संजय लीला भंसाली की पद्मावती पर जोरदार बहस से पहले तक इतिहास से बेखबर मौजूदा पीढ़ी शायद ही अलाउद्दीन खिलजी से इतना ज्यादा रू-ब-रू हुई हो. लेकिन एक फिल्म ने सुल्तान खिलजी की चर्चा आम कर दी है. फिल्म में सुल्तान की मौजूदगी और कथित तौर पर विवादित ऐतिहासिक प्रसंगों की वजह से भंसाली की फिल्म पर कई राज्यों ने बैन लगा दिया है.
बीजेपी और करणी सेना जैसे संगठनों का दावा है - 'फिल्म में अलाउद्दीन के बरअक्स रानी पद्मिनी को गलत तरीके से पेश किया गया.' फिल्म कितनी ऐतिहासिक है? यह भी विवाद का विषय बना हुआ है. हकीकत में भंसाली ने फिल्म का चित्रण भी किस तरह किया- यह भी किसी को नहीं मालूम. अलबत्ता, जिन चुनिंदा लोगों ने इसे देखा - उनका दावा है कि इसमें ऐसा कुछ नहीं जिस पर बवाल काटा जाए. फिल्म पर हो रही बहस से परे चलते हैं उस जगह, जहां तमाम बातों से बेखबर दिल्ली का सुल्तान सोया पड़ा है.
मेहरौली का कुतुब मीनार. देश-दुनिया में दिल्ली की पहचान. यहीं एक मकबरे में 5 फीट जमीन के नीचे दिल्ली का सुल्तान सो रहा है. अलाउद्दीन खिलजी. वह सुल्तान जिसके नाम पर 700 साल बाद लोगों का बेपनाह गुस्सा सड़क पर उतर आया है. इतिहास वक्त के ऐसे मोड़ पर है जहां वह खुद सवाल बनकर रह गया है.
अलाउद्दीन, तुर्की मुल का था. 1296 में दिल्ली की सल्तनत पर बैठा. पहली बार
मालिक मोहम्मद जायसी ने महाकाव्य 'पद्मावत' में सुल्तान खिलजी को अपनी
तरह से याद किया. कई सौ साल बाद भंसाली ने भी 'पद्मावती' के जरिए उसे याद
करने की कोशिश की. हालांकि वो उनके गले की फांस बन चुका है.
यहां कुतुब मीनार देखने आने वाला हर टूरिस्ट खिलजी के मकबरे और मदरसे तक पहुंचता है. लेकिन इनमें से ज्यादातर अनजान हैं कि इन खंडहरों के बीच वह सुल्तान भी है जिसके नाम पर गदर मचा हुआ है. लोग उस सुल्तान से इतना अनजान हैं कि उसके मकबरे पर खड़े रहने के बावजूद उन्हें पता नहीं चलता कि यहां जमीन के नीचे कौन है. 23 नवंबर की सुबह जब आजतक का यह रिपोर्टर कुतुब मीनार के परिसर पहुंचा तो उसने ऐसा ही कुछ देखा. बहुत सारे टूरिस्ट यहां घूमने आए थे. इनमें परिवार भी थे और स्कूली बच्चे-बच्चियों का समूह भी था. इतिहास से बेखबर इन्हीं बच्चों में से एक समूह सुल्तान खिलजी की कब्र पर चढ़कर सेल्फी ले रहा था. वह खुद के साथ पत्थरों में नजर आ रहे इतिहास का चित्रांकन तो कर लेना चाहता था लेकिन उसे पैरों के नीचे की जमीन का इतिहास नहीं मालूम.
खिलजी का मकबरा ऐतिहासिक रूप से संरक्षित स्मारकों में है. इसके ठीक बगल वो मदरसा भी है जिसे सुल्तान खिलजी ने 1296-1316 के बीच बनवाया था. यहां कई इमारतों की छत नहीं बची. कई दीवारें समय की इबारतों में समाप्त हो चुके हैं. सुल्तान के मरदसे की दीवारें भी ढह चुकी हैं. अब जो बचा है वो उसका अवशेष भर है. इसी अवशेष के बाहर लगे एक बोर्ड पर जो लिखा है कि सुल्तान खिलजी ने इस मदरसे का निर्माण करवाया था. निर्माण के पीछे उसकी कोशिश इस्लामिक तालीम को बढ़ावा देना था.
भंसाली की हालिया फिल्म पद्मावती में दिल्ली के इस सुल्तान को जिस तरह से दिखाया गया है उससे कई इतिहासकार सहमत नहीं हैं. पद्मावती के ट्रेलर को देखकर अंदाजा लगाया जा रहा है कि खिलजी एक सनकी, औरतबाज़ और लड़ाई के लिए हमेशा तैयार रहने वाला सुल्तान था. जबकि इतिहासकारों की नजर में वह ऐसा नहीं था जैसा फिल्म में उसका चित्रांकन किया जा रहा है.
बीबीसी हिंदी को अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में मध्यकालीन भारत के विशेषज्ञ प्रोफ़ेसर सैयद अली नदीम रज़ावी ने बताया कि फिल्म में खिलजी के साथ असल अन्याय हुआ है. कि जलालउद्दीन खिलजी के दिल्ली का सुल्तान बनने के साथ ही हिंदुस्तानी लोगों को भी शासन में शामिल करने का सिलसिला शुरू हुआ. इसे ख़िलजी क्रांति भी कहा जाता है. ख़िलजी ने इस काम को आगे बढ़ाया और स्थानीय लोगों को सरकार में हिस्सेदारी दी. अब सिर्फ़ तुर्क सरकार नहीं थी बल्कि हिंदुस्तानी मूल के लोग भी हुक़ूमत में शामिल थे.
खैर, सुल्तान के मकबरे और मदरसे के पास जाकर यह अंदाजा हुआ कि यहां आने वालों में से ज्यादातर लोगों को ना तो अलाउद्दीन खिलजी की फिक्र है और ना ही उन्हें इस बात की पड़ी हुई है कि जिस सुल्तान से जुड़े एक फिल्म पर विवाद छिड़ा है. वो वहीं दफ्न है जहां वो अपने दोस्तों के साथ, अपनी प्रेमिका या पत्नी के साथ सेल्फी ले रहे हैं, फोटो खिंचवा रहे हैं.
कंटेंट और फोटो: विकास कुमार