ईरान के डायरेक्टर माजिद मजीदी की फिल्म मोहम्मद : द मेसेंजर ऑफ गॉड चर्चा में है. ये फिल्म साल 2015 में रिलीज हुई थी लेकिन भारत में इसे बैन कर दिया गया था. अब ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर इस फिल्म को रिलीज करने की तैयारी है जिस पर महाराष्ट्र के होम मिनिस्टर का कहना है कि इससे एक समुदाय की भावनाएं आहत हो सकती हैं. लेकिन ऐसा पहली बार नहीं है जब देश में फिल्मों पर बैन लगाया गया है.
अनफ्रीडम
राज अमित कुमार ने साल 2015 में फिल्म अनफ्रीडम का निर्देशन किया था. इस फिल्म में होमोसेक्शुएलिटी जैसे मुद्दे पर बात की गई है. फिल्म में आदिल हुसैन और विक्टर बनर्जी जैसे सितारों ने भी अहम भूमिका निभाई. फिल्म अपने बोल्ड कंटेंट और विवादित मुद्दे के चलते बैन कर दी गई थी.
पांच
अनुराग कश्यप की पहली फिल्म साल 1999 में बनकर तैयार हुई थी. इस फिल्म में के के मेनन ने मुख्य भूमिका निभाई थी. फिल्म में हिंसा, ड्रग्स और रॉक एंड रोल कल्चर की भरमार थी जिसके चलते सेंसर बोर्ड ने इस फिल्म पर बैन लगा दिया था. हालांकि इस फिल्म को लोगों ने डाउनलोड करके और यूट्यूब पर खूब देखा और ये फिल्म आज कल्ट क्लासिक फिल्मों में शुमार की जाती है.
बैंडिट क्वीन
साल 1994 में बनकर तैयार हुई ये फिल्म फूलन देवी की जिंदगी पर बनी थी. इस फिल्म को न्यूड सीन्स और भाषा के चलते काफी विवादों का सामना करना पड़ा था. इस फिल्म के कंटेंट को लेकर खुद फूलन देवी ने भी सवाल उठाए थे. इस फिल्म को शेखर कपूर ने डायरेक्ट किया था और फिल्म में तिग्मांशु धूलिया जैसे डायरेक्टर्स भी क्रू का हिस्सा थे. फिल्म से मनोज बाजपेयी ने भी अपना डेब्यू किया था. ये फिल्म भारत में बैन हुई थी लेकिन फिल्म कान्स फिल्म फेस्टिवल और एडिनबर्ग फिल्म फेस्टिवल में रिलीज हुई थी.
उर्फ प्रोफेसर
पंकज आडवाणी की ब्लैक कॉमेडी फिल्म उर्फ प्रोफेसर भी अपने बोल्ड सीन्स और लैंग्वेज के चलते सेंसर बोर्ड द्वारा बैन कर दी गई थी. इस फिल्म में मनोज पाहवा, अंतरा माली, शर्मन जोशी और यशपाल शर्मा जैसे सितारे नजर आए थे.
हवा आने दे
पार्थो सेनगुप्ता की फिल्म 'हवा आने दे' में भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते टेंशन को दिखाया गया था. सेंसर बोर्ड ने इस फिल्म में इतने सारे कट्स लगाने के लिए कहा था कि फिल्म की लंबाई महज 20 मिनटों की रह गई थी. इसके बाद फिल्म के निर्देशक ने सेंसर बोर्ड की बात को मानने से इंकार कर दिया था और इस फिल्म को कभी थियेटर्स नसीब नहीं हो पाया.
डेज्ड इन डून
देहरादून के प्रतिष्ठित डून स्कूल में एक स्टूडेंट की लाइफ को दिखाती इस फिल्म को बैन कर दिया गया था क्योंकि इस स्कूल के अधिकारियों का कहना था कि इस फिल्म के सहारे स्कूल की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की जा रही है. इस फिल्म को अश्विन कुमार ने डायरेक्ट किया था.
इंशाल्लाह फुटबॉल
साल 2010 में रिलीज के लिए तैयार हुई ये कहानी एक यंग कश्मीरी फुटबॉलर की है जो ब्राजील में जाकर फुटबॉल खेलना चाहता है और अपने पासपोर्ट के लिए दो साल इंतजार करता है लेकिन पिता के पूर्व मिलिटेंट होने के चलते उसे काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. अश्विन कुमार की इस फिल्म पर सेंसर बोर्ड ने बैन लगा दिया था. इसके बाद फिल्म के डायरेक्टर ने इस फिल्म की प्राइवेट तौर पर लोगों के बीच स्क्रीनिंग्स करनी शुरू की थी और पासवर्ड प्रोटेक्टेड प्रिंट के साथ ऑनलाइन रिलीज की थी. जहां सेंसर बोर्ड ने इस फिल्म पर बैन लगा दिया था वहीं इसी फिल्म को सोशल मुद्दों पर बनी बेहतरीन फिल्म के लिए नेशनल अवॉर्ड भी मिला था.