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मनोरंजन

अश्वेतों संग भेदभाव, हिंसा पर बनी फिल्में, दिखाती हैं अमेरिका का स्याह पक्ष

अश्वेतों संग भेदभाव, हिंसा पर बनी फिल्में, दिखाती हैं अमेरिका का स्याह पक्ष
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अमेरिका में अश्वेत नागरिक जॉर्ज फ्लॉयड की मौत के बाद अमेरिका में प्रदर्शन उग्र होता जा रहा है. इस वक्त अमेरिका के 30 शहरों तक हिंसा का ये तांडव पहुंच चुका है. रविवार को व्हाइट हाउस तक इसका असर देखने को मिला. हॉलीवुड में अश्वेतों के संघर्ष से जुड़ी कई फिल्में रिलीज हुई हैं और इन फिल्मों में अमेरिकन समाज का स्याह पहलू देखने का मौका मिलता है.

अमेरिकन हिस्ट्री एक्स

नव-नाजी, नव-फांसीवादी, श्वेत सुपीरियॉरिटी से भरा शख्स डेरेक दो अश्वेत लोगों की हत्या के जुर्म में जेल चला जाता है. जेल से छूटने के बाद डेरेक अपने आपको बदलने की कोशिश करता है क्योंकि वो चाहता है कि उसका छोटा भाई भी उसी नफरत की राह पर ना चले जिस पर चलकर डेरेक ने अपनी जिंदगी का काफी हिस्सा गंवाया है. हालांकि उसके लिए भी ये सब इतना आसान नहीं होता है और उसे नफरत से भरे अपने परिवार को सही दिशा पर लाने के लिए कड़ा संघर्ष करना पड़ता है.
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सेल्मा

साल 1964 में सिविल राइट्स एक्ट पास होने के बावजूद अश्वेत समुदाय के साथ भेदभाव जारी था जिसके चलते अश्वेत समुदाय के लोगों को वोट रजिस्टर करने में भी दिक्कत आ रही थी. साल 1965 में अलाबामा शहर वोटिंग का संग्राम क्षेत्र बन जाता है. डॉ मार्टिन लूथर किंग जूनियर और उनके फॉलोअर्स सेल्मा से लेकर मोंटगोमेरी तक मार्च करते हैं. इस दौरान उन्हें हिंसक प्रदर्शन का भी सामना करना पड़ता है लेकिन उनके प्रयासों के चलते प्रेसीडेंट लिंडन जॉनसन को वोटिंग राइट्स एक्ट 1965 साइन करना पड़ता है.
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जैंगो अनचेन्ड

सिविल वॉर से दो साल पहले एक गुलाम अश्वेत शख्स को एक जर्मन बाउंटी हंटर का साथ मिलता है. दोनों साथ मिलकर पहले साउथ के मोस्ट वॉन्टेड क्रिमिनल्स को मार गिराते हैं. इसके बाद दोनों इस अश्वेत शख्स की पत्नी जो आज भी एक श्वेत व्यक्ति के यहां गुलामी कर रही है, उसे छुड़ाने के लिए पहुंचते हैं. इस फिल्म को डायरेक्टर क्वेंटिन टैरेंटिनो की सबसे महत्वाकांक्षी फिल्म भी माना जाता है.
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12 इयर्स ए स्लेव

सिविल वॉर(1861-1865) से दो साल पहले एक आजाद अश्वेत शख्स को किडनैप कर लिया जाता है और उसे बेच दिया जाता है. यहां एक बेहद क्रूर और निर्दयी शख्स से उसका सामना होता है और उसे 12 सालों तक तमाम कठिनाईयों से गुजरना पड़ता है. ये वो दौर था जब अश्वेत लोगों को गुलाम बना कर श्वेत लोग रखते थे और उन पर अमानवीय अत्याचार करते थे. तमाम तरह की परेशानियां झेलने के बाद ये शख्स 12वें साल अपने घर पहुंच पाता है. ये फिल्म एक सच्ची कहानी पर आधारित थी.
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टू किल ए मॉकिंग बर्ड

ये कहानी एक ऐसे वकील की है जो एक ब्लैक शख्स को बचाता है जिस पर एक श्वेत महिला के रेप का इल्जाम लगा है. इस फिल्म में वकील के बच्चों का भी अहम रोल है और वे इस फिल्म के सहारे स्टीरियोटाइप और नस्लभेद जैसे मुद्दों पर नए सिरे से सोच बनाने में सक्षम होते हैं.
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मैल्कम एक्स

ये फिल्म अश्वेत लोगों के अधिकारों के लिए लड़ने वाले एक्टिविस्ट और लीडर मैल्कम एक्स के बारे में है. बचपन में इस शख्स के घर को जला दिया जाता है. पिता एक एक्टिविस्ट थे और उनकी हत्या कर दी जाती है. पढ़ाई में अच्छा होने के बावजूद उसके साथ भेदभाव किया जाता है. इसके बाद ये शख्स गैंगस्टर बनता है और जेल में समय बिताता है. इसके बाद मैल्कम इस्लाम भी कबूलता है और अश्वेत लोगों के अधिकारों के लिए लड़ने के लिए नेशन ऑफ इस्लाम नाम के अफ्रीकन अमेरिकन पॉलिटिकल मूवमेंट से जुड़ता है.
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ब्लैकक्लेसमैन

रॉन नाम का शख्स पहला ऐसा अफ्रीकन अमेरिकन है जो कोलोराडो पुलिस डिपार्टमेंट में डिटेक्टिव बनता है. रॉन अपना नाम बनाना चाहता है इसके लिए वो खतरनाक मिशन को भी हाथ में लेने से नहीं चूकता. रॉन अपने साथी फ्लिप के साथ मिलकर एक कट्टरपंथी हेट ग्रुप को ठिकाने लगाने के लिए तैयार होता है और इस दौरान उन्हें कई मुश्किल परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है.  

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