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'निशानची' रिव्यू: पुरजोर फटा अनुराग कश्यप का बम... बड़े पर्दे पर वन-टाइम नहीं, एनी-टाइम देखने लायक है ये 'फिलम'

'मेरी फिलम देखो' गाने के साथ आए 'निशानची' के टीजर ने गजब माहौल बनाया था. फिल्म का ट्रेलर बता रहा था कि अनुराग कश्यप ने इसमें 'गैंग्स ऑफ वासेपुर' जैसे टेवल फूंके हैं. क्या उनके ये क्लासिक मंतर थिएटर में ऑडियंस को नजरबंद कर पाए? पढ़िए 'निशानची' का रिव्यू...

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'गैंग्स ऑफ वासेपुर' वाला भौकाल नई कहानी में लेकर लौटे हैं अनुराग (Photo: IMDB)
'गैंग्स ऑफ वासेपुर' वाला भौकाल नई कहानी में लेकर लौटे हैं अनुराग (Photo: IMDB)
फिल्म:निशानची
4.5/5
  • कलाकार : ऐश्वर्य ठाकरे, वेदिका पिंटो, मोनिका पंवार, कुमुद मिश्रा, मोहम्मद जीशान अयूब, गिरीश शर्मा
  • निर्देशक :अनुराग कश्यप

तिलचट्टे सी पर्सनालिटी वाले नशेड़ी, पहलवानों को छुरी घोंप रहे हैं. 'धिना धिन धा' की ताल पर शूटर, लाश गिरा रहे हैं. महिलाएं जहर में 12 घंटे भीगी जुबान से, उसी कौशल से डायलॉग छान रही हैं, जितनी पारंगत वो पकौड़ी छानने में हैं. एक छटपटाती प्रेम कहानी भी है और बाप के बदले की तिलमिलाहट भी. एक्शन इतना रॉ है कि देखने वाला मुट्ठियां भींचे, दांत पीसे, आंखों में खून उतरता महसूस कर ले. 

और दांव पर लगी इतनी गंभीर चीजों के बीच एक रंगरूट किडनैपर है, जो कागज पर लिखी धमकी पढ़ने में लड़खड़ा रहा है. पीड़ित को चश्मा लगाकर ये मशक्कत भी खुद करनी पड़ रही है. ये 'फिलम' नहीं, स.नी.मा. है... इसमें कुछ भी साधारण नहीं होगा. बहुत साधकर लगाया गया ये निशाना, आपका दिल कब ठांय से उड़ा देगा, पता भी नहीं चलेगा. क्योंकि इस बार डायरेक्टर अनुराग कश्यप 'निशानची' मोड में हैं. 

ऐसा लगता है अपनी लय में गुनगुनाते हुए, रमकर कारोबार चला रहे अनुराग को छेड़कर किसी ने पूछ लिया था- ''गैंग्स ऑफ वासेपुर' जैसा ही कुछ और नहीं है क्या?' वो एक सेकंड ठहरे, तेजी से अपने गोदाम में गए और 'निशानची' लाकर दुकान के काउंटर पर रख दी- 'ये देखिए. वैसे ही पैटर्न में ये नया डिजाईन है और इसमें आपको कलर भी खूब मिल जाएंगे.'  

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क्या है 'निशानची' का मैटर?
बबलू निशानची, रंगीली रिंकू और डबलू से आपकी पहली मुलाकात सीधा बैंक डकैती में होती है. 'टेस्ट द थंडर' करने गई ये तिपहिया गैंग एक ब्लंडर में फंस गई है और बबलू अंदर चले गए हैं. बबलू-डबलू (ऐश्वर्य ठाकरे) जुड़वा भाई हैं. एक शूटर है, दूसरा स्कूटर... कभी मौके पर तुरंत स्टार्ट नहीं होगा. रिंकू (वेदिका पिंटो) एक आर्केस्ट्रा की छबीली डांसर हैं, मगर रंगबाज बबलू की प्रेमिका होने के नाते रंगीली हैं. 

जेल में विधिवत कुटाई और थानेदार कमल 'अजीब' के चटख वन-लाइनर्स झेल रहे बबलू के मुंह से एक पॉलिटिशियन अंबिका प्रसाद (कुमुद मिश्रा) का नाम पहली बार सुनाई पड़ता है. अभी तक आप किताब के इंडेक्स में थे. अब पन्ने पलटने शुरू होते हैं. बबलू-डबलू की माताजी, मंजरी (मोनिका पंवार) सामने आती हैं. उनका इंट्रो ना भी दिया जाए तो उनके तेवर से पता चल जाता है कि वो बबलू-डबलू की ही मां हैं. 

कहानी 2006 से 1996 में जाती है. मंजरी के स्वर्गीय पति, बबलू-डबलू के पापा, जबरदस्त पहलवान (विनीत कुमार सिंह) की कहानी मिलती है. ये साधारण लोग नहीं हैं, पहले ही जान लीजिए. स्पोर्ट्स पॉलिटिक्स के मारे दो दमदार खिलाड़ी हैं. मंजरी ट्रैप शूटिंग की खिलाड़ी थीं और जबरदस्त, धाकड़ पहलवान. 

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अंबिका चाचा की हिलोरें मारती जवानी भी फ्लैशबैक का हिस्सा है. इसी में जबरदस्त पहलवान के स्वर्ग सिधारने का भनभनाता हुआ किस्सा है. तब जो हुआ था, वो आज हो रही घटनाओं का बैकग्राउंड है. कैसे बबलू निशानची बना? कैसे गैंगस्टरबाजी में उसका डेब्यू हुआ? कैसे रिंकू उसके जीवन में आईं और कैसे बबलू अपने 'अंबिका' चाचा के खिलाफ हुए और अब आगे क्या बवाल कटेगा... यही सब 'निशानची' का मैटर है.  यहां देखें 'निशानची' का ट्रेलर:

'निशानची' का एक्स-रे
रंजन चंदेल, प्रसून मिश्रा और अनुराग कश्यप की लिखाई, स्क्रीनप्ले की पाठशाला है. 'निशानची' में सिर्फ मुख्य किरदार नहीं, छोटे-छोटे कैरेक्टर्स भी पूरी सफाई से लिखे गए हैं. उनकी अपनी एक पर्सनालिटी है. रिंकू के पिताजी का मकान, जबरदस्त-मंजरी की खेल में नाकामी, जबरदस्त का बदला, अंबिका की साजिश, बबलू का गुंडई में डेब्यू, रिंकू-बबलू की लव स्टोरी, ये सब मुख्य नैरेटिव के साथ चलने वाले छोटे-छोटे सबप्लॉट हैं. और ये सारे सबप्लॉट मिलकर बबलू-डबलू की मौजूदा कहानी का मजबूत मंच बनाते हैं. 

हर सबप्लॉट की अपनी वैल्यू है. सारे सबप्लॉट्स का अपना इमोशन है. ये सारे मंतर फूंककर अनुराग अपनी टोपी में हाथ डालते हैं और एक के बाद एक, आपको सीट से चिपकाकर रखने वाले धांसू सीक्वेंस डिलीवर करते रहते हैं. जबरदस्त पहलवान की पूरी कहानी 'निशानची' को असली वजन देती है. बबलू की लव स्टोरी से मन उतना ही मचलता है जितना किसी भी बॉलीवुड रोमांटिक ड्रामा से. रिंकी के साथ उसकी केमिस्ट्री एकदम बमफाड़ है. मंजरी के तेवर और इमोशन फिल्म को गहराई देते हैं. 

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कमियों के डिपार्टमेंट में 'निशानची' में कुछ खास डिस्टर्बिंग चीजें नहीं हैं. कुछेक जगह पेस थोड़ी सी स्लो पड़ती लगती है. लेकिन एडिटर आरती बजाज ने तुरंत मोर्चे पर डट जाती हैं. हालांकि, ओवरऑल फिल्म की पेस ऐसी है कि ठीकठाक रनटाइम होने के बावजूद आपको टाइम का पता नहीं चलता.

डायलॉग्स का तो पूछिए मत... 'आदमी जब बड़ा बनता है तो, जितना पहनता नहीं उससे ज्यादा उतारता है' दर्शन है. 'मर्द केवल अपने फायदे के लिए औरत को देवी बनाता है' में सोशल मैसेज. अंग्रेजी का कोर्स कराने वाला 'पिजन-कबूतर, उड़न-फ्लाई, लुक-देखो, आसमान-स्काई' भी है. और रोमांस में 'हॉर्मोन का हारमोनियम' वो बजा है कि जिनके मन में ये गुलाबी फीलिंग कहीं कोने में घुस चुकी होगी, वो भी तमतमाती हुई बाहर आ जाएगी.

म्यूजिक-व्यूजिक
अजय जयंती का रेट्रो वेस्टर्न स्टाइल म्यूजिक, सबसे दमदार सीन्स में जान फूंकता है. अनुराग सैकिया ने गाने बनाने में कुछ अलग ही लेवल का कारनामा कर दिया है. विजय लाल यादव अंग्रेजी में बिरहा गा देंगे ये कौन सोच सकता था? 'फिलम देखो' के साथ क्रेडिट्स रोल होते ही फिल्म का माहौल तैयार हो जाता है. पियूष मिश्रा का 'क्या है, क्या है' रोमांस का नया एंथम बनने की काबीलियत रखता है. 

रिंकू के डांस पर देसी भोजपुरी फोक के फ्लेवर वाले गाने माहौल बना रहे हैं. 'झूले झूले पालना' में एक अलग ट्रांस है. 'बिरवा' फिल्म के इमोशंस को उभारता है तो 'नींद भी तेरी' एक खूबसूरत रोमांटिक गाना है. और पुरानी फिल्मों के टाइटल से बना 'राजा हिंदुस्तानी' तो अद्भुत तेवर-टशन-भौकाल वाला गीत है. 

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एक्टिंग परफॉरमेंस 
ऐश्वर्य ठाकरे की ये पहली फिल्म है- ये फैक्ट है. उनका काम देखकर आप ये फैक्ट भूल जाएंगे- ये उनकी परफॉरमेंस का दम है. कानपुर में गैंगस्टरबाजी कर रहे बबलू के रोल में उनका तेवर बहुत झन्नाटेदार है. उनके पास इस तरह के किरदार की बॉडी लैंग्वेज है, चाल है, फुर्ती है और आंखें हैं. जबकि डबलू के रोल में भोंदू और इमोशनली गहरे दिखने की बारी आते ही उनमें ठहराव आ जाता है. ऐश्वर्य में डायलॉग बोल देने की, एक्शन कर देने की जल्दी नहीं है. वो अपने स्पेस में पांव धंसाए एकदम कंफर्टेबल होकर खड़े हैं. 

वेदिका पिंटो ने रिंकू को जो कॉन्फिडेंस और दुस्साहस दिया है वो कमाल है. इस रोल में उन्हें वो सबकुछ करना था जो एक टिपिकल बॉलीवुड हीरोइन से उम्मीद की जाती है. मगर अनुराग कश्यप के संसार में, महफिल लूट लेने के वजन के साथ. इसमें वो पूरी तरह कामयाब हुई हैं. कुमुद मिश्रा का नेगेटिव अवतार देखकर दिल जितना खुश होता है, उतनी ही उन्हें और ज्यादा स्क्रीन पर देखने की इच्छा हिलोरें मारती है. 

विनीत कुमार सिंह का स्पेशल अपीयरेंस फिल्म की जान है. जेल में उनके किरदार का डेढ़-दो मिनट का एक अल्टीमेट सीक्वेंस है. इसमें आपको एड्रेनलिन, इमोशन, क्षोभ और शोक एक साथ महसूस होगा. ये इस साल की सबसे दमदार एक्टिंग परफॉरमेंस में गिना जाएगा. 

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मोनिका पंवार को जब आप पहली बार मां के रोल में देखते हैं तो वो इस किरदार के लिए थोड़ी यंग लगती हैं. मगर कुछ मिनट बीतने के बाद आपको यकीन हो जाता है कि उनसे परफेक्ट इस रोल में कोई नहीं हो सकता था. एक सीन में जब वो डबलू के साथ चल रही हैं, तो उनके हाथों और चाल को देखकर आप कह ही नहीं सकते कि ये 32 साल की यंग एक्ट्रेस है. फिल्म के सबसे गंभीर, तेवर वाले और इमोशनल सीन्स उनके हिस्से हैं. इन सबमें वो खूब चमकी हैं. 

एक्टर गिरीश शर्मा का नाम अलग से लिया जाना जरूरी है. यंग अंबिका का किरदार निभा रहे गिरीश शर्मा ने कुमुद मिश्रा का ही किरदार निभा दिया है और वो इसमें एकदम परफेक्ट हैं. यंग बबलू-डबलू बने रियल लाइफ जुड़वा भाइयों नितप्रीत-सुप्रीत गोरख्याल की परफॉरमेंस भी दमदार है. 

कुल मिलाकर 'निशानची' को इस साल की बेस्ट हिंदी फिल्म कहा जा सकता है. इसे जितने ज्यादा दर्शकों वाले थिएटर में देखा जाए उतना ज्यादा मजा देने वाली फिल्म है. दिल झकझोर देने वाला रोमांस, बदले की तपती आग, मां का इमोशन, रॉ एक्शन और ढेर सारा बॉलीवुड प्रेम मिलाकर अनुराग ने 'फिलम' नहीं बम बनाया है. और ये बम बड़े पर्दे पर, पर्दाफाड़ एंटरटेनमेंट डिलीवर करता है जो एक बार नहीं, बार-बार थिएटर में देखने लायक है. 

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