प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'स्वच्छ भारत अभियान' पर बन रही फिल्म 'टॉयलेट: एक प्रेम कथा' की शूटिंग रविवार से शुरू हो गई. फिल्म में अक्षय कुमार और भूमि पेडनेकर लीड रोल में हैं. हाल ही में बॉलीवुड में समाज के गंभीर मुद्दों पर कई फिल्में बनी हैं. एक नजर डालते हैं ऐसी ही कुछ फिल्मों और उनमें उठाए गए मुद्दों पर...
सुल्तान:
सलमान की 'सुल्तान ' एक्शन और इमोशन्स से फुल थी लेकिन इसकी कहानी कहीं ना कहीं 'बेटी बचाओ, बोटी पढ़ाओ' योजना की तरफ भी इशारा करती है. हरियाणा पर आधारित कहानी, जहां कन्या भ्रूण हत्या का मामला सबसे ज्यादा सामने आता है, वहां की लड़की (अनुष्का शर्मा ) पहलवानी चुनती है. अगर आपने फिल्म ध्यान से देखी है तो आपको गांव की दीवार पर 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' अभियान के पोस्टर्स दिख जाएंगे.
दंगल:
आने वाली फिल्म 'दंगल' में आमिर महिला सशक्तिकरण का मुद्दा उठाते हैं. ट्रेलर देख कर पता चलता है कि आमिर, जो पहलवान महावीर फोगाट का किरदार निभा रहे हैं, अपनी बेटियों गीता और बबिता को ओलंपिक स्टेज तक पहुंचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.

पिंक:
अमिताभ बच्चन की फिल्म 'पिंक ' ने बताया कि लड़की का 'ना' का मतलब ना ही होता है. अगर वो लड़कों के साथ घुल-मिल कर बात कर रही है, पार्टी कर रही है, उसके साथ शराब पी रही है इसका मतलब यह नहीं होता कि वो लड़के के साथ सोने के लिए तैयार है. हर लड़की का अपना वजूद है. अगर लड़कों को पार्टी करने, शराब पीने का अधिकार है तो, लड़कियों को भी है. लड़कियां भी खुलकर अपनी जिंदगी जी सकती हैं.

विकी डोनर:
'पिंक' के डायरेक्टर शूजीत सरकार ने इसके पहले स्पर्म डोनेशन जैसे विषय पर फिल्म बनाई थी. समाज जिस बारे में बात करने में हिचकता है, उस पर अच्छी रिसर्च कर के शूजीत ने अपनी फिल्म 'विकी डोनर' में दिखाया था. फिल्म से शूजीत बताया कि यह भी एक प्रोफेशन हो सकता है और यह गैर-कानूनी बिल्कुल भी नहीं है.

ओ माय गॉड और पीके:
इन दो फिल्मों ने समाज के उस हिस्से पर चोट किया, जिस पर प्रहार करने से लोग डरते हैं. वो है धर्म को लेकर फैला हुआ अंधविश्वास. ओ माय गॉड में कृष्ण बने अक्षय कुमार कहते हैं, 'मैंने सिर्फ इंसान बनाया...और इंसान ने ये जात, पात, धर्म, मजहब का धंधा शुरू किया.'
आमिर खान 'पीके' में कहते हैं, 'कौन हिंदू? कौन मुसलमान? ठप्पा किधर है कहां...ये फर्क भगवान नहीं तुम लोग बनाया है.'