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पर्थ में भारत को बनना होगा आक्रामक

भारत और आस्ट्रेलिया शुक्रवार से जब तीसरे टेस्ट में आमने सामने होंगे तो वाका की हरी भरी पिच पर मेजबाज तेज गेंदबाजी के सामने भारतीय बल्लेबाजों को हर हालत में आक्रामक तेवर अख्तियार करने होंगे.

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पर्थ स्टेडियम
पर्थ स्टेडियम

भारत और आस्ट्रेलिया शुक्रवार से जब तीसरे टेस्ट में आमने सामने होंगे तो वाका की हरी भरी पिच पर मेजबाज तेज गेंदबाजी के सामने भारतीय बल्लेबाजों को हर हालत में आक्रामक तेवर अख्तियार करने होंगे.

चार टेस्ट मैचों की श्रृंखला में 0-2 से पिछड़ी भारतीय टीम को आफ स्टम्प से बाहर जाती गेंदों से बचना होगा. माइकल क्लार्क से लेकर जेम्स पेटिनसन तक और पीटर सिडल से माइक हस्सी तक सभी ने बार बार कहा है कि मैडन ओवर फेंककर भारतीय बल्लेबाजी को दबाव में लाया जा सकता है जिससे विकेट मिलते हैं.

विकेटकीपर ब्राड हैडिन ने तो यहां तक कह डाला कि सचिन तेंदुलकर बल्ले पर गेंद के आने का इंतजार करते हैं ताकि वह लय हासिल कर सके. यदि उन्हें बाहर की ओर गेंद फेंकी जाये तो उन पर दबाव बनाया जा सकता है जैसा कि पिछले दो टेस्ट में देखा गया.

भारतीयों को अब आक्रामकता दिखानी होगी. पिछली दो पीढियों में तेज गेंदबाजी के खिलाफ भारत के सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज रहे मोहिंदर अमरनाथ ने भी इसका समर्थन किया है जो अब राष्ट्रीय चयनकर्ता हैं.

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दो टेस्ट के बाद भारत लौटने से पहले अमरनाथ ने कहा था कि अच्छे तेज आक्रमण पर भी दबाव बनाया जा सकता है लेकिन इसके लिये आक्रामक होना होगा.

अमरनाथ ने 1980 और 82 के दरमियान पाकिस्तान और वेस्टइंडीज के तेज आक्रमण के खिलाफ कुछ बेहतरीन पारियां खेली थी. उन्होंने इमरान खान, सरफराज नवाज, सिकंदर बख्त, माइकल होल्डिंग, एंडी राबर्ट्स, मैल्कम मार्शल और जोएल गार्नर जैसे गेंदबाजों के खिलाफ पांच शतक और सात अर्धशतक समेत करीब 1200 रन बनाये थे.

बारबाडोस टेस्ट में 1982-83 की श्रृंखला में उनकी 91 और 80 रन की पारियां यादगार रही. उन पारियों में भारत ने 209 और 277 रन बनाये थे. दूसरी पारी में मार्शल की एक गेंद उनके मुंह पर लगी और खून बहने लगा. वह सिर्फ टांके लगवाने मैदान से बाहर गए और लौटकर 80 रन बनाये.

कानपुर में 1983 में एक टेस्ट में जब मार्शल ने गावस्कर को बल्ला छोड़ने के लिये मजबूर किया तब यह महान बल्लेबाज अपना कैरियर बचाने के लिये जूझ रहा था.

गावस्कर ने दिल्ली में अगले टेस्ट में अपने चिर परिचित हुक शाट लगाये. मार्शल एंड कंपनी को दबाव में लाकर उन्होंने सिर्फ 128 गेंद में 121 रन बना डाले.

दिलीप वेंगसरकर का भी मानना है कि तेज गेंदबाजों के खिलाफ आक्रामक होना जरूरी है. उन्होंने 1983-84 में वेस्टइंडीज के खिलाफ लगातार दो शतक जड़े थे.

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सत्तर के दशक के आखिर में विश्व क्रिकेट सीरिज में ग्रेग चैपल ने कुछ बेहतरीन पारियां खेली थी. उस अनधिकृत श्रृंखला के पांच सुपर टेस्ट में चैपल ने 69 की औसत से 621 रन बनाये थे. वेस्टइंडीज के खिलाफ उनके कट और हुक शाट आज भी याद किये जाते हैं. इस श्रृंखला में आस्ट्रेलिया ने हरी भरी पिचें बनाकर भारतीयों की परेशानी और बढा दी है.

आफ स्टम्प पर पड़ती तेज गेंदों ने भारत के मजबूत बल्लेबाजी क्रम की कलई खोल दी है. टीम के एक युवा बल्लेबाज ने कहा, ‘हमने सोचा था कि आस्ट्रेलियाई शार्ट आफ लैंग्थ गेंदबाजी करेंगे जिसके लिये हमने तैयारी की थी. लेकिन वे पूरी लैंग्थ से गेंद डाल रहे हैं और हरी भरी पिच से उन्हें स्विंग मिल रही है. अब हमें फ्रंटफुट पर खेलना पड़ रहा है जिससे परेशानी बढ गई है.’

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