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मैं नि‍जी जीवन में काफी शर्मीली लड़की हूं: नंदना सेन

भारत, इंग्लैंड और अमेरिका इन तीन महादेशों का लगातार दौरा कर रहीं नंदना सेन ‘रंग रसिया’ के प्रमोशन के लिए भारत लौटी हैं. उनसे हुई खास बातचीत.

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Actress Nandana sen
Actress Nandana sen

भारत, इंग्लैंड और अमेरिका इन तीन महादेशों का लगातार दौरा कर रहीं नंदना सेन ‘रंग रसिया’ के प्रमोशन के लिए भारत लौटी हैं. नंदना फिल्म को मिल रहे रिस्पॉन्स से बेहद खुश हैं. अभिनय के अलावा बच्चों के लिए लिखने में जुटी नंदना से उनकी फिल्म ‘रंग रसिया’ के सिलसिले में हुई खास बातचीतः

राजा रवि वर्मा के लिए सुगंधा प्रेरणा थी जिसे उन्होंने देवी के रूप में दर्शाया. आपके लिए सुगंधा क्या है?
सुगंधा सिर्फ राजा रवि वर्मा की कला नहीं थी बल्कि वह उनका प्यार थी. सुगंधा एक देवदासी होने के बावजूद इतनी पवित्र थी कि राजा रवि वर्मा को उसमें दैवीय गुण नजर आए. उसकी आंतरिक खूबसूरती और विश्वास से भरी मासूमियत उसके गुण थे. इतना सब होने के बावजूद सुगंधा एक साधारण लड़की थी, जो भावुक होने के साथ साथ अधिकार जमानेवाली, प्यार की भूखी तथा स्वयं को उस पुरुष पर अर्पण करने के लिए तत्पर थी जिसे वह बेहद प्यार करती है. सुगंधा, कामुकता और परलौकिकता का खूबसूरत मिश्रण थी.

सुगंधा के लिए आपने किस तरह की तैयारी की?
मेरे लिए सबसे ज्यादा मददगार राजा रवि वर्मा की पेंटिंग्स साबित हुईं. अपनी नायिकाओं का शारीरिक चित्रण उन्होंने काफी खूबसूरती से किया है. जिस अदा से वह खड़ी हैं, जिस अदा से वह अपने हाथों से खेल रही हैं, जिस अदा से वह अपनी पलकों को झुकाए देख रही हैं, यह सभी चीजें देखने योग्य हैं. राजा रवि वर्मा ने अपनी नायिकाओं को काफी खूबसूरत और आकर्षक चित्रित किया है. मेरे पास राजा रवि वर्मा से संबंधित जितनी किताबें थी, वह सब पढ़ी, जिससे सुगंधा के जीवन को मैं अच्छी तरह से समझ सकूं. सुगंधा देवदासी थी सो मैंने देवदासी प्रथा से संबंधित भी कुछ पुस्तकें पढ़ीं. इस किरदार में खुद को ढालने के लिए मैं सारा दिन नववारी साड़ी पहना करती थी. यहां तक की उसी लिबास में मैंने सिद्धीविनायक मंदिर के साथ फिल्म ‘स्पाइडरमैन’ जाकर देखी, जो उसी दौरान रिलीज़ हुई थी. इसके अलावा सभी क्लासिकल नायिकाओं, शकुंतला, दमयंती, ऊर्वशी आदि पर दोबारा विचार किया क्योंकि देवदासी होने के बावजूद सुगंधा एक संस्कारी भारतीय महिला थी.

रणदीप के साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा?
मुझे खुशी है कि रंग रसिया के माध्यम से मैंने और रणदीप हुड्डा के साथ काम किया. मैं यह बात पूरे यकीन से कह सकती हूं कि इस किरदार को रणदीप से अच्छा और कोई नहीं निभा सकता था. कभी कभी कुछ मुद्दों को लेकर हम में आपसी मतभेद हो जाया करते थे मगर मैं पूछती हूं किन विचारशील लोगों के बीच मतभेद नहीं होते. महत्वपूर्ण बात यह है कि इन मतभेदों के बावजूद हमने ईमानदारी से अपना काम किया.

इस फिल्म से जुड़ा कोई यादगार लम्हा?
मेरे लिए पूरी फिल्म ही यादगार लम्हा है मगर सुगंधा के किरदार को जीना मेरे जीवन के लिए यादगार लम्हा बन चुका है. हालांकि फिल्म के दौरान काफी जबर्दस्त दुर्घटना हुई थी. रणदीप के साथ एक डांस सिक्वेंस के दौरान मेरे पैर में मोच आ गई थी. यह जख्म भरा भी नहीं था कि अचानक एक सीन के दौरान सेट पर आग लग गई. भगवान का शुक्र है इसमें कोई हताहत नहीं हुआ इन दोनों दुर्घटनाओं के बावजूद हमने शूटिंग जारी रखी, उस दौरान मेरे पैरों में काफी दर्द था.

आपके पिता और पति जॉन मैकिंसन ने ‘रंग रसिया’ देखी?
जी हां दोनों ने यह फिल्म देखी है. जॉन जहां इंग्लैंड, न्यूयॉर्क और लंदन में अपने दोस्तों के लिए स्क्रीनिंग्स अरेंज करने में जुटे हैं वहीं पापा को मुझ पर गर्व है. मुझे याद है इस फिल्म को साइन करने से पहले अपने किरदार के बारे में मैंने उनसे ही घंटों चर्चा की थी तो जब उन्होंने यह फिल्म देखी तो उन्होंने कहा, 'इस किरदार से अधिक मुझे तुम्हारे अभिनय पर गर्व है. मुझे खुशी है तुमने सही समय पर एक सही फैसला लिया. इसके अलावा उन्होंने केतन सर को भी कई बार धन्यवाद दिया कि उन्होंने राजनैतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण और समाज से संबंधित फिल्म बनाई.

फिल्म में दिखाए गए न्यूड सीन्स को मिले सेंसर बोर्ड की रजामंदी के सिलसिले में क्या कहना चाहेंगी?
मुझे यह जानकर जरा भी आश्चर्य नहीं हुआ कि फिल्म के न्यूड सीन को सेंसर की रजामंदी मिल गई है. फिल्म का वह दृश्य फिल्म का केन्द्र बिन्दु है और यह बात वह भी भली भांति जानते हैं. फिल्म में मौजूद राजनैतिक संदेश तथा भावुक नाटकीयता इसी दृश्य के आस पास घूमती है, जिसे बयां करना बहुत जरूरी है. अभी तक लोगों ने यह फिल्म देखी नहीं है इसीलिए वह इस सीन को प्रेम प्रसंग पर आधारित सीन समझ रहे हैं. इस सीन  के जरिए एक कलाकार अपनी कला का सृजन करता है. कलाकार के नजरिए से बयां किए गए इस सीन के बगैर ना सिर्फ हमारी फिल्म की मौलिकता पर प्रश्नचिन्ह लगता बल्कि पूरी फिल्म ही अधूरी लगती. जिसने भी यह फिल्म देखी है उन सभी के अनुसार यह सीन काफी खूबसूरती से फिल्माया गया है. मुझे खुशी है सेंसर बोर्ड ने भी इस फिल्म को सच्चे दर्शक के रूप में देखा.

इस दृश्य के लिए रणदीप ने कितना सहज किया?
इस फिल्म पर मैंने पूरे 100 प्रतिशत विश्वास किया था मगर इस किरदार को निभाने का फैसला लेना मेरे लिए काफी मुश्किल था क्योंकि व्यक्तिगत रूप से मैं काफी प्राइवेट तथा शर्मीली लड़की हूं. इस किरदार को अपनाने तथा निभाने में रणदीप से अधिक बड़ी भूमिका मेरे परिवार ने निभाई. मेरे माता पिता को लगा इस दृश्य पर प्रश्नचिन्ह लगाना, कहानी पर प्रश्नचिन्ह लगाने जैसी बात है. वे भी इस बात से सहमत थे कि इसके बिना फिल्म यथार्थ और प्रभावशाली नहीं बन पाएगी. जब मैंने यह सीन किया तब मैं पूरी तरह अपने किरदार में थी. तब मैं शर्मीली लड़की नंदना नहीं बल्कि सुगंधा थी जिसने अपने समय के सारे नियम तोड़ दिए थे.

आपने 130 साल पुराना चरित्र जीया है. साथ ही उस युग को पर्दे पर साकार करने में एक बहुत बड़ी भूमिका निभाई है. उस युग के बारे में, विशेष रूप से महिलाओं के बारे में क्या कहना चाहेंगी?
मुझे दुख है आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से विकसित होने के बावजूद आज भी हमारे समाज में कुछ बुराइयां हैं जो उस युग में थी. उस युग में सुगंधा तथा राजा रवि वर्मा को अदालत में लाकर उन पर मुकदमा चलाया गया था क्योंकि उन्होंने एक देवदासी के चेहरे को देवी के रूप में दर्शाया था. यह बात ठीक उसी तरह है जैसा कि इस फिल्म में देवी लक्ष्मी के चित्र में मेरे चेहरे को चित्रित करने को लेकर अखबार में एक विवाद मैंने पढा था. यह बिल्कुल सच है कि इस फिल्म में मेरा चेहरा सिर्फ लक्ष्मी ही नहीं बल्कि मां सरस्वती, मेनिका,  सीता,  द्रौपदी तथा ऊर्वशी के रूप में दर्शाया गया है. मैं खुद एक धार्मिक इंसान हूं और मैं नहीं चाहती कि मैं किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाऊं. लेकिन मुझे हम दोनों के विवाद में कोई फर्क नजर नहीं आता. अगर 130 साल पुरानी घटना आज भी दोहराई जा रही है तो हमने इतने सालों में क्या विकास किया?

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