. इस इंटरनेशनल बॉडी के जरिए हो सकता है कि वे गाजा के अंदरुनी मामलों में दखल लेने लगें, जैसा आमतौर पर अमेरिका करता आया है. इस स्थिति से बचने के लिए बहुत संभव है कि अरब देश खुद ही गाजा पट्टी की सहायता के लिए आगे आने लगें. 

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