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Jehanabad Of Love And War: क्या है 'जहानाबाद' की कहानी? जब देर रात जेल से फरार हुए थे 341 कैदी

रियल लाइफ इंसीडेंट पर आधारित इस सीरीज का ट्रेलर रिलीज किया गया. सोनी लिव पर तो 3 फरवरी को इसे रिलीज किया जाएगा. लेकिन उससे पहले चलिए हम आपको बताते हैं कि आखिर जहानाबाद में हुआ क्या था? उस रात जो हड़कंप मचा उसकी आखिर वजह क्या थी?

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जहानाबाद ऑफ लव एंड वॉर
जहानाबाद ऑफ लव एंड वॉर

17 साल पहले एक ऐसी घटना घटी थी, जिसने बिहार से लेकर दिल्ली तक हड़कंप मचा दिया था. 13 नवंबर 2005 को बिहार के शहर जहानाबाद में रात के अंधेरे में हमलों की ऐसी आतिशबाजी हुई कि सब धरों में दुबक गई थी, लोग थर-थर कांपने लगे थे. नक्सली हमलों की वो वारदात आज भी लोगों के जहन में खौफ पैदा कर देती है. इसी वारदात पर डायरेक्टर सुधीर मिश्रा ने एक वेब सीरीज बनाई है, जिसका नाम है- जहानाबाद लव एंड वॉर. 

रियल लाइफ इंसीडेंट पर आधारित इस सीरीज का ट्रेलर रिलीज किया गया. ट्रेलर काफी जबरदस्त लग रहा है. बिहार के बैकग्राउंड की भी आपको फील आएगी. सीरीज की कास्ट भी काफी प्रॉमिसिंग दिख रही है. सोनी लिव पर तो 3 फरवरी को इसे रिलीज किया जाएगा. लेकिन उससे पहले चलिए हम आपको बताते हैं कि आखिर जहानाबाद में हुआ क्या था? उस रात जो हड़कंप मचा उसकी आखिर वजह क्या थी?

क्या है जहानाबाद कांड
13 नवंबर 2005 को जहानाबाद में रात के 9 बजे जैसे एक जंग सी छिड़ गई. बिहार के छोटे से गांव जहानाबाद की जेल में नक्सलवादियों ने हमला कर जेल से 372 आरोपियों को भगाने में मदद की थी. ये उस समय का बहुत चर्चित केस था. बिहार में तब राष्ट्रपति शासन लागू था, और चुनाव का समय था. आखिरी चरण का मतदान हो चुका था. जहानाबाद में मतदान हो चुका था, इसलिए अतिरिक्त पुलिस बल को दूसरे शहरों में शिफ्ट कर दिया गया था. 

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जेल ब्रेक की इस घटना के तहत नक्सलियों ने सुरक्षाकर्मी और जेल में बंद कैदियों की हत्या कर दी थी. लगभग 1000 लोगों ने मिनटों में जहानाबाद जेल पर कब्जा कर लिया था. नक्सलियों की संख्या इतनी थी कि जेल की सुरक्षा में लगे पुलिस वाले बेबस हो गए थे. इस जले में लगभग 600 कैदी थे, जिसमें कई दर्जन तो नक्सलियों के साथी ही थे. जिन्हें वे आजाद कराने आए थे. तब जहानाबाद लाल आतंक का गढ़ हुआ करता था. इसलिए यहां पुलिस ने बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियां की थीं और इन्हें इस जेल में बंद कर रखा था.   

जहानाबाद जेल ब्रेक की सच्ची कहानी

अपने इरादे में कामयाब हुए नक्सली

वहीं जातिवाद भी चरम पर था. जेल में दाखिल नक्सलियों ने अपने साथियों निकालना शुरू किया. इसी चक्कर में सभी कैदियों को भी आजाद कर दिया, जिनमें से कई लोग या तो नक्सलियों के साथ मिल गए, या फिर मौका देखकर भाग गए. नक्सलियों ने जेल में बड़े नेताओं का भी कत्ल कर दिया था. साथ ही नक्सलियों ने शहर भर में ये घोषणा भी कर दी थी कि उनकी लड़ाई प्रशासन से है ना कि जनता से, तो सब अपने-अपने घरों में रहें. दो घंटे तक जहानाबाद में हड़कंप मचता रहा, नक्सलियों में पटना से आ रही पुलिस फोर्स को भी रोक दिया था. 

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इस जेल में 600 कैदी बंद थे, जिसमें से नक्सली अपने लीडर अजय कानू समेत 341 कैदियों को लेकर रात को ही फरार हो गए. हैरत की बात ये थी कि, नक्सलियों के इस इरादे का अंदाजा खुफिया विभाग को पहले से ही था, लेकिन किसी ने इस पर ध्यान नहीं दिया. ना ही वॉर्निंग पर ध्यान दिया गया. इसी लापरवाही का फायदा उठाकर नक्सली स्टेट मशीनरी को कुचलते हुए कुछ ही घंटे के लिए सही रेड टेरर को कायम करने में कामयाब रहे.  

 

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