वक्त सबकुछ सिखा देता है...ये दुनिया ही सबसे बड़ी सर्कस है. ये बातें अक्सर सुनने को मिलती हैं. लेकिन जब यही कहानी कोई पर्दे पर उतार दे तो कैसा होता है. सोनी लिव पर हाल ही में एक नई फिल्म आई है, जिसका नाम है रामसिंह चार्ली. सर्कस को लेकर शुरू हुई एक कहानी जिंदगी के अलग-अलग मोड़ से रुबरु कराती है. कुमुद मिश्रा और दिव्या दत्ता की इस फिल्म में देखने लायक काफी कुछ है. इसमें खास क्या है, आइए जानते हैं...
कैसी है फिल्म की कहानी?
फिल्म रामसिंह चार्ली की कहानी का किरदार राम सिंह (कुमुद मिश्रा) ही हैं. साथ में चार्ली नाम जुड़ा है जो आपको बता देता है कि इसका चार्ली चैपलिन से कुछ लेना-देना है. एक बड़ी सर्कस में पहले राम सिंह के पिता काम करते थे फिर खुद. राम सिंह वहां चार्ली चैपलिन बनता था और सबका चहेता था. लेकिन वक्त बदला तो सर्कस बंद हो गया, चार्ली चैपलिन का सपना भी टूटा. इसके बाद राम सिंह की जिंदगी में काफी कुछ बदल गया, दोबारा मेहनत के लिए सड़कों पर दौड़ा. और अंत में खुद की सर्कस को खड़ा किया, आगे जाकर बेटे ने सपना पूरा किया. कहानी को इतने में ही कहना सही होगा, वरना फिल्म का मजा किरकिरा हो जाएगा.
किसने जीता दिल?
पौने दो घंटे की ये फिल्म पूरी तरह से कुमुद मिश्रा पर टिकी है. उनका मुस्कुराना, रोना, अदाकारी, हल्केपन में बात कहना. सबकुछ आपको देखने पर मजबूर कर देता है. राम सिंह का किरदार फिर चाहे वो कुछ देर के लिए चार्ली चैपलिन वाला हो या फिर सड़क पर रिक्शा दौड़ाते हुए कुमुद मिश्रा ने अपने दम पर पूरी फिल्म को बांधे रखा. उनका साथ बखूबी निभाया दिव्या दत्ता ने. लेखक-डायरेक्टर ने कहानी के तौर पर दिव्या को जितना वक्त स्क्रीन पर दिया, उन्होंने उससे कहीं अधिक छाप छोड़ी. इन दोनों के अलावा कई साइड रोल भी हैं, लेकिन शहंशाह का किरदार निभाने वाले फारुक ने अपनी छाप बिल्कुल अलग तरीके से छोड़ी.
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— SonyLIV (@SonyLIV) September 2, 2020
डायरेक्शन और कहानी
फिल्म को नितिन कक्कड़ ने डायरेक्ट किया और उनके साथ शरीब हाशमी ने लिखा है. दोनों की जोड़ी फिल्मिस्तान से साथ काम कर रही है. डायलॉग और फिल्म में कब-क्या दिखाना है, वो बहुत बेहतरीन तरीके से निभाया गया है. साथ ही आम आदमी के जिस स्ट्रगल को दिखाने की कोशिश की गई, वो भी लाइन सही पकड़ी गई है. जिस हिसाब से फिल्म लिखी और डायरेक्ट की गई, उसका आधा काम कुमुद मिश्रा की एक्टिंग ने आसान कर दिया.
फिल्म में गड़बड़ कहां हो गई?
फिल्म का पूरा थीम चार्ली चैपलिन के ऊपर बसाया गया है, लेकिन सबसे बड़ी गड़बड़ तो यही है कि कुमुद मिश्रा मुश्किल पांच मिनट भी पूरी फिल्म में चार्ली चैपलिन के तौर पर नजर नहीं आ पाते. सिर्फ बच्चे के साथ एक सीन को छोड़ दें तो. इसके अलावा फिल्म में जब कुमुद रिक्शेवाले का किरदार कर रहे हैं तो आपको बार-बार दो बीघा जमीन के बलराज साहनी की याद आएगी. गांव से पैसे कमाने शहर आना, किसी का रिक्शा छोड़कर आना और खुद रिक्शा चलाने लग जाना. रिक्शा चलाते हुए बच्चों को खुश करना, पुराने मालिक का मिलना. रिक्शेवाले किरदार की पूरी स्क्रिप्ट को उतार दिया गया है, यानी अगर किसी ने दो बीघा जमीन देखी हो तो उसे पूरी फिल्म ही दिख जाए. बस यही इस फिल्म की बुरी बात है, बाकी कुमुद मिश्रा के नाम पर फिल्म देखी जा सकती है.