एक्टर इरफान खान के बेटे ने लिखा पावरफुल नोट- मेरे पिता 6 पैक एब्स वालों से हार गए
लेजेंडरी एक्टर इरफान खान के बेटे बाबिल ने एक पावरफुल नोट इंस्टाग्राम पर शेयर किया है जिसमें उन्होंने कहा है कि उनके पिता बॉक्स ऑफिस पर सिक्स पैक एब्स स्टार्स के सामने मात खा गए.
इस साल अप्रैल महीने में लेजेंडरी एक्टर इरफान खान ने दुनिया को अलविदा कह दिया था. हाल ही में उनके बेटे ने एक पावरफुल नोट इंस्टाग्राम पर शेयर किया है जिसमें उन्होंने कहा है कि उनके पिता बॉक्स ऑफिस पर सिक्स पैक एब्स स्टार्स के सामने मात खा गए. बाबिल ने इरफान और अपनी दो तस्वीरें इंस्टाग्राम पर शेयर की और एक लंबा नोट फैंस के साथ साझा किया.
बाबिल बोले, पापा ने कहा था विश्व सिनेमा में नहीं होती बॉलीवुड की रिस्पेक्ट
बाबिल ने इंस्टाग्राम के कैप्शन में लिखा, क्या आपको मालूम है कि मेरे पिता ने मुझे सिनेमा का छात्र होने के नाते सबसे जरूरी चीज क्या सिखाई थी? फिल्म स्कूल जाने से पहले मेरे पिता ने मुझे चेताया था कि मुझे अपने आपको साबित करना ही होगा क्योंकि वर्ल्ड सिनेमा में बॉलीवुड को बेहद कम मौकों पर रिस्पेक्ट किया जाता रहा है और मुझे अपने आपको भारतीय सिनेमा को लेकर भी इंफॉर्म रहना चाहिए जो बॉलीवुड के कंट्रोल से बाहर है.
उन्होंने आगे लिखा, दुर्भाग्य से, मेरी क्लास में ऐसा ही हुआ. बॉलीवुड के लिए कोई रिस्पेक्ट नहीं थी. 60-90 के दशक के इंडियन सिनेमा को लेकर किसी तरह की जागरुकता नहीं थी. विश्व सिनेमा सेगमेंट में इंडियन सिनेमा पर सिर्फ एक लेक्चर था जिसका नाम था बॉलीवुड एंड बियॉन्ड. उस क्लास में भी स्टूडेंट्स काफी मस्ती कर रहे थे. सत्यजीत रे और के.आसिफ जैसे सेंसिबल डायरेक्टर्स को लेकर बातचीत करना भी वहां मुश्किल था.
बाबिल ने लिखा, ऐसा इसलिए है क्योंकि हमने भारतीय दर्शकों के तौर पर मैच्योर होने से मना कर दिया है. मेरे पिता ने कठिन परिस्थितियों में अपनी पूरी जिंदगी एक्टिंग के आर्ट को बेहतर बनाने में लगा दी लेकिन अपनी पूरी यात्रा में वे बॉलीवुड के उन हीरोज से हार गए जिनके सिक्स पैक एब्स होते है. जो एक लाइन में डायलॉग मारकर सीटियां बटोरते हैं, जो फिजिक्स के नियमों की और रियैल्टी की धज्जियां उड़ा देते हैं.
उन्होंने आगे लिखा, इन फिल्मों में फोटोशॉप आइटम सॉन्ग्स होते हैं, इन फिल्मों में सेक्सिज्म देखने को मिलता है और इन फिल्मों में घिसा-पिटा पुरुष प्रधान समाज दिखाया जाता रहा है क्योंकि ऑडियन्स ऐसा चाहती थीं. हमने ऐसी फिल्में देखकर मजा लिया. हमने सिनेमा को सिर्फ एंटरटेन्मेन्ट का साधन माना. सिनेमा को मानवता और अस्तित्वाद से जुड़े एक शानदार माध्यम के तौर पर देखने के बजाए हम इसे सिर्फ एंटरटेन्मेन्ट का जरिया समझकर रह गए. लेकिन अब एक ताजा हवा चली है. एक नई पीढ़ी है जो नया मतलब तलाश रही है. हमें मजबूत बने रहना होगा.