लव रंजन के प्रोडक्शन में कोई फिल्म बने और उससे दर्शकों को उम्मीदें ना हो ऐसा नहीं हो सकता. जब मैं सनी सिंह निज्जर और सोनाली सहगल की फिल्म जय मम्मी दी देखने के लिए सिनेमाहॉल में गई तो मैंने भी सोचा था कि मुझे कुछ बढ़िया कॉमेडी और किरदार देखने को मिलेंगे. लेकिन अफसोस ऐसा नहीं हुआ.
कहानी
जय मम्मी दी कहानी है लाली खन्ना (सुप्रिया पाठक कपूर) और पिंकी भल्ला (पूनम ढिल्लन) की जो कॉलेज की दोस्त हुआ करती थीं. अब लाली और पिंकी दो जवान बच्चों की मां हैं और एक-दूसरे की जानी दुश्मन हैं. इन दोनों की दुश्मनी ऐसी है कि दोनों में से एक भी पीछे हटने को तैयार नहीं है और एक दूसरे की बराबरी करने के लिए दोनों एक ही काम करती हैं.
दोनों के घर में एक ही कामवाली है, दोनों एक जैसे कपड़ें भी सिलवा लेती हैं और यहां तक कि अपने बच्चों की शादी की तारीख और वेन्यू भी एक ही रखती हैं. इन दोनों के बच्चों का मानना है कि लाली और पिंकी का बस चले तो वो दोनों बच्चों की शादी भी एक ही इंसान से करवा दें.
अब लाली और पिंकी के बच्चों की बात करें तो पुनीत खन्ना (सनी सिंह निज्जर) और सांझ भल्ला (सोनाली सहगल) एक दूसरे को बचपन से जानते हैं. ये दोनों बच्चे बचपन से एक-दूसरे को पसंद करते हैं लेकिन अपनी मांओं की दुश्मनी के चलते एक नहीं हो पा रहे. क्या दोनों मां अपनी दुश्मनी भूलकर इन दोनों बच्चों को एक होने देंगी या नहीं यही फिल्म में देखने वाली बात है.
ये एक कॉमेडी फिल्म है, जिसमें आपको हंसाने की भरपूर कोशिश की गई है. लेकिन आपको एक दो सीन के अलावा कहीं हंसी नहीं आती. फिल्म की कहानी बहुत बेसिक है, जिसे आप फिल्म की शुरुआत में ही समझ जाएंगे. फिल्म को बहुत फनी और मजेदार दिखाने की कोशिश की गई है लेकिन फिर भी इसमें कुछ कमी है.
परफॉरमेंस
एक्टिंग की बात करें तो सनी सिंह निज्जर आपको सोनू के टीटू की स्वीटी मोड में ही नजर आने वाले हैं. उनके काम में कुछ खास दम नहीं है. वहीं सोनाली सहगल एक मुंहफट लड़की के किरदार में अच्छी हैं. सनी और सोनाली ने फिल्म प्यार का पंचनामा 2 में भी काम किया था, शायद इसीलिए दोनों की केमिस्ट्री अच्छी है.
मम्मियों की बात करें तो सुप्रिया पाठक कपूर और पूनम ढिल्लन ने अपना काम अच्छे से किया है. इन दोनों के अलावा फिल्म की बाकी सपोर्टिंग कास्ट जैसी दानिश हुसैन और अन्य एक्टर्स का भी काम अच्छा है. फिल्म में कैमियो काफी मजेदार हैं, जिनमें बहुत से एक्टर्स को देखकर आपको खुशी होगी.
डायरेक्शन
डायरेक्टर नवजोत गुलाटी इस फिल्म को और बेहतर बना सकते थे. फिल्मों में शादी का मजाक बनाना अलग बात होती है और शादी को मजाक समझ लेना अलग. किरदारों की नोक-झोक अच्छी थी लेकिन फालतू के गे जोक को घुसाने की कोशिश काफी बेकार थी. इसके अलावा भी फिल्म के लगभग सारे जोक मुंह के बल गिरे हैं.
फिल्म की सिनेमेटोग्राफी ठीक है. दिल्ली के इलाकों को अच्छे से कैप्चर किया गया है. इसके अलावा फिल्म का म्यूजिक कुछ बहुत कमाल नहीं है. मम्मी नु पसंद नहीं है तू गाना आपको इस फिल्म में सुनने को मिलेगा और उसके अलावा आप कोई और गाना याद भी नहीं रखेंगे. कुल-मिलाकर ये फिल्म काफी खोखली है, जो आपको हंसाने की और इमोशनल करने की कोशिश में नाकाम रहती है.