नागार्जुन अक्किनेनी का परिवार अगस्त 2024 से लगातार जश्न मना रहा है. पहले बड़े बेटे नागा चैतन्य की शोभिता धूलिपाला से शादी हुई. इसके बाद छोटे बेटे अखिल अक्किनेनी ने खुशियों का सिलसिला जारी रखते हुए 2025 में अपनी गर्लफ्रेंड जैनब रावदजी से शादी कर ली. इससे नागार्जुन की दूसरी पत्नी अमाला अक्किनेनी को भी बेहद खुशी हुई. उन्होंने हाल ही में अपनी दोनों बहुओं को लेकर खुशी जाहिर की.
बहुओं ने दी खुशियां
अमाला ने बताया कि उनकी दोनों बहुओं ने कैसे घर में खुशियां और अपनापन भर दिया है. वो सास बनकर बेहद खुश हैं. हालांकि शोभिता उनकी सौतेली बहू हैं. नागा चैतन्य नागार्जुन की पहली पत्नी लक्ष्मी दग्गुबाती के बेटे हैं. लेकिन ये पूरा परिवार मिल-जुलकर रहता है, पिता के अलग-अलग रिश्ते की आंच बच्चों से दूर रही.
अमाला ने एनटीवी से बातचीत में कहा, 'सास बनने का अनुभव बहुत सुंदर है. मेरी दो प्यारी बहुएं हैं.' अमाला ने अपनी बड़ी बहू शोभिता के बारे में बात करते हुए कहा, 'शोभिता बहुत टैलेंटेड, आजाद ख्यालों की और बेहद प्यारी लड़की है. हम उसकी बहुत इज्जत करते हैं. वह बहुत स्नेही है, और मुझे उसके साथ समय बिताना बहुत अच्छा लगता है.'
जैनब ने सिखाई धार्मिक संवेदनशीलता
इसके बाद अमाला ने दूसरी बहू जैनब के बारे में भी प्यार से बात की और बताया कि उनका अलग धर्म से होना और भी ज्यादा खास है. वो बोलीं, 'जैनब बहुत ही गर्मजोशी से भरी इंसान है. वह अपने क्षेत्र में काफी सफल है. घर में इतना प्यार और खुशी है कि दिल भर आता है. इतनी अच्छी बेटियां मिलना हमारे लिए एक आशीर्वाद है.'
अमाला ने बताया कि जैनब अपने साथ 'इस्लाम धर्म की नई संवेदनशीलता' लेकर आई हैं. वह बोलीं,'उन्होंने हमें सिखाया कि एक हिंदू घर में उनके लिए चीजें कैसे आरामदायक बनाई जा सकती हैं. यह बहुत खूबसूरत है.' उन्होंने बताया कि अक्किनेनी परिवार में अलग-अलग आस्थाओं को मानने वाले लोग हैं, लेकिन सब एक-दूसरे के धर्म और मान्यताओं की गहरी इज्जत करते हैं.
अलग-अलग धर्म से थे अमाला के पेरेंट्स
अमाला आगे बोलीं, 'मेरी मां कैथोलिक पैदा हुई थीं, लेकिन बाद में उन्होंने सूफीवाद अपना लिया. मेरे पिता हिंदू थे. मेरे ससुर नागेश्वर राव गरु का कोई धर्म नहीं था- उन्हें नास्तिक भी नहीं कहा जा सकता, लेकिन वे अक्सर कहते थे- काम ही मेरी पूजा है. उन्होंने कभी पूजा-पाठ नहीं किया. उनका मानना था कि अपना काम ईमानदारी से करना और मूल्यों पर टिके रहना ही आध्यात्मिकता है. वे धार्मिक नहीं थे, लेकिन कदर मूल्यों को बहुत देते थे.'
अमाला ने बताया कि उनकी अपनी आध्यात्मिक राह बौद्ध शिक्षाओं से बनी है. वो बोलीं, 'मैं विपश्यना करती हूं और बुद्ध की शिक्षाओं का पालन करती हूं. अब, जब इस्लाम भी हमारे घर का हिस्सा बना है, तो यह एक सुंदर संगम जैसा है. हम सब अपनी-अपनी आस्था को सच्चे मन से मानते हैं और एक-दूसरे की मान्यताओं की इज्जत भी करते हैं.'
खुद पूजा करना नहीं जानतीं अमाला
घर में होने वाले रीति-रिवाजों पर उन्होंने कहा, 'मुझे पूजा करने के कई नियम नहीं आते, लेकिन मुझे उनके पीछे का अर्थ समझ में आता है. मैंने संस्कृत सीखी है, इसलिए वैदिक मंत्रोच्चारण मेरे लिए आसान है. वेद मुझे ज्ञान जैसा लगे, नियम नहीं. मैं बस दीया जलाती हूं और मंत्र बोलती हूं. मैं खुशकिस्मत हूं कि मेरा जन्म किसी बहुत रीति-रिवाजों वाले परिवार में नहीं हुआ. इसलिए मुझे अपनी राह चुनने की आजादी मिली.'