टीवी के कई पॉपुलर शो में अपनी एक्टिंग का जलवा बिखेर चुकीं देवोलीना भट्टाचार्जी अब फिल्मों में अपनी किस्मत आजमाने के लिए तैयार हैं. बकौल देवोलीना अब वे टीवी के रिग्रेसिव कंटेंट से बोर हो चुकी हैं और उन्होंने फैसला लिया है कि अब वे केवल क्वॉलिटी प्रोजेक्ट्स पर ही अपना फोकस करेंगी.
अब रिग्रेसिव टीवी शोज नहीं करूंगी
आजतक से बातचीत के दौरान देवोलीना बताती हैं, फिलहाल मैंने टीवी शोज से भी ब्रेक लिया है. मेरी ख्वाहिश है कि मैं फिल्मों में अपना लक आजमाऊं. इसकी तैयारी भी चल रही है. हाल ही में मेरी शॉर्ट फिल्म की अनाउंसमेंट हुई है. अब एक और प्रोजेक्ट है, जिस पर बात चल रही है. टीवी पर वापसी पर देवोलीना कहती हैं, मैं टीवी की हमेशा शुक्रगुजार रहूंगी कि आज उसकी बदौलत मैं यहां तक पहुंच पाई हूं, लेकिन अब मैं रिग्रेसिव शोज का हिस्सा बिल्कुल भी नहीं बनना चाहती हूं. मैंने देखा है कि टीवी में महिला किरदार सीमित रहती हैं, उनके विचार सीमित कर दिए जाते हैं. अब ऐसे किसी शो का हिस्सा बनना मंजूर नहीं. अगर टीवी में फीमेल सेंट्रिक पावरफुल रोल्स मिलते हैं, तो मैं इसके लिए तैयार हूं, वरना मैं नहीं जा रही. वैसे एक एक्टर के तौर पर मैं किसी भी मीडियम को अलग नहीं देखती हूं. अगर किरदार दमदार है, तो चाहे कोई भी मीडियम हो, मेरे लिए बस वही मायने रखता है.
फिल्मों में हम टीवी एक्टर्स को नहीं मिलता वो सम्मान
इन दिनों फिल्मों में ऑडिशन के दौरान मैंने महसूस किया है कि टीवी स्टार के लिए बॉलीवुड इंडस्ट्री थोड़ी सी भी वेलकमिंग नहीं है. बड़े-बड़े डायरेक्टर, प्रोड्यूसर की बात छोड़ें, यहां कास्टिंग डायरेक्टर भी आपको नीची निगाहों से देखते हैं. जब कोई फिल्मी एक्टर अगर टेलीविजन में डेब्यू करता है, तो हम सभी टीवी स्टार्स बांहे फैलाकर उनको वेलकम करते हैं, वहीं अगर हममें से कोई फिल्मों में जाना चाहें, तो हमें वो सम्मान क्यों नहीं मिलता है. इस तरह से टीवी, फिल्म, थिएटर एक्टर्स के बीच बंटवारा कर देना कहां से जायज है. भई आप एक्टर को उनकी एक्टिंग के आधार पर जज करें, तो सही भी लगता है. कई बार टीवी एक्टर को अपनी टीवी टैग को हटाने के लिए घर पर सालों बैठना पड़ता है. तो क्या फिल्म वाले इसकी गारंटी देंगे कि वे आगे आपको फिल्म दे ही देंगे. बिना काम के बैठने पर उनका राशन और ईएमआई का खर्चा कौन उठाएगा.
ट्रोल्स पर भड़कीं देवोलीना भट्टाचार्य- मेरा बस चले तो इनका मुंह तोड़ दूं
नाम कमाने के बावजूद फिल्मों में स्ट्रगल करना दुख देता है
कई बार टीवी एक्टर को टाइपकास्ट कर दिया जाता है कि हम स्क्रीन पर लाउड होते हैं, बहुत ड्रामाटाइज होता है, चीजों को बढ़ा चढ़ाकर पेश किया जाता है, तो कई फिल्मों में हीरो दस लोगों से मार खाने के बाद उन्हें पीटता नजर आता,तो वहां किस चीज का लॉजिक दिया जाता है. मैं बार-बार यही कहना चाहती हूं कि एक्टर को टाइपकास्ट करने के बजाय बस उसकी परफॉर्मेंस पर फोकस कर उन्हें काम दें. मैं एक थिएटर आर्टिस्ट भी रही हूं. स्टेट लेवल पर परफॉर्म करने दौरान मुझे कई एनएसडी के दिग्गजों ने कहा कि मैं आगे चलकर एनएसडी ही जाऊंगी लेकिन किस्मत में कुछ और ही लिखा था और मैं टीवी में आ गई. अब जब इतनी ट्रेनिंग हो चुकी है, और नाम कमा लिया है, फिर भी फिल्मों के लिए स्ट्रगल करना वाकई में दुख देता है.
पोल डांसिंग की क्वीन हैं ये एक्ट्रेसेस, जैकलीन से लेकर कृति खरबंदा का नाम शामिल
डिजाइनर्स भी करते हैं भेदभाव
ये केवल बॉलीवुड तक ही बात सीमित नहीं है, कई टॉप के फैशन डिजाइनर्स भी भेदभाव करते हैं. कई डिजाइनर्स ने यह कह कर मुझे नकार दिया था कि वे किसी टीवी एक्ट्रेस को ड्रेस नहीं देते हैं. काफी गुस्सा आया था, ये लोग भूल जाते हैं कि ये भी छोटी जगहों से आगे बढ़े हैं, और इन्हें बजाए नीचा दिखाने के लिए एक-दूसरे की मदद करनी चाहिए.